खनिज विज्ञान

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खनिज विज्ञान
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 294
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक महाराजनारायण मेहरोत्रा

खनिज विज्ञान या ख़ानिजी खनिज (mineirals) समांग (homogeneous) निर्जीव पदार्थ हैं, जो हमें प्रकृति से प्राप्त होते है तथा जिनका भौतिक और रासायनिक संघटन निश्चित होता है। खनिजों के योग से शिलाएँ बनती हैं। खनिजों का अध्ययन करनेवाले शास्त्र को हम खनिज विज्ञान या खानिजी कहते है। इस विज्ञान के अंतर्गत खनिजों के भौतिक, रासायनिक तथा प्रकाशीय गुणों का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त खनिजों का निष्कासन और वितरण भी खनिजों के क्षेत्र में आता है।

खनिजों का अन्य विज्ञानों से निकट संबंध है। खनिजों के भौतिक तथा प्रकाशीय गुणों के अध्ययन के लिये भौतिकी का ज्ञान आवश्यक है। उनका रासायनिक विश्लेषण रसायन पर आधारित है। खनिजों के मणिभों के विस्तृत अध्ययन के लिये गणित का आश्रय लेना पड़ता है। खनिजों का वितरण भूगोल की परिधि में आता है। उत्खनन और धातुओं से तो खनिज विज्ञान का घनिष्ठ संबंध है। उत्खनन से हम खनिजों को बाहर निकालने और धातुकर्म से उपयोगी धातु प्राप्त करते हैं।

खनिजी का इतिहास-अभिलेखों से ज्ञात हैं कि पौराणिक युग में भी मनुष्यों का ध्यान खनिजों की ओर आकर्षित हुआ था, पर कब से मनुष्य ने खनिजों का उपयोग आरंभ किया, यह कठिन है। कदाचित्‌ मानवोत्पत्ति के साथ साथ खनिजों का उपयोग शुरू हो गया होगा। दीर्घकाल से मनुष्य खनिज हेलाइट (सेंधा नमक) का उपयोग करता चला आ रहा है। ऐतिहासिक काल को खनिजों के आधार पर ही विद्वानों ने पाषाण युग, ताम्र युग, लौह युग आदि में विभाजित किया है।

खनिजों पर सबसे प्राचीन ग्रंथ थियफ्रोैस्टस (Theophrastus) (लगभग 315 ई. पू.) का लिखा है, जिसमें खनिजों को (1) धातु, (2) पत्थर तथा (3) मिट्टी तीन भागों में बाँटा है। दूसरा उल्लेखनीय ग्रंथ, प्लिनी का हिस्टोरिया नेचुरालिस (Historia Naturalis) 77 ईस्वी में लिखा गया था जिसमें खनिजों को धातु, अयस्क (Ores), पत्थर तथा रत्न, चार भागों में विभक्त किया है।

16वीं शती में सैक्सनी के रसायन के प्रोफेसर जॉर्ज ऐग्रिकोला ने खनिजविज्ञान पर बहुमूल्य ग्रंथ प्रकाशित किए। इनमें प्रमुख खनिज अयस्कों के विस्तृत वर्णन के साथ साथ उनके खनन, संक्रेद्रण तथा धातुप्राप्ति का भी उल्लेख है। इनके दिए कुछ खनिजों के नाम आज भी प्रचलित हैं।

16वीं तथा 17वीं शती में खनिजों पर कार्य करनेवाले वैज्ञानिकों में गेसनर (K. von Gesner), ऐन्सेल्म बोईथियस डि बूड (Anselm Boethius de Boodt) तथा इरैसमस बारथोलिनस (Erasmus Bartholinus) उल्लेखनीय हैं। ऐन्सेल्म ने मूल्यवान्‌ पत्थरों तथा गेसरनर ने खनिजों पर ग्रंथ लिखे हैं।

1725 ई. में हेकेल (J. F. Henckel) का ग्रंथ पाइराइटोलॉजिया (Pyritologia) प्रकाशित हुआ। उसके दस वर्ष पश्चात्‌ कार्ल लिने ने सिस्टेमा नैचुरल (Systema Natural) ग्रंथ की रचना की। 18वीं शती के मध्य भाग में वैलेरियस (J. G. Wallerius) ने खनिजों के रासायनिक गुणों के अध्ययन पर जोर दिया।

