अक्रियावाद

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
अक्रियावाद
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 68
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक बलदेव उपाध्याय।

अक्रियावाद बुद्ध के समय का एक प्रख्यात दार्शनिक मतवाद। महावीर तथा बुद्ध से पूर्व के युग में भी इस मत का बड़ा बोलबाला था। इसके अनुसार न तो कोई कर्म है, न कोई क्रिया और न कोई प्रयत्न। इसका खंडन जैन तथा बौद्ध धर्म ने किया, क्योंकि ये दोनों प्रयत्न, कार्य, बल तथा वीर्य की सत्ता में विश्वास रखते हैं। इसी कारण इन्हें कर्मवाद या क्रियावाद कहते हैं। बुद्ध के समय पूर्णकश्यप नामक आचार्य इस मत के प्रख्यात अनुयायी बतलाए गए हैं।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध



टीका टिप्पणी और संदर्भ

(द्र. ब्रह्मजालसुत्त)