विद्युत चुम्बक

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लेख सूचना
विद्युत चुम्बक
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 11
पृष्ठ संख्या 15
भाषा हिन्दी देवनागरी
लेखक महेंद्र नारायण वर्मा
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण, वाराणसी
संस्करण 1969
उपलब्ध भारतकोश पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

विद्युत्‌ चुम्बक लोहे पर चुंबक रगड़कर लोहे को चुंबकीय किया जा सकता है और लोहे पर तार लपेटकर उस तार से विद्युत्‌ धारा बहाकर भी लोहे को चुंबकित किया जा सकता है। विद्युत्‌ धारा के प्रभाव से जिस लोहे में चुंबकत्व उत्पन्न होता है, उसे विद्युत्‌ चुंबक कहते हैं।

सन 1820 ई. में अस्टेंड[१] ने आविष्कार किया कि विद्युत धारा का प्रभाव चुंबकों पर पड़ता है। इसके बाद ही उसी साल ऐंरेगो[२] ने यह आविष्कार किया कि ताँबे के तार में बहती हुई विद्युत धारा के प्रभाव से इसके निकट रखे लोहे और इस्पात के टुकड़े चुंबकित हो जाते हैं। उसी साल अक्टूबर महीने में सर हफ्रीं डेवी[३] ने स्वतंत्र रूप से इसी तथ्य का आविष्कार किया।

निर्माण

सन 1825 ई. में इंग्लैंड के विलियम स्टर्जन[४] ने पहला विद्युत-चुंबक बनाया, जो लगभग 4 किलो का भार उठा सकता था। इन्होंने लोहे की छड़ को घोड़े के नाल के रूप में मोड़कर उस पर विद्युत रोधी तार लपेटा। तार में बिजली की धारा प्रवाहित करते ही छड़ चुंबकित हो गया और धारा बंद करते ही छड़ का चुंबकत्व लुप्त हो गया। यहाँ छड़ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक तार का एक ही दिशा में लपेटते जाते हैं, किंतु सिरों के सामने से देखने से मुड़ी हुई छड़ की एक बाहु पर धारा वामावर्त दिशा में चक्कर काटती है और दूसरी बाहु पर दक्षिणावर्त दिशा में। फलस्वरूप छड़ का एक सिरा उत्तर-ध्रुव और दूसरा दक्षिण ध्रुव बन जाता है। स्टर्जन के प्रयोगों से प्रेरित होकर सन 1831 में अमरीका के जोज़ेफ हेनरी[५] ने शक्तिशाली विद्युत चुंबकों का निर्माण किया। उन्होंने लोहे की छड़ पर लपेटे हुए तारों के फेरों की संख्या बढ़ाकर विद्युत्चुंबक की शक्ति बढ़ाई। उन्होंने जो पहला चुंबक बनाया यह 350 किलो का भार उठा सकता था और इसके बाद उन्होंने जो दूसरा विद्युत चुंबक बनाया, वह 1,000 किलोग्राम का भार उठा सकता था। उनके विद्युत चुंबकों को कई सेल की बैटरी की धारा से ही उपर्युक्त प्रबल चुंबकत्व प्राप्त होता था। इसके बाद तो इससे भी शक्तिशाली विद्युत्‌ चुंबकों का उत्तरोत्तर निर्माण होता गया।

गाउस का चुंबकीय क्षेत्र

सन 1891 ई. में डु बॉय[६] ने एक बड़े विद्युत चुंबक का निर्माण किया। इस विद्युत चुंबक के क्रोड[७][८] पर तार के 2,400 फेरे लपेटे गए और जब तार से 50 ऐंपियर की विद्युत धारा प्रवाहित की गई, तो इस विद्युत चुंबक के बीच 40 हजार गाउस का प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हुआ। इस विद्युत चुंबक के ध्रुव शंकु के आकार के थे और एक दूसरे के सम्मुख थे। ध्रुवों के बीच की खाली जगह की लंबाई 1 मिमी और व्यास 6 मिमी था। डू बायस ने जो सबसे बड़ा चुंबक बनाया, उसका वजन 27 हंड्रेडवेट था और उसके ध्रुवों के बीच 3 मिमी लंबी और 0.5 मिमी व्यास की जगह में 65 हजार गाउस का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता था। पी. वाइस[९] ने भी अति बलशाली विद्युत चुंबकों का निर्माण किया। इनके द्वारा निर्मित एक विद्युत चुंबक में ताँबे की नलिका के 1,440 फेरे थे और उससे 100 ऐंपियर की धारा बहाई जाती थी। नलिका के अंदर से पानी बहाकर उसे ठंढा रखा जाता था। डू बॉय के विद्युत्‌-चुंबक में भी लपेटे हुए तार खोखली नालिका के रूप में होते थे और नालिका के अंदर पानी बहाकर उसे ठंढा रखा जाता था।

