इस्तमरारी बन्दोबस्त
इस्तमरारी बन्दोबस्त ब्रिटिश भारत में भूमि तथा लगान वसूली से सम्बन्धित एक व्यवस्था थी। लॉर्ड कार्नवालिस ने इग्लैंड की संसद के परामर्शानुसार सन 1786 ई. में लगान वसूली का एक दस साला बन्दोबस्त किया[१] और यह निश्चय हुआ कि अंग्रेज़ों के अधिकृत तत्कालीन भारतीय भूमि क्षेत्र में यदि यह व्यवस्था संतोषप्रद सिद्ध हुई तो इसे स्थायी रूप दे दिया जाएगा।
स्थायी बन्दोबस्त
उक्त व्यवस्था के फलस्वरूप वर्ष 1793 ई. में लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल की मालगुजारी का 'स्थायी बन्दोबस्त' कर दिया। इसके अनुसार जमींदार जिस भूमि का लगान वसूल करते थे, उसके मालिक मान लिए गए तथा लगान की दरें भी निश्चित कर दी गई। अपनी देख रेख तथा प्रबंध में जमींदार अपने अधीन भूमि से जो अतिरिक्त आय करता था, उस पर भी उसी का स्वत्व मान लिया गया। कृषकों से लिया जाने वाला लगान भी पट्टे द्वारा निश्चित कर दिया गया।
जमींदारों को लाभ
इस बन्दोबस्त से सरकार, जमींदार और किसान तीनों ही भिन्न-भिन्न ढंग से प्रभावित हुए। भविष्य में जमीन की कीमत और पैदावार बढ़ जाने पर भी सरकार लगान नहीं बढ़ा सकती थी। अत: उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन सरकार को लाभ यह हुआ कि समय-समय पर मालगुजारी नियत करने और वसूल करने की झंझट से उसे छुटकारा मिल गया। जमींदारों को इससे अत्यधिक लाभ हुआ। वे समृद्ध हो गए। उनकी अंग्रेज़ों के प्रति राजभक्ति बढ़ी और इससे भारत में अंग्रेज़ी शासन की जड़ें मजबूत हुई। बंगाल में बहुत सी जमीन खेती के लायक बना दी गई और भारत में बंगाल का प्रांत सबसे अधिक समृद्धिशाली और उन्नतिशील बन गया। अधिक लगान मिलने से जमींदार धनी हुए और वाणिज्य व्यापार में भी इससे सुविधा हुई। परंतु किसानों को इस व्यवस्था से कुछ भी लाभ न हुआ। उन्हें लगान भी अधिक देना पड़ता था ओर जमींदारों के कारिंदों के हाथों उन्हें अत्याचार भी सहने पड़ते थे। गरीब होने के कारण किसान अत्याचारों के विरुद्ध अदालती कार्रवाई भी नहीं कर सकते थे। जमींदारों के अत्याचारों को रोकने के लिए 1859 ई. में 'बंगाल टेनेन्सी ऐक्ट' बनाना पड़ा।[२]
टीका टिप्पणी और संदर्भ