कॄपानिवास
कॄपानिवास
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 94 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमश्वेरीलाल गुप्त |
कृपानिवास रसिक रामोपासना के एक प्रमुख आचार्य। इनका जन्म १७५० ई. के आसपास दक्षिण भारत में हुआ था। इनके पिता का नाम सीतानिवास तथा माता का गुणशीला था। वे श्री रंग के उपासक थे। उन्होंने इन्हें बचपन ही में रामानुजीय वैष्णव संत आनंद विलास से दीक्षा दिलाई। पंद्रह वर्ष की अवस्था में इन्हें संसार से विरक्ति हुई और वे घर त्याग कर मिथिला चले आए और रसिक भावना का आश्रय लिया। चारों धाम की पैदल यात्रा करते हुए अग्रदास के आचार्य पीठ रेवासा (जयपुर) गए। वहाँ से अयोध्या आए और कुछ दिनों वहाँ रहे। वहाँ से वे उज्जैन गए और वह कुछ काल तक रहे। तदनंतर वे चित्रकूट आए ओर शेष जीवन वहीं व्यतीत किया। चित्रकूट में ही स्फटिक शिला के पास उनका देहावसान हुआ।
युगलप्रिया के अनुसार उन्होंने लगभग एक लाख छंदों की रचना की थी किंतु इनके जो ग्रंथ उपलब्ध हैं उनमें पच्चीस हजार से अधिक छंद नहीं हैं। उनके लिखे समस्त ग्रंथ सांप्रदायिक सिद्धांत निरूपण की दृष्टि से लिखे गए है। कुछ रचनाएँ भावनात्मक भी हैं जो विभिन्न राग-रागिनियों में गेय हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