क्रिकेट
क्रिकेट
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 200 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
क्रिकेट एक अति प्रसिद्ध अंग्रेजी खेल। इस खेल का प्रचार 13 वीं शती में भी था, यह उस समय के एक चित्र को देखने से ज्ञात होता है। उसमें लड़के क्रिकेट खेल रहे हैं। 16वीं शताब्दी से तो निरंतर पुस्तकों में क्रिकेट की चर्चा प्राप्त होती है। कहा जाता है, इंग्लैंड का प्रसिद्ध शासक ऑलिवर क्रॉमवेल बचपन में क्रिकेट का खिलाड़ी था।
क्रिकेट का पुराना खेल आधुनिक खेल से भिन्न था। प्रारंभ में भेंड चरानेवाले लड़के क्रिकेट खेला करते थे। वे पेड़ की एक शाखा काटकर उसका बल्ला बना लेते थे, जो आजकल की हॉकी स्टिक से मिलता जुलता था। वे कटे हुए किसी पेड़ के तने (stump) के सामने खड़े होकर खेलते थे या अपने घर के छोटे फाटक (wicket gate) को आउट बना लेते थे। आजकल के क्रिकेट में न तो पेड़ के तने (stump) हैं और न कोई फाटक (wicket gate) है, किंतु ये दोनों शब्द स्टंप और विकेट अब भी प्रयुक्त होते हैं। गेंद उस समय भी चमड़े की होती थीं।
क्रिकेट का खेल दो दलों में मैदान में खेला जाता है। प्रत्येक दल में ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। क्रिकेट के मैदान की लंबाई चौड़ाई निश्चित नहीं है, किंतु मैदान के बीच दो विकेट 22 गज की दूरी पर आमने सामने गड़े होते हैं। विकेटों की ऊँचाई 28 इंच और चौड़ाई नौ इंच होती है। एक विकेट में तीन ड़ंडे होते हैं और उनपर दो गुल्लियाँ रखी होती हैं। यदि गेंद विकेट में लग जाय, जिससे गुल्लियाँ गिर जाए तो खिलाड़ी आउट हो जाता है। खेल के मैदान के चारों ओर चूने की एक रेखा खिंची होती है, जिसको सीमा कहते हैं। यदि गेंद इस सीमा को पार कर जाए तो चार रन होते हैं और अगर हवा में उड़ती हुई सीमा के बाहर गिरे तो छह रन होते हैं। सीमारेखा पर विकेट की सीध में दो परदे लगे रहते हैं जिससे लोगों के चलने फिरने से खेल में अड़चन पैदा न हो।
खेल प्रारंभ होने से पूर्व, सफेद कोट पहने हुए, दो व्यक्ति निर्णेता (अंपायर) के रूप में मैदान में आते हैं और खेल की समाप्ति तक वहीं रहते हैं। खेल के प्रारंभ से कुछ मिनट पहले दोनों दलों के कप्तान रूपए या किसी और सिक्के से टॉस (Toss) करते हैं। टॉस जीतनेवाला यह निश्चय करता है कि उसका दल पहले खेलेगा या दूसरे दल को खिलाएगा। खिलानेवाले दल के खिलाड़ी मैदान में चले जाते हैं, फिर खेलनेवाली टीम के दो खिलाड़ी खेलने के लिये जाते हैं। क्रिकेट का खिलाड़ी दूसरे खेलों के खिलाड़ियों से भिन्न लगता है। उसके कपड़े और जूते सफेद होते हैं, पैर में पैड बँधे होते हैं, हाथ में दस्ताने होते हैं और वह खेलने का बल्ला लिए होता है। क्रिकेट का बल्ला ऐश (Ash) की लकड़ी का बना होता है जिसमें बेंत का हत्था लगा होता है। बल्ले की लंबाई 35 इंच और चौड़ाई 4.25 इंच से अधिक नहीं हो सकती।
