महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 141 श्लोक 22-47
एकचत्वारिंशदधिकशततम (141) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
शत्रुदमन मधुसूदन ! उस दशामें मैं उस समृद्धिशाली विशाल राज्य्को पाकर भी दुर्योधनको ही सौंप दूँगा। मैं भी यही चाहता हूँ कि जिनके नेता ह्रषीकेश और योद्धा अर्जुन हैं, वे धर्मात्माक युधिष्ठिर ही सर्वदा राजा बने रहें। माधव ! जनार्दन ! जिनके सहायक महारथी भीम, नकुल, सहदेव, द्रौपदी के पाँचों पुत्र, पांचाल राजकुमार धृष्टनघुम्न, महारथी सात्य कि,उत्तममौजा, युधामन्यु , सोमकवंशी सत्य –धर्मा, चेदिराज धृष्ट केतु,चेकितान, अपराजित वीर शिखण्डीझ, इन्द्रमगोपके समान वर्णवाले पाँचों भाई केकय-राजकुमार, इन्द्र धनुषके समान रंगवाले महामना कुन्तिभोज, भीमसेन के मामा महारथी श्ये्नजित विराटपुत्र शंख तथा अक्षयनिधिके समान आप हैं, उन्ही् युधिष्ठिरके अधिकारमें यह सारा भूमण्डयल तथा कौरव-राज्य रहेगा। श्रीकृष्ण् ! दुर्योधनने यह क्षत्रियों का बहुत बड़ा समुदाय एकत्र कर लिया है तथा समस्ता राजाओंमें विख्यायत एवं उज्ज्वल यह कुरूदेशका राज्य भी उसे प्राप्तु हो गया है। जनार्दन ! वृष्णिनन्दखन ! अब दुर्योधनके यहाँ एक शस्त्र -यज्ञ होगा, जिसके साक्षी आप होंगे। श्रीकृष्णन ! इस यज्ञमें अध्वहर्युका काम भी आपको ही करना होगा । कवच आदिसे सुसज्जित कपिध्व,ज अर्जुन इसमें होता बनेंगे। गाण्डी व धनुष स्त्रुअवाका काम करेगा और विपक्षी वीरोंका पराक्रम ही हवनीय घृत होगा । माधव ! सव्यसाची अर्जुन द्वारा प्रयुक्त् होनेवाले ऐन्द्रा, पाशुपत, ब्राह्रा और स्थूवणाकर्ण आदि अस्त्रद ही वेद-मन्त्रय होंगे। सुभद्राकुमार अभिमन्यु भी अस्त्र विद्या में अपने पिताका ही अनुसरण करनेवाला अथवा पराक्रममें उनसे भी बढ़कर है ।वह इस शस्त्रकयज्ञमें उत्त म स्तोहत्रगान (उद्रातृकर्म) की पूर्ति करेगा। अभिमन्युु ही उद्राता और महाबली नरश्रेष्ठ् भीमसेन ही प्रस्तोकता होंगे, जो रणभूमिमें गर्जना करते हुए शत्रुपक्षके हाथियोंकी सेनाका विनाश कर डालेंगे। वे धर्मात्माी राजा युधिष्ठिर ही सदा जप और होममें संलग्न् रहकर उस यज्ञमें ब्रह्राका कार्य सम्पहन्न। करेंगे।
मधुसूदन ! शंख मुरज तथा भेरियोंके शब्द और उच्च स्वरसे किये हुए सिंहनाद ही सुब्रह्मण्यनाद होंगे। माद्रीके यशस्वी पुत्र महापराक्रमी नकुल-सहदेव उसमें भलीभाँति शामित्रकर्म का सम्पादन करेंगे। गोविन्द ! जनार्दन ! विचित्र ध्वजदण्डोंसे सुशोभित निर्मल रथ-पक्तियाँ ही इस रणयज्ञमें यूपोंका काम करेगी। कर्णि, नालीक, नाराच और वत्सदन्त आदि बाण उपबृंहण (सोमाहुतिके साधनभूत चमस आदि पात्र) होंगे । तोमर सोमकलशका और धनुष पवित्रीका काम करेंगे। श्रीकृष्ण ! उस यज्ञमें खंड ही कपाल, शत्रुओं के मस्तक ही पुरोडाश तथा रूधिर ही हृविष्य होंगे। निर्मल शक्तियां और गदाएँ सब ओर बिखरी हुई समिधाएँ होगी । द्रोण और कृपाचार्यके शिष्य ही सदस्यका कार्य करेंगे ।गाण्डीवधारी अर्जुनके छोड़े हुए तथा द्रोणाचार्य, अश्रत्थामा एवं अन्य महारथियोंके चलाये हुए बाण यज्ञ-कुण्डके सब ओर बिछाये जानेवाले कुशोंका काम देंगे। सात्यकि प्रतिस्थाता (अध्वर्युके दूसरे सहयोगी) का कार्य करेंगे । धृतराष्ट्रपुत्र दुर्योधन इस रणयज्ञकी दीक्षा लेगा और उसकी विशाल सेना ही यजमानपत्नीका काम करेगी। महाबाहो ! इस महायज्ञका अनुष्ठान आरम्भ हो जानेपर इसके अतिरात्रयागमें (अथवा आधी रात के समय) महाबली घटोत्कच शामित्रकर्म करेगा। श्रीकृष्ण ! जो श्रौत यज्ञके आरम्भमें आरम्भमें ही साक्षात अग्नि-कुण्डसे प्रकट हुआ था, वह प्रतापी वीर धृतघुम्न इस यज्ञकी दक्षिणाका कार्य सम्पादन करेगा। श्रीकृष्ण ! मैंने जो धृतराष्ट्रपुत्र दुर्योधनका प्रिय करने के लिये पाण्डवोंको बहुतसे कटुवचन सुनाये है, उस अयोग्य कर्मके कारण आज मुझे बड़ा पश्चाताप हो रहा है । श्रीकृष्ण ! जब आप सव्यसाची अर्जुनके हाथसे मुझे मारा गया देखेंगे, उस समय इस यज्ञका पुनश्रिति-कर्म (यज्ञके अनन्तर किया जानेवाला चयनारम्भ) सम्पन्न होगा। जब पाण्डुनन्दन भीमसेन सिंहनाद करते हुए दु:शासनका रक्तपान करेंगे, उस समय इस यज्ञका सुत्य (सोमाभिषव) कर्म पूरा होगा।
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