पर विज्ञान के रूप में खानिजी की प्रगति 18वीं शती के अंतिम भाग में आरंभ हुई। इस समय मणिभ विज्ञान (Crystallography) की नींव पड़ी। रोम द लिल (Rome de 1, Isle) ने एक ही पदार्थ के मणिभों की भिन्न भिन्न आकृतियों के संबंधों का अध्ययन किया तथा मणिभों के कोणों की माप की।

ऐबे हाउई (Abbe Hauy) ने समामिति के नियम (Laws of Symmetry), परिमेय घातांक के नियम (Laws of Rational Indices), खनिजों की विदलन सतह, उनकी मणिभ आकृति के संबंध तथा मणिभों की मौलिक रचना आदि हमें प्रदान की हैं, जिससे मणिभ विज्ञान के जन्मदाता के रूप में वे प्रसिद्ध हैं।

हाउई के नियमों के आधार पर 19वीं शताब्दी में खनिज अध्ययन में तीव्रता आई। इस काल के मुख्य खनिज वैज्ञानिकों में हैसेल, डाना, प्रियूस्टर, फ्रांकेन हाइम, ब्रेविस, फैडरोव आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

खनिजों के गुण----खनिजों की पहचान के लिये उनके भौतिक और रासायनिक गुणों का अध्ययन आवश्यक है। मुख्य भौतिक गुण निम्नलिखित हैं :

आकृति, (2) रंग और चूर्ण का रंग, (3) चमक, (4) कठोरता, (5) विदलन, (6) टूट, (7) आपेक्षिक घनत्व, (8) स्पर्श, स्वाद तथा गंध और (9) नम्यता तथा प्रत्यास्थता।

आकृति----खनिजों के रूप तथा आकृति का ठीक ठीक अध्ययन तभी संभव है जब वे पूर्ण मणिभ रूप में उपलब्ध हों। पर पूर्ण और सुंदर मणिभ दुर्लभता से प्राप्त होते हैं। आदर्श मणिभों की रचना के लिये मणिभीकरण क्रिया का स्वतंत्र पर्यावरण में होना आवश्यक है। स्वतंत्र पर्यावरण की अनुपस्थिति में खनिजों में निम्नलिखित आकृतियाँ पाई जाती हैं- सूच्याकार, उदाहरण स्टिबनाइट (Stibnite) फलकासम, उदाहरण कायनाइट (Kyanite); गुच्छाकार, उदाहरण कैल्सिडोनी (Chalcedony); स्तनितस्तन जैसी आकृति, उदाहरण मैलेकाइट (Malachite); रेशेदार, जैसे ऐस्बेेस्टस (Asbestos); परतदार, जैसे अभ्रक (Mica); दानेदार, जैसे क्रोमाइट (Chormite); वृक्काकार-गुर्दे के समान-जैसे हीमेटाइट (Hematite); पटलाकार, जैसे बैराइट (Barite); कलायाश्मिक (pisolitic), चने के समान गोल दाने का समूह, जैसे बॉक्साइड (Bauxite) आदि। रंग और चूर्ण का रंग-----खनिजों के वास्तविक रंग उनके रासायनिक संघटन तथा आंतरिक परमाणु व्यवस्था दोनों पर निर्भर करते हैं। एक ही रासायनिक संघटन के दो खनिज, ग्रैफाइट और हीरा, क्रमश: काले और रंगहीन होते हैं। इन दोनों के रासायनिक संघटन एक से है, पर भौतिक रचनाएँ भिन्न भिन्न हैं।

एक ही खनिज, उसमें विद्यमान विषमताओं के कारण, विभिन्न रंगों का होता है। कैल्साइट रंगहीन होता है, पर बहुधा श्वेत, नीले तथा पीले रंग का भी मिलता है।