विद्युत चुंबक के क्रोड के लिए ऐसे लोहे का व्यवहार होता है, जिसकी चुंबकीय प्रवृत्ति ऊँची हो, चुंबकन धारा बंद कर देने पर क्रोड का अवशेष चुंबकत्व निम्नतम हो और वह शीघ्र ही चुंबकीय संतृत्ति न प्राप्त करे। विद्युत्‌ चुंबक के क्रोड के लिए पिटवाँ लोहे, अथवा ढालवाँ नरम इस्पात, का व्यवहार किया जाता है। किंतु किसी भी प्रकार के लोहे का व्यवहार किया जाए, उसका चुंबकत्व एक निश्चित सीमा को नहीं पार कर सकता, चाहे चुंबकन धारा को कितना भी क्यों न बढ़ाया जाए। इसलिए अति प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए कपित्ज़ा ने[१०] तार को परिनालिका का व्यवहार किया, जिसका क्रोड वायु थी। इस परिनालिका में एक प्रबल जनित्र से 8,000 ऐंपियर की क्षणिक धारा 3/1000 सेकंड तक प्रवाहित कर उस परिनालिका के अंदर 3,20,000 गाउस का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया।

कारखानों में विद्युत चुंबक द्वारा भारी बोझों को उठाने का काम लिया जाता है। जिस बोझ को उठाना होता है, उसपर लोहे की पटरी बाँध देते हैं। विद्युत चुंबक से धारा प्रवाहित करते ही विद्युत चुंबक चुंबकित होकर लोहे की पटरी और पटरी से लगे बोझ को आकर्षित करके उठा लेता है। किसी विद्युत चुंबक का बोझ उठाने का यह बल B2 A/8p के बराबर होता है,जहाँ- B=चुंबक के ध्रुवों के निकट उसके चुंबकीय क्षेत्र का फ्लक्स घनत्व A=चुंबक के ध्रुवों के मुख का क्षेत्रफल।

उपयोग

वैज्ञानिक अनुसंधानों में विद्युत्‌ चुंबक का बहुत महत्वपूर्ण उपयोग होता रहा है। विद्युत चुंबक की सहायता से फैरेडे ने प्रकाश संबंधी फैरेडे-प्रभाव, जेमान[११] ने ज़ेमान-प्रभाव और केर[१२] ने केर-प्रभाव का आविष्कार किया। आवेशित कणों को महान्‌ वेग प्रदान करने के लिए, साइक्लोट्रॉन, बीटाट्रॉन, सिंक्रोट्रॉन और बिवाट्रॉन इत्यादि अद्भुत यंत्र बने हैं। इनमें भी विशाल विद्युत्‌ चुंबकों का व्यवहार होता है। प्रति दिन काम आनेवाले अनेक यंत्रों और उपकरणों में छोटे बड़े विद्युत्‌ चुंबकों का व्यवहार होता है। बिजली की घंटी में, टेलीग्राफ और टेलीफोन में विद्युत्‌-चुंबक का व्यवहार होता है, क्योंकि विद्युत्‌-चुंबक की यह विशेषता है कि उसमें विद्युत्‌ धारा बहते ही वह चुंबकित हो जाता है और विद्युत्‌ धारा के बंद होते ही विचुंबकित, तथा उसका चुंबकत्व, एक निश्चित सीमा के अंदर, उस विद्युत्‌ चुंबक पर लपेटे तार में बहती हुई धारा का अनुपाती होता है। लाउडस्पीकर में, धारा जनित्रों में, बिजली के मोटरों में, बिजली के हॉर्न में और चुंबकीय क्लच में विद्युत्‌-चुंबक का व्यवहार होता है। वैद्युत परिपथ में विद्युत्‌ चुंबक के द्वारा रिले का काम लिया जाता है, यानी दूर से ही दुर्बल धारा द्वारा सौ और हजार ऐंपियर धारा के स्विचों को दबा कर सौ और हजार ऐंपियर की धारा स्थापित की जाती है। अनेक प्रकार के स्वचालित यंत्रों में विद्युत्‌ चुंबकों का उपयोग होता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Oersted
  2. Arago
  3. Sir Humphrey Davy
  4. William Sturgeon
  5. Joseph Henry
  6. Du Bois
  7. core
  8. लोहे की छड़
  9. P. Weiss
  10. Kapitza
  11. Zeeman
  12. Kerr