1 बोलर (गेंद फेंकनेवाला, Bowler); 2 विकेट रक्षक ( Wicket keeper); 3 प्रथम स्लिप (Slip); 4 द्वितीय स्लिप; 4 क, तीसरा खिलाड़ी; 5 पॉइंट (Point); 6 कवर (Cover) पॉइंट; 6 क, अतिरिक्त कवर; 7 मिड ऑफ (Mid off); 8 लॉङ्ग ऑफ (Long off); 9 लॉङ्ग ऑन (Long on); 10 मिड ऑन (Mid on); 11 शॉर्ट लेग (Short Leg); 11 क, स्क्वायर लेग (Square Leg); ख लॉङ्ग लेग; ब, ब. बल्लेबाज (Batsmen) तथा नि, नि, निर्णेता (Umpires)
जब खिलाड़ी विकेट पर पहुँच जाता है तो वह निर्णेता से विकेट की सीध लेता है और गेंदबाज (Bowler) उसकी ओर गेंद फेंकना आरंभ करता है। क्रिकेट की गेंद लाल चमड़े की होती है। उसमें सुतली और कॉर्क भरा रहता है। उसकी तोल 5.5 औस होती है। एक गेंदबाज एक समय में एक ओर से छह बार गेंद फेंक सकता है। इसको एक ओवर (Over) कहते हैं। जब ओवर समाप्त हो जाता है तो दूसरा गेंदबाज दूसरी ओर से गेंद फेंकता है। आस्ट्रेलिया में छह के स्थान पर आठ गेंद का ओवर होता है।
गेंदबाज ओर मैदानरक्षक (Fielders) प्रयत्न करते है कि वे खिलाड़ी को आउट करें। खिलाड़ी कई प्रकार से आउट हो सकता है- (1) गेंद उसके विकेट में लग जाय; (2) वह विकेट के सामने खड़ा हो और गेंद उसके पैर में लग जाए; (3) वह हिट मारे और कोई फील्डर गेंद को रोक ले; (4) रन लेते समय वह विकेट तक न पहँुच सके और विकेटकीपर या कोई अन्य फील्डर गेंद को विकेट में मार दे। खिलाड़ी को आउट करने के लिये गेंदबाज अनेक विधियों का उपयोग करता है। कभी वह सीधी गेंद फेंकता है, कभी गेंद को ऐसे नचाकर फेंकता है कि गिरने के बाद वह मुड़ जाय और खिलाड़ी खेल न सके। गेंदबाज भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं। कुछ बहुत तेज फेंकते हैं और कुछ धीमे।
खिलाड़ी यही प्रयास करता है कि वह आउट न हो वरन् हिट मार कर खूब रन बनाए। एक खिलाड़ी के आउट होने पर दूसरा उसका स्थान लेता है। इस प्रकार जब दस खिलाड़ी के आउट हो जाते हैं तो एक टीम की पाली (Innings) समाप्त हो जाती है। इस प्रकार सदा एक खिलाड़ी ऐसा रहता है जो आउट नहीं होता। फिर दूसरा दल अपनी बारी शुरू करता है। खेल की हार जीत रनों पर निर्भर है। जिस टीम के रन अधिक होते हैं वह जीत जाती है। प्रथम श्रेणी के मैचों में दो दो पालियां प्रत्येक दल खेलते हैं और खेल लगातर तीन दिन होता रहता है। टेस्ट मैचों में पाँच, छह या सात दिन तक खेल होता है। टेस्ट मैच वे होते है जिनमें एक देश की चुनी हुई टीम दूसरे देश की चुनी हई टीम से खेलती है। टेस्ट मैच प्राय: पाँच होते हैं, जिससे हार जीत का निर्णय आसानी से हो जाए।
क्रिकेट का सबसे प्रसिद्ध मैदान लंदन के निकट लॉर्ड्स क्रिकेट फील्ड है। इसको टामस लॉर्ड नामक एक खिलाड़ी ने 18 वीं शतब्दी के अंत में किराए पर लिया था। उसी के नाम पर इसका नामकरण हुआ है। लार्ड स्वयं गेंदबाज था। वह लोगों को क्रिकेट खिलाता और मैचों का प्रबंध करता था। 1788 ई. में यहाँ ‘मैरिलबोन क्रिकेट क्लब’ की स्थापना हुई जो आज तक एम. सी. सी. (M.C. C.) के नाम से प्रसिद्ध है। संसार में जहाँ कहीं भी क्रिकेट का खेल खेला जाता है वहाँ एम. सी. सी. के बनाए हुए नियमों का पालन होता है। ये नियम पहले पहल 1788 ई. में बनाए गए थे और समय समय पर उसमें परिवर्तन होता रहा है।