साधारणत: खनिज तथा उसके चूर्ण का रंग एक सा होता है। पर बहुत से ऐसे भी खनिज हैं जिनके चूर्ण का रंग उनके रंग से भिन्न होता है। खनिज के चूर्ण का रंग पकी चीनी मिट्टी की खुरदुरी सतह पर चूर्ण को रगड़ने से देखा जा सकता है। पाइराइट का रंग पीतल की तरह पीला होता है, पर इस खनिज के चूर्ण का रंग काला होता है। अयस्क खनिजों (ore minerals) की पहचान में यह गुण विशेष रूप से सहायक होता है। चमक----खनिजों की चमक उनकी सतह से परावर्तित प्रकाश की मात्रा और गुण पर निर्भर है। अधिकतर धातु खनिजों की चमक धात्विक (metallic) तथा अधातु खनिजों की चमक अधात्विक होती है। अधात्विक चमक कई प्रकार की हो सकती है, जैसे हीरेसम, मोतीसम, रालसम, काचोपम (काच या टूटे शीशे की तरह), जैसे क्वार्टज्‌ में। रेशेदार खनिजों की चमक रेशमी होती है। इसके विपरीत कुछ खनिजों में चमक नहीं होती, जैसे केओलिनाइट (Kaolinite)। कठोरता----खनिजों की कठोरता एक खनिज को दूसरे खनिज से रगड़ने पर जानी जाती हैं। एक खनिज, जो दूसरे, को आसानी से खुरच देता है, अपेक्षाकृत कठोर होता है। इस प्रकार खनिजों की तुलनात्मक कठोरता मापी जाती हैं। सुप्रसिद्ध खनिजज्ञ मोस (Mohs) ने 1820 ई. में खनिजों की कठोरता मापने के लिए एक पैमाना तैयार किया जो आज भी उपयोग में लाया जाता है तथा उनके रचयिता के नाम पर मोस का कठोरता मापक कहलाता है। इस मापक में दस खनिज हैं जो बढ़ती हुई कठोरता के अनुसार व्यवस्थित रहते हैं। इन खनिजों के नाम क्रम से नीचे दिए गए हैं :

टाल्क (Talc), 2. जिपसम (Gypsum), 3. कैल्साइट (Calcite), 4. फ्लोराइट (Fluorite), 5. ऐपेटाइट (Apatite), 6. फेल्सपार (Feldspar), 7. क्वार्टज्‌ (Quartz), 8. पुष्पराग (Topaz), 9. कुरुविंद (Corundum) तथा 10. हीरा (Diamond)।

इन खनिजों में टाल्क सबसे मुलायम तथा हीरा सबसे कठोर है। इनकी कठोरता यथाक्रम 1 और 10 है। यदि कोई खनिज फ्लोराइट खुरच देता है और ऐपेटाइट से खुरच जाता है तो उस खनिजे की कठोरता 4 से 5 के बीच में होगी। इस प्रकार इस मापक के भिन्न भिन्न अवयवों से रगड़नें पर वांछित खनिज की कठोरता जानी जा सकती है।

इस मापक के सबंध में यह तथ्य जानना आवश्यक है कि मापक की कठोरता कोई निश्चित अनुपात में नहीं बढ़ती, अर्थात्‌ कैल्साइट टाल्क से तीन गुना तथा ऐपेटाइट टाल्क से पाँच गुना कठोर नहीं है। यह एक स्वच्छंद (arbitrary) मापक है।

उपर्युक्त मापक का उपयोग प्रयोगशालाओं में किया जाता है, पर वनों तथा पर्वतों पर भ्रमण करनेवाले भौमिकीविद् सुविधा की दृष्टि से एक अन्य मापक उपयोग में लाते है। इसे कठोरता नापने का क्षेत्र पैमाना कहते है :

1 से 2 तक कठोरतावाले खनिज नाखून से खुरच जाते हैं।

2 1/2 से 3 कठोरतावाले खनिज ताँबे के पैसे से खुरच जाते हैं।

3 से 5 तक कठोरतावाले खनिज चाकू से खुरच जाते हैं।

6 कठोरतावाले खनिज पर चाकू का निशान पड़ जाता है।

8 से 10 तक कठोरतावाले खनिज शीशे को क्रमानुसार सरलता से खुरच देते हैं।

खनिजों की कठोरता मापते समय कुछ सावधानी बरतना आवश्यक है। कुछ खनिज परिवर्तित अवस्था में पाए जाते है। अत: उनकी कठोरता अपेक्षाकृत कम हो जाती है। खनिजों की यथार्थ कठोरता जानने के लिये उनकी नई टूटी हुई सतह की जाँच करनी चाहिए। कुछ खनिजों में भिन्न दशाओं में कठोरता भिन्न भिन्न पाई जाती है, जैसे कायनाइट में। आंतरिक अणुव्यवस्था की विभिन्नता के कारण ऐसा होता है। कुछ खनिज खदान पर निकलने पर मुलायम होते हैं, पर कुछ समय के उपरांत कठोर हो जाते हैं, जैसे बॉक्साइट।

