क्षीरी
क्षीरी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 268 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | राजकुमार श्रीवास्तव |
क्षीरी (मैना Manna ओलिएसी, Oleaceae)। एक ओषधि मालतीकुल के पौधे फ्रैक्सिनस ओरनस लिन (Fraxinus Ornus Linn; Manna ash tree) से प्राप्त होती है। यह पौधा दक्षिण यूरोप का देशज है और ओषधि के लिए इटली और विशेषकर सिसिली में उगाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में इसमें श्वेत पुष्प के गुच्छे निकल आते हैं। जब पौधा लगभग आठ वर्ष का एवं उसके तने का व्यास कम से कम तीन इंच का हो जाता है, तब जुलाई या अगस्त में भूमि के ऊपरवाले तने की छाल में केवल एक ओर प्रति दिन डेढ़ से दो इंच लंबी एक अनुप्रस्थ काट (incision) लगाई जाती है। प्रत्येक कटन एक दूसरे से प्राय: एक अथवा दो इंच ऊपर लगती है। इन कटनों में से शर्करायुक्त स्राव (exudation) निकलता है जिसको तने पर ही सूखने दिया जाता है। इसी को क्षीरी (Flake manna) कहते हैं। कटनों में लकड़ी आदि के टुकड़े खोंस देने से उनपर क्षीरी जम जाती है जो सबसे उत्तम होती है। इसको मैना आ कानोलो (Manna a cannolo) कहते हैं।
क्षीरी जल एवं ऐलकोहल में घुल जाती है और इसके द्वारा चमकीले समचतुर्भुज स्तंभ (rhombic prism) और सूचियों के रूप में प्राप्त होती है। क्षीरी में 60 से 90 प्रतिशत मैनिटोल (Mannitol) [C6H8 (OH)6], फ्रेक्सिन नामक प्रतिदीप्त ग्लूकोसाइड (fluorescent glucoside), शर्कराएँ ( Manninotriose और Manneotetrose) और श्लेष्म (Mucilage)और रेज़िन इत्यादि पाए जाते हैं। यह हलकी रेचक ओषधि है। मीठी होने के कारण बच्चों को जुलाब के लिए भी दी जाती है। इसकी सबसे अधिक खपत दक्षिणी अमरीका में होती है। अन्य पौधों के रस से भी कई प्रकार की क्षीरियाँ बनाई जाती है, परंतु उनमें मैनिटोल नहीं होता।
टीका टिप्पणी और संदर्भ