इंग्लैंड में क्रिकेट के विशेष प्रचार का श्रेय एम. सी. सी. को है। सन् 1846 में इन लोगों ने सारे इंग्लैंड की एक टीम बनाई जिसने देश के बड़े बड़े नगरों में मैच खेले। इससे क्रिकेट का शौक बढ़ा और इंग्लैंड के प्रांतों (Counties) ने भी अपनी टीमें बनाई और आपस में मैच खेलना प्रारंभ किया। ये टीमें आजकल गरमी के पाँच छह महीनों में लगभग प्रतिदिन मैच खेलती हैं। इनके खिलाडी अधिकतर पेशेवर होते हैं। काउंटी मैचों के अतिरिक्त तीन ओर बड़े प्रसिद्ध क्रिकेट मैच होते हैं। ये हैं जेंटल मेन विरूद्ध प्लेअर्स ‘ऑक्सफोर्ड विरूद्ध केंब्रिज’ तथा ईटन विरूद्ध हैरो। जेंटलमेन और प्लेयर्स के दल इंग्लैंड भर के खिलाड़ियों में से चुने जाते हैं। जेंटलमेन में कोई पेशेवर खिलाड़ी नहीं खेल सकता। यह मैच पहली बार 1806 ई. में हुआ था। ऑसक्फोर्ड और केंब्रिज का पहला खेल 1827 ई. में हुआ। इंग्लैंड में क्रिकेट के अनेक प्रसिद्ध खिलाड़ी हुए हैं जिनमें डब्ल्यू. जी. ग्रेस., हॉब्स, डब्ल्यू. हैमंड, एल. हटन, डी., कॉम्पटन उल्लेखनीय हैं। डब्ल्यू. जी. ग्रेस (1848-1915 ई.) ने अपने पचास वर्षीय क्रिकेट के जीवन में बड़ी ख्याति प्राप्त की।
समय की गति के साथ क्रिकेट इंग्लैंड के बाहर भी फैला। अँग्रेजों के साथ ही खेल भी विदेशों में पहुँचा। इस प्रकार भारत, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिणी अफ्रीका और वेस्ट इंडीज़ में क्रिकेट का प्रचार हुआ। अमरीका में क्रिकेट बेसबाल के सामने जम न सका।
इग्लैंड से बाहर क्रिकेट की सर्वाधिक उन्नति आस्ट्रेलिया में हुई। क्रिकेट का पहला टेस्ट मैच 1877 ई. में इन्हीं दो देशों के बीच आस्ट्रेलिया में हुआ, जिसमें आस्ट्रेलिया की विजय हुई। सन् 1880 में आस्ट्रेलिया की टीम इंग्लैंड आई और वहाँ भी टेस्ट जीती। सन 1882 में आस्ट्रेलिया के पुनर्विजयी होने पर एक अग्रेजी पत्र ने लिखा कि इंग्लिश क्रिकेट की मृत्यु हो गई और उसके शव का जला दिया गया; उसका राख आस्ट्रेलिया ले जायगा । तब से आस्ट्रेलिया ओर इग्लैंड के टेस्ट मैच ऐशेज़ की लड़ाई कहलाते है। आस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों मे ग्रिमेट, मेक्कब, ब्रैडमैन, लिंडवाल तथा मिलर उल्लेख्य है। ब्रैडमैन इन सब में अधिक प्रसिद्ध थे और उन्हें संसार का सबसे बड़ा क्रिकेट का खिलाड़ी कहा जाता है। 1928 से 1948 ई. तक उनके खेल का स्वर्णयुग था।
वेस्ट इंडीज यद्यपि छोटा सा देश है, फिर भी वहाँ क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी हुए है। वहाँ के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी एफ. हैडल थे। वेस्ट इंडीज के दूसरे खिलाड़ी एल. कॉन्स्टैंटाइन भी चिरस्मरणीय रहेंगे। कॉन्स्टेंटाइन बहुत तेज गेंद फेंकते थे। खूब छक्के मारते थे और मैदान रक्षा में भी बड़े निपुण थे। कैसा भी गेंद क्यों न हो, कोई उनसे बचकर नहीं जा सकता था। वेस्ट इंडीज के प्रसिद्ध खिलाड़ी वॉरल, वीकीज़ तथा वॉल्कॉट हुए हैं। ये तीन डब्ल्यू. (Ws) के नाम से प्रसिद्ध थे।
दक्षिणी अफ्रीका के प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं-टेलर, मिचेल तथा मेलविल। (इ. अ.)
