कुऑं

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लेख सूचना
कुऑं
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 51
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक जाल कपूर

कुआँ मिट्टी या चट्टानों को काटकर कृत्रिम खोदाई या छेदाई से जब कोई द्रव, विशेषतया पानी, निकलता है तब उसे कुआँ कहते हैं। कुछ स्थानों के कुओं से पानी के स्थान में पेट्रोलियम तेल भी निकलता है। कुएँ कई प्रकार के होते हैं। यह उनकी खोदाई, गहराई, मिट्टी या चट्टान की प्रकृति और पानी निकलने की मात्रा पर निर्भर करता है। कुएँ छिछले हो सकते हैं या गहरे। गहरे कुओं को उस्रुत कुआँ (Artesian well) कहते हैं, यद्यपि यह नाम गलत है। साधारणतया कुएँ वृत्ताकार तीन से पंद्रह फुट, या इससे अधिक, व्यास के होते हैं। इनकी गोल दीवारें, जिन्हें कोठी कहा जाता है, ईटोंं की बनाई जाती हैं और उनके नीचे तल पर लकड़ी या प्रबलित कंक्रीट या चक्का होता है। ऐसे ही कुओं का पानी पीने या सिंचाई के काम आता है। छिछले कुओं का पानी पीने योग्य नहीं समझा जाता, क्योंकि उनके धरातल के पानी से दूषित हो जाने की आशंका रहती है। पीने के पानी के लिए गहरे कुएँ अच्छे समझे जाते हैं। उनका पानी शुद्ध रहता है और अधिक मात्रा में भी प्राप्त होता है।

कुएँ साधारणतया 50 से लेकर 100 फुट तक गहरे होते हैं, पर अधिक पानी के लिये 150 से 500 फुट तक के गहरे कुएँ खोदे गए हैं। कुछ विशेष स्थानों में तो कुएँ छह हजार फुट तक गहरे खोदे गए हैं और इनसे बड़ी मात्रा में पानी प्राप्त हुआ है। आस्ट्रेलिया में चार सौ फुट से अधिक गहरे कुएँ खोद गए हैं। इनसे एक लाख से लेकर एक लाख चालीस हजार गैलन तक पानी प्रतिदिन प्राप्त हो सकता है।

जिन नदियों या नालों के तल की मिट्टी क्षरणशील होती है उनमें पुलों के पायों या अन्य निर्माण की बुनियाद भी कुंओं पर रखी जाती है।

कुएँ वाली नींव में चार भाग होते हैं-(1) चक्क (Curb) जिसमें कटाई कोर (cutting edge) भी सम्मिलित है, (2) कोठी (Steining), (3) डाट (plug) तथा (4) कूप-ढक्कन (Wellcab) (देखें चित्र)

चक्क-चक्क कोठी की नींव और काटने की कोर का काम देता है। छोटे कुओं के लिए यह काठ का बना होता है पर गहरी नींव के लिए यह इस्पात अथवा प्रबलित कंक्रीट का बना होता है। उनके कटाईकोर मृदु इस्पात की पट्टी और कोनियों से बनाए जाते हैं। चक्क के आभ्यंतर फलक की ढाल ऊ र्ध्वाधर 25-35 के बीच होती है। कोठी-कुएँ की दीवार को कोठी कहते हैं। नीचे से ऊपर तक यह पूर्णतया सीधी (ऊ र्ध्वाधर) होनी चाहिए। व्यवहार में महत्तम झुकाव 1/100 तक रह सकता है। कोठी पक्की चुनाई या कंक्रीट की हो सकती है। डाट-जब कुएँ की अंतिम धँसान पूरी हो जाती है तब पेंदे को साफ कर लेते और जल के भीतर कंक्रीट की डाट लगा देते हैं। डाट चक्क के ऊपर लगभग दो फुट तक फैली रहती है। कूप ढक्कन-कुएँ का ढक्कन दो फुट मोटी प्रबलित कंक्रीट की शिला (slab) का होता है। वह कुएँ पर रखा जाता है और क. कुएँ का ढक्कन; ख. टोडे का बढ़ाव; ग. कंक्रीट या ईटं की पक्की चिनाई ; घ. गोल दीवार (कोठी) ; च. लंबाई की छड़; छ. कंक्रीट की मोटाई 2-3 फुट; ज. नरम इस्पात की छड़ ; झ. प्रबलित छल्ले (Stirrups) ; कं0. कंक्रीट की डाट (Plug); ट. चक्क का कोण। (Curb angle) 25-35; ठ. कटाई कोर (Cutting edge)

