खतना
खतना
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 289 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | सैयद अतहर अब्बास रिज़वी |
खतना सामी (Semitic) प्रथा है जो यहूदियों एवं कुछ अन्य लोगों में बहुत पहले से प्रचलित थी और जिसे अरब में धार्मिक आदर्श का रूप दे दिया गया। प्राय: पुरुषों के खतने का ही प्रचार पाया जाता है, यद्यपि अफ्रीका की गैला (Galla) और होटेंटाट (Hotantot) आदि जातियों में स्त्रियों का भी खतना होता था। अरबी में यह शब्द खितान, खितान तथा खतना तीन रूपों में प्रयुक्त होता है। लिंग के अगले भाग की त्वचा काट देने की प्रथा को खतना कहते हैं। इसका उल्लेख कुरान शरीफ में कहीं नहीं है और न किसी अन्य ग्रंथ से इस बात का पता चलता है कि हजरत मुहम्मद का खतना हुआ था। कहा जाता है, यह प्रथा हजरत इब्राहीम पैगंबर के समय से प्रचलित हुई। सहीह बुखारी की एक हदीस से पता चलता है कि हज़रत इब्राहिम का खतना 8 वर्ष की अवस्था में हुआ था। इसी प्रकार जब अब्बास से यह पूछा गया कि हजरत मुहम्मद की मृत्यु के समय आपकी क्या अवस्था थी तो उन्होंने उत्तर दिया कि उस समय मेरा खतना हो चुका था। सहीह बुखारी से इस बात का भी पता चलता है कि हजरत मुहम्मद ने खतना कराने का आदेश मुसलमानों को दिया था, इसी कारण इसे सुन्नत कहा जाता है। बच्चे के जन्म के सात दिन के भीतर ही खतना करा देना बड़ा उत्तम माना जाता है किंतु सात वर्ष से 12 वर्ष की अवस्था के भीतर मुसलमान खतना अवश्य करा देते हैं। जो लोग अधिक अवस्था में इस्लाम स्वीकार करते हैं उनके लिए, उनकी आयु को देखते हुए, यदि वे चाहें तो खतना न भी कराएँ किंतु खतना करा लेना सराहनीय समझा जाता है। मुसलमानों के लिये अकबर खतना आवश्यक नहीं मानता था। लिंग के कुछ रोगों के लिये भी लिंग के अगले भाग की त्वचा कटवा देने की चिकित्सक सलाह दिया करते हैं। भारतवर्ष में खतना प्राय: नाई अथवा जर्राह करते हैं। खतना करने की विधि बड़ी विचित्र है जिसमें नाई अथवा जर्राह ही कुशल होते हैं। पहले एक सलाई लिंग के अग्र भाग से अंदर की ओर डाली जाती है और सुपारी तथा उसके ऊपर की खाल के बीच उस सलाई को गोलाई से घुमाया जाता है ताकि यह पता चल जाय कि सुपारी का घाव कहाँ पर है और किसी जगह पर अप्राकृतिक रूप से खाल जुड़ी तो नहीं है। लिंग के ऊपर की खाल को फिर आगे की ओर खींचा जाता है और बाँस के खपाचों की बनी चिमटी (जो 5 या 6 इंच लंबी और चौथाई इंच मोटी होती है और एक सिरे पर एक इंच की दूरी तक तार से या डोरे से बांध दी जाती है) को तिरछा करके ऊपर से लिंग को फाँसा जाता है। चिमटी की पकड़ का स्थान जड़ से डेढ़ इंच छोड़कर तथा अग्रभाग से पौन इंच ऊपर की ओर होता है। चिमटी से कसकर पकड़ने पर बच्चे को तकलीफ तो होती है परंतु थोड़ी देर के लिए ही, क्योंकि तुरंत ही नाई उस्तुरे से उस ऊपरी खाल को क्षण भर में काट देता है। थोड़ा सा रक्त निकलता है परंतु नाई उस पर सादी राख या जले हुए चीथड़ों की राख लगा देता है जिससे रक्त बहना बंद हो जाता है। खतने के समय प्राय: बड़ा जश्न मनाया जाता है। मुगलों के इतिहास में अकबर के खतने का बड़ा ही विशद विवरण दिया गया है। तदुपरांत मुगलों के संबंध में जितने भी ग्रंथ लिखे गए उनमें शाहजादों के खतनों का विशेष उल्लेख हुआ।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं. ग्रं.-----सहीह बुखारी : डिक्शनरी ऑव इस्लाम; मुगलकालीन भारत : हुमायूँ, भाग 1; इन्साइक्लोपीडिया ऑव रेलिजन ऐंड एबिक्स, खंड 3 (दे. Cirumcision)।