भाजन (Cleavage)-----अधिकतर खनिज विशेष दशाओं में सरलता से टूटते हैं और टूटने पर उनकी सतह चिकनी और समतल बनी रहती है। खनिजों के इस गुण को ही भाजन कहते हैं। भाजन की दिशाओं में अणु व्यवस्था दुर्बल होती है। भाजन कई दिशाओं में हो सकता है, जैसे अभ्रक में एक दिशा में, फेल्सपार में दो दिशाओं में, कैल्साइट में तीन दिशाओं में और स्फेलराइट में चार दिशाओं में। अभ्रक का भाजन आदर्श होता है। एक दिशा में इसके बहुत पतले पत्र अलग किए जा सकते हैं और हर पत्र में समान चिकनापन और चमक रहती है। यह खनिजों में इतना परिपूर्ण भाजन देखने को नहीं मिलता। यह ध्यान में रखना चाहिए कि सभी खनिजों में भाजन पृष्ठ नहीं विद्यमान होते, जैसे अमणिभीय खनिजों (amorphous minerals) में। भंग (Fracture)-----भाजन सतह के अतिरिक्त अन्य किसी दिशा में जब खनिजों को तोड़ा जाता है तब उसे भंग कहते है। भंग कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे शंखाभ (conchoidal)। इस प्रकार टूटने पर पृष्ठ चिकना और नतोदर होता, जैसे फ्लिंट (Flint) में, असम जैसा टूरमेलीन (Tourmalime) में। रेशेदार खनिजों के टूटने पर सतह असमान होती है और छोटे बड़े दोनों सतह पर दिखाई देते हैं। इस भंग को खपचीदार (splintery) कहते हैं। धातुओं के वितरण अधिकतर खुरदुरे (hackly) होते हैं। आपेक्षिक गुरुत्व (Specific Gravity)------खनिज के (हवा में) भार और उसके बराबर आयतनवाले पानी के भार के अनुपात को उस खनिज का आपेक्षित गुरुत्व कहते हैं। आपेक्षिक गुरुत्व एक गणितीय संख्या होती है। अत: खनिज हो पहचानने में इसका विशेष महत्व है। खनिजों का आपेक्षिक गुरुत्व नियत होता है, पर उन खनिजों का, जिनका यौगिक नियत (constant) नहीं होता, आपेक्षिक गुरुत्व यौगिक के साथ साथ बदलता है। उदाहरण के लिये समरूपी प्लेजियोक्लेस (Plagioclase) वर्ग में ऐल्बाइट (Albite), ओलिगोक्लेस (Oligoclase) ऐंडिजिन (Andesine) आदि के आपेक्षिक गुरुत्व भिन्न भिन्न होते हैं।

आपेक्षिक गुरुत्व जानने की बहुत सी विधियाँ हैं, पर सबसे सरल विधि है भारी द्रवों की सहायता से आपेक्षिक गुरुत्व निकालना। इसके लिए साधारणत: मेथिलीन आयोडायड (Methylene Iodide) द्रव (आ. गु. 3.22) प्रयुक्त किया जाता है। इसके लिए भिन्न भिन्न आपेक्षिक गुरुत्व के सूचक पहले से ही तैयार कर लिए जाते है, जैसे जिप्सम (आ. गु. 2.32), आर्थोक्लेस (Orthoclase), आ. गु. 2.56, क्वार्टज्‌ (Quartz) आ. गु. 2.65, कैल्साइट (Calcite) आ. गु. 2.72, ऐरेगोनाइट (Aragonite) आ. गु. 2.93, एपेटाइट आ. गु. 3.2 आदि। 3.3 से अधिक आपेक्षिक गुरुत्ववाले खनिजों के लिए मेथिलीन-आयोडाइड से भारी द्रव उपयोग में लाए जाते हैं। साधारणत-शिला निर्माणकारी खनिजों के आपेक्षिक गुरुत्व 1.5 से 3 तक रत्न पत्थरों के 2.2 से 4.6 तक, अयस्कों के 3 से 8 तक और धातुओं के 19 तक होते हैं। स्पर्श, स्वाद एवं गंध-स्पर्श करने पर कुछ खनिज चिकने उदाहरण सीपियोलाइट, कुछ साबुन की तरह, उदाहरण टाल्क (Talc) तथा सर्पेटीन (Serpentine), कुछ शीतल, उदाहरण सोना, चाँदी आदि प्रतीत होते हैं। जो खनिज जल में घुल जाते हैं उनमें स्वाद होता है, जैसे हेलाइट (सेंधा नमक)। कुछ खनिज रगड़ने या गरम करने पर गंध देते हैं, जैसे गंधक और आर्सोनिक खनिज। नम्यता तथा प्रत्यास्थता-कुछ खनिज नम्य होते हैं, अर्थात्‌ उनको आसानी से मोड़ा या झुकाया जा सकता है, उदाहरण टाल्क, क्लोराइट। कुछ खनिज आसानी से झुकाए जा सकते हैं, पर ज्यों ही बल हटाया जाता है, वे पुन: अपने पूर्व रूप में आ जाते हैं। खनिजों के इस गुण को प्रत्यावस्था कहते हैं। अभ्रक इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