भारत में क्रिकेट-भारत में क्रिकेट अठारहवीं शती के अंतिम चरण में किसी समय आरंभ हुआ। 1792 ई. में कलकत्ता में एक क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई थी। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इंग्लैंड के बाद भारत में ही क्रिकेट का इतिहास सबसे प्राचीन है। आरंभ में इसका विकास बहुत कुछ साम्प्रदायिक आधार हुआ। विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों की अपनी अपनी टीमें होती और वे एक दूसरे के विरूद्ध खेलते। इसके फलस्वरूप बंबई में ट्रायंगुलर टूर्नामेंट ने जन्म लिया। आगे चलकर इसने क्वाड्रेंगुलर ओर पेंटागुलर टूर्नामेंट का रूप धारण किया। इस प्रकार की टीमों और प्रतियोगिताओं से साम्प्रदायिकता को प्रश्रय मिलता देखकर महात्मा गांधी ने इस प्रकार के आयोजन का विरोध किया और 1945 ई. में टीमों के साम्प्रदायिक रूप समाप्त कराने में सफल हुए। अब प्राय: खेल प्राद्रेशिक अथवा विश्वविद्यालयीय आधार पर होते है और चुने हुए खिलाड़ियों की एक अखिल भारतीय टीम बनती है। भारतीय क्रिके ट को आरंभ में देशी रियासतों से बड़ा प्रश्रय मिला और आरंभ में अखिल भारतीय टीम के खिलाड़ियों तथा उनके कप्तान के चयन में उनका प्रमुख हाथ रहा। अब इसका नियंत्रण एक क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा होता है।
भारतीय क्रिकेट का अंतरराष्ट्रीय रूप 1886 ई. में ही उभरने लगा था। उस वर्ष बंबई की पारसी टीम इंग्लैंड गई थी। किंतु बहुत दिनों तक भारत को टेस्ट मैच के योग्य नहीं समझा जाता था। यह बात नहीं कि इस काल में अच्छे भारतीय खिलाड़ियों का अभाव रहा हो। रणजीत सिंह (जो रणजी के नाम से विशेष ख्यात हैं), दिलीप सिंह और इफ्तिखार अली खाँ (पटौदी के नवाब) ने अपने खेल की धाक अँगरेज खिलाड़ियों पर जमा रखी थीं। अस्तु 1926 ई. में पहली बार एम. सी. सी. की टीम भारत आई व और भारत की टीम के साथ उसके टेस्ट मैच हुए। उसके बाद 1936 ई. में सच्चे अर्थों में भारत की पहली टीम सी. के. नायडू के नायकत्व में गई और लार्ड्स के मैदान में इंग्लैंड की टीम के साथ खेली। इस खेल में यद्यपि भारतीय टीम विजयी नहीं हुई, उसकी 158 रनों से पराजय हुई; पर वह खेल चिरस्मरणीय था। इस खेल के संबंध में विश्वविख्यात क्रिकेट समीक्षक नेविल कार्ड्स ने लिखा था कि यदि भारत की टीम में दिलीप सिंह, पटौदी के नवाब (इफ्तिखार अली खाँ) सम्मिलित हुए होते तो इंग्लैंड कदापि जीत नहीं सकता था।
इसके बाद तो भारत टेस्ट मैच खेलनेवालों की श्रेणी में आ गया। अब तो प्राय: हर साल भारतीय टीम टेस्ट मैच खेलने या तो बाहर जाती है या अन्य देशों की टीम उसके साथ खेलने के लिये भारत आती है। भारत की टीम दक्षिण अफ्रीका का छोड़कर क्रिकेट खेलनेवाले हर देश के साथ टेस्ट मैच खेल चुकी है। अब तक खले गए टेस्ट मैचों में भारत को विजय बहुत कम ही मैचों में मिल पाई है, अधिकांश मैच अनिर्णीत ही समाप्त हुए है। 1971 ई. तक भारत के साथ हुए टेस्ट मैचों का रिकार्ड इस प्रकार है -
देश
मैच विजय पराजय अनिर्णीत इंग्लैंड 43 6 19 18 वेंस्ट इंडीज 28 1 12 15 आस्ट्रेलिया 25 3 16 6 न्यूजीलैंड 16 7 2 7 पाकिस्तान 15 2 1 12