पाए के आधार पर कार्य करता है। ढक्कन और तले के बीच का भाग रेत से भर दिया जाता है।चित्र:Well.jpg

कुओं का आकार-कुओं के आकार साधारणतया एकहरा वृत्ताकार, दोहरा अष्टभुजीय, दोहरा D- आकार, द्विवृत्ताकार, आयताकार या एक से अधिक गोलाकार, एक दूसरे के सन्निकट होते हैं एकहरा वृत्ताकार कुआँ काफी मजबूत होता है। इसे बनाने में सुगमता और धँसाने में अत्यधिक सरलता होती है। धँसाने में जो रुकावट हो उसको सरलता से दूर किया जा सकता है और झुकाव पर नियंत्रण रखा जा सकता है। यदि कंक्रीट का बना हो तो यह सस्ता भी होता है।

दोहरा अष्टभुजीय आकार गहरे कुओं अथवा मेहराबदार स्तंभ के लिये उपयुक्त होता है। यदि मिट्टी कड़ी हो तो ऐसे स्थान में ऐसे ही कुएँ खोदे जा सकते हैं।

दोहरे D-आकार के कुएँ बालू या बुलई मिट्टी के लिए दोहरे अष्टभुजीय कुओं के अच्छे होते हैं।

छिछले कुओं के लिए आयताकार अच्छा रहता है।

यदि पाए की लंबाई ऐसी हो कि स्थान पर दोहरा वृत्ताकार कुआँ न बैठे तो एक से अधिक वृत्ताकार कुएँ अलग-अलग बनाए जाते हैं। दो वृत्ताकार कुओं को परिधियों के बीच कम से कम चार फुट की दूरी रहनी चाहिए।

निर्माण सामग्री-कुएँ की निर्माण सामग्री में चार वस्तुएँ होती हैं :

लकड़ी-इसका उन्हीं कुओं में प्रयोग होता है जो बहुत छिछले, प्राय 8 से 10 फुट गहरे होते हैं। इस्पात-बड़े आकार के गहरे कुएँ इस्पात के बनाए जा सकते हैं। यह वृत्ताकार होते हैं और बीच के बलयाकार स्थान में कंक्रीट भरा जाता है ताकि बोझ बढ़ जाय। इसकी धँसाई में समय कम लगता है पर खर्च अधिक होता है। पक्की चिनाई-साधारणतया ईटोंं की चिनाई सीमेंट के मसाले से की जाती है।

जिस क्षेत्र में प्राय: भूचाल आते रहते हैं वहाँ संपीडन और तनाव के प्रतिबल बहुत अधिक हो जाते हैं, इसलिये ईटं की चिनाई को इस्पात और प्रबलित कंक्रीट से दृढ़ करना पड़ता है। कंक्रीट-कुएँ के निर्माण में कंक्रीट अधिकता से प्रयुक्त होता है। अत्यधिक भूचाल आने वाले स्थलों पर कंक्रीट का कुंआँ बनाना अधिक सस्ता पड़ता है।

कुएँ का अभिकल्प-इसमें तीन बातें निश्चय की जाती हैं: (1) कुएँ की गहराई, (2) उसकी आकृति तथा (3) कोठी की मोटाई।

नींव के नीचे तथा आसपास की भूमि पर ऊपरी निर्माण के बोझ के स्थानांतरण के ढंग पर यह निश्चय किया जाता है कि तल की सबसे गहरी हो सकने वाली कटाई से कितने नीचे कुएँ की नींव रखी जाएँ।


टीका टिप्पणी और संदर्भ