इनके अतिरिक्त कुछ खनिजों को हथौड़े से पीटकर चादर का रूप दिया जा सकता है। यह गुण कुछ धातुओं, जैसे सोना, चाँदी, ताँबा आदि में पाया जाता हैं। कुछ खनिजों की पतली पतली चादरें काटी जा सकती हैं तथा कुछ के तार खींचे जा सकते हैं। कुछ खनिज चुंबकीय होते है जैसे मैग्नेटाइट (Magnetite)। कुछ अल्प चुंबकीय होते है, जैसे पिरहोटाइट, प्लैटिनम। कुछ खनिज ताप और विद्युत्‌ के सुचालक होते हैं तथा कुछ सुचालक। संपीड़िन या ताप के प्रभाव से कुछ खनिजों में ध्रुवत्व (Polarity) विकसित हो जाता है।

10 पारदर्शक-----खनिजों में कुछ भौतिक गुण सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखे जाते हैं, जैसे स्वरूप, रंग, विदलन, वर्तनांक (Refractive Index) तथा खनिज की भिन्न भिन्न दिशाओं में प्रकाश का व्यवहार। पारदर्शक खनिजों में अंतिम दो गुण अर्थात्‌ वर्तनांक तथा भिन्न भिन्न दिशाओं में प्रकाश के व्यवहार का अध्ययन अति महत्वपूर्ण है। जिन खनिजों का वर्तनांक सभी दिशाओं में समान होता है वे समदिक्‌ (isotropic) कहलाते हैं। इसके विपरीत, जिन खनिजों का वर्तनांक विभिन्न दिशाओं में भिन्न भिन्न होता है, वे विषमदिक्‌ (anisotropic) कहलाते हैं। कुछ खनिजों की भिन्न दिशाओं में प्रकाश का शोषण असमान होता है, अत: भिन्न भिन्न दिशाओं में खनिज के भिन्न भिन्न रंग दिखलाई देते हैं। इस परिवृत्ति को वर्णपरिवर्तन (Pleochroism) कहते हैं।

अपारदर्शक खनिज अयस्कों का अध्ययन अयस्क सूक्ष्मदर्शी (ore microscope) द्वारा किया जाता है। इन खनिजों की सतह को पालिश करके परावर्तित प्रकाश में उनका अध्ययन किया जाता है। इससे अयस्कों के भिन्न भिन्न अवयवों, उनके पारस्परिक संबंध, उनमें विद्यमान संरचनाओं तथा उनके उद्गम का ज्ञान प्राप्त होता है। अयस्क सूक्ष्मदर्शी से खनिज अध्ययन में एक नए युग का आरंभ हो गया है।

खनिजों के रासायनिक गुण-खनिज या तो रायायनिक तत्वों के रूप में पाए जाते हैं, या तत्वों के यौगिकों के रूप में। तत्व रूप में पाई जानेवाली मुख्य धातुएँ हैं : सोना, चाँदी, लोहा, ताँबा। कुछ अधातुएँ भी तत्व रूप में पाई जाती हैं, जैसे गंधक, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि। यौगिकों की रचना धातुओं और अधातुओं के मेल से होती है। अधिकतर खनिज सिलिकेट के रूप में पाए जाते हैं, फिर आक्साइड के रूप में, जैसे क्वार्टज्‌ (Silica SiO2) तथा कुरंड (Alumina, Al2 O3)। कुछ खनिज सल्फाइड के रूप में, जैसा गैलेना तथा पाइराइट्स, कुछ सल्फेट के रूप में, जैसे बेराइट (Barytes), कुछ कार्बोनेट के रूप में, जैस कैल्साइट आदि तथा कुछ फॉस्फेट, नाइट्रेट, क्लोराइड, फ्लोराइड, आदि के रूप में मिलते हैं।

खनिजों के अध्ययन के लिये उनका रासायनिक योग अत्यधिक महत्व नहीं रखता, क्योंकि एक ही रासायनिक आकृति के दो या दो से अधिक खनिज हो सकते हैं, उदाहरण के लिये रासायनिक तत्व के कार्बन के दो खनिज हैं, ग्रेफाइट और हीरा। रासायनिक सघंटन समान होते हुए भी इन दोनों के भौतिक गुण अलग अलग हैं। ग