127 19 50 58
विजित मैचों का विवरण इस प्रकार है-
वषर् स्थान प्रतिपक्षी वजयमान कप्तान
1 1951-52 मद्रास इंग्लैंड 1 पारी 8 रन विजय हजार 2 1952-53 दिल्ली पाकिस्तान 1 पारी 70 रन लाला अमरनाथ 3 1952-53 बंबइ पाकिस्तान 10 विकेट लाला अमरनाथ 4 1955-56 बंबई न्यूजीलैंड 1 पारी 27 रन पाली उमरीगर 5 1955-56 मद्रास न्यूजीलैंड 109 रन पाली उमरीगर 6 1959 कानपुर आस्ट्रेलिया 116 रन जी. एस. रामचंद्रन 7 1961-62 कलकत्ता इंग्लैंड 187 रन नारी कांट्रेक्टर 8 1961-62 मद्रास इंग्लैंड 128 रन नारी कांट्रेक्टर 9 1964 बंबई आस्ट्रेलिया 2 विकेट मंसूरअली खाँ (पटौदी के नवाब) 10 1965 दिल्ली न्यूजीलैंड 7विकेट मंसूरअली खाँ (पटौदी के नवाब) 11 1968 ड्यूनेडिन न्यूजीलैंड 5विकेट मंसूरअली खाँ (पटौदी के नवाब) 12 1968 वेलिगटन न्यूजीलैंड 7विकेट मंसूरअली खाँ (पटौदी के नवाब) 13 1968 आकलैंड न्यूजीलैंड 272 रन मंसूरअली खाँ (पटौदी के नवाब) 14 1969 बंबई न्यूजीलैंड 60विकेट मंसूरअली खाँ (पटौदी के नवाब) 15 1969-70 दिल्लीश् आस्ट्रेलिया 7विकेट मंसूरअली खाँ (पटौदी के नवाब) 16 1971 पोर्ट ऑव स्पेन वेस्टइंडीज 7विकेट
अजीत वाडेकर 17 1971 ओवल इंग्लैंड 4विकेट
अजीत वाडेकर
भारत के विख्यात खिलाड़ियों में रणजीत सिंह, दिलीप सिंह, इफ्तिखार अली खाँ (नवाब पटौदी), सी. के. नायडू, अमर सिंह, अमरनाथ मुहम्मद निसार, विजय मर्चेंट, वीनू मांकड, मुश्ताक अली, पाली उमरीगर, दिलीप सरदेसाई, सुभाष गुप्ते, ई. ए. एस. प्रसन्ना, अजित वाडेकर, फारूख इंजीनिजर, जासू पटेल, सुनील गावस्क, विजय हजारे, पंकज राय, बुद्धि कुंदरन् हैं।
रणजीत सिंह की शिक्षा इंग्लैंड में हुई थी और वे इंग्लैंड की ओर से ही खेलते थे। 1955-56 ई. में न्यूजीलैंड के विरुद्ध टेस्ट श्रृंखला में मद्रास में हुए अंतिम टेस्ट मैच में पहले विकेट की साझादारी में वीनू मांकड़ और पंकज राय ने 413 रन बनाकर विश्व रिकार्ड स्थापित किया है। इस प्रकार पाँच टेस्ट मैचों की एक श्रृंखला में बुद्धि कुंदरन् ने 1964 में 525 रन बनाए थे जो उस समय तक विश्व का रिकार्ड था जिसे बाद में दक्षिण अफ्रका के डेनिस लिंडये पे तोड़ा। विश्व के उल्लेखनीय खिलाड़ियों को सम्मानित करने के लिये प्रतिवर्ष विस्डन अलंकरण दिया जाता है। यह अलंकरण अब तक सात भारतीय खिलाड़ियों को प्राप्त हो चुका है। वे हैं- रणजीत सिंह (1896); दिलीप सिंह (1929); नवाब पटौदी (इफ्तिखार अली खाँ, 1932); सी. के. नायडू (1933); विजय मर्चेंट (1937); वीनू मांकड (1947) ; नवाब पटौदी (मंसूर अली खाँ,1964)।
देश में क्रिकेट के प्रचार प्रसार के निमित्त क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के तत्वावधान में प्रतिवर्ष विभिन्न प्रतियोगिताएँ होती है।
(1) रणजी ट्राफी----इसे रणजीत सिंह की स्मृति में पटियाला के महाराज भूपेंद्र सिंह ने 1934 में प्रदान किया था। इस प्रतियोगिता में प्रादेशिक टीमें भाग लेती हैं।
(2) ईरानी ट्राफी-----इसे जे. आर. ईरानी की स्मृति में स्पेंसर बंधुओं ने 1961 में प्रदान किया था। इस प्रतियोगिता में रणजी ट्राफी के विजेता और भारत की शेष टीमों के चुने खिलाड़ी भाग लेते हैं।
(3) दिलीप सिंह ट्राफी-------अंत:क्षेत्रीय आधार पर अखिल भारतीय क्रिकेट चैंपियनशिप के लिये यह ट्राफी 1961 ई. में दिलीप सिंह के नाम पर स्थापित की गई है।
(4) राहिंटन बारिया कप-----यह पुरस्कार विश्वविद्यालयों की टीमों के बीच प्रतियोगिता के निमित्त दी जाती है।
(5) कूच बिहार ट्राफी-------स्कूली बालकों में क्रिकेट के प्रसार के निमित्त इसका आयोजन 1950 ई. में किया गया था। इसमें 18 वर्ष से कम उम्र के खिलाड़ी भाग लेते हैं।
महिलाओं में क्रिकेट------क्रिकेट सामान्यत: पुरुषों का खेल है, पर इस खेल को महिलाएँ भी खेलती हैं। 1747 ई. में महिलाओं के दो दलों के बीच इंग्लैंड में क्रिकेट खेले जाने का उल्लेख मिलता है। 1778 ई. के छपे एकचित्र में एक महिला खिलाड़ी का अंकन मिलता है। वह दो स्टंपोंवाले विकेट पर खड़ी दिखाई गई है। 19 वीं शती तक महिलाएँ अपने स्थानीय उत्साह से क्रिकेट खेलती रहीं। 1890 ई. में पहली बार व्यावसायिक प्रशिक्षकों से प्रशिक्षित 11-11 खिलाड़ियों के दोे दलों के बीच प्रदर्शन के निमित्त खेल खेले गए। 1927 ई. में पहली बार इंगलिश वूमेंस क्रिकेट असोशिएशन की स्थापना हुई और धीरे धीरे देशभर में कई सौ की संख्या में क्रिकेट क्लबों की स्थापना हो गई। उसके बाद आस्ट्रेलिया में भी वूमेंस क्रिकेट काउंसिल बनी और दोनों देशों के खिलाड़ी एक दूसरे के देश में खिलाड़ी एक दूसरे देश में खेलने जाने लगे।
भारत में व्यवस्थित रूप से महिला क्रिकेट का आरंभ फरवरी, 1973 ई. में भारतीय महिला क्रिकेट संघ की स्थापना केे बाद हुआ । संघ की और से महिलाओं के प्रशिक्षण के लिये समय समय पर शिविरों का आयोजन किया जाने लगा। साथ ही क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर रानी झाँसी क्रिकेट प्रतियोगिता का भी आयोजन कि या अंतरक्षेत्रीय रानी झाँसी ट्राफी प्रतियोगिता प्रथम बार नवंबर, 1974 ई. में कानपुर में दूसरी बार अक्तूबर, 1975 ई. में इंदौर में हुई। प्रथम राष्ट्रीय महिला क्रिकेट प्रतियोगिता अप्रैल, 1976 ई. में पूना में आयोजित की गई जिसमें केवल बंबई, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के दलों ने भाग लिया। इसमें बंबई प्रथम और महाराष्ट्र द्वितीय रहा। द्वितीय राष्ट्रीय प्रतियोगिता 1973 ई. के दिसंबर में वाराणसी में हुई। इसमें बंगाल, बंबई, बुंदेलखंड, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक तथा उत्तर प्रदेश ने भाग लिया। इसमें बंगाल विजयी रहा। तृतीय प्रतियोगिता जनवरी, 1975 ई. में कलकत्ता में हुई। इसमें विभिन्न राज्यों के 14 दलों ने भाग लिया। इस बार भी बंगाल विजयी रहा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय महिला टीम ने फरवरी, 1975 ई. में आस्ट्रेलिया की महिला टीम के साथ भारत में ही तीन टेस्ट मैच खेले और सभी में बराबर रही। इसके अतिरिक्त चार क्षेत्रीय मैच भी हुए जिनमें केवल एक में भारत की विजय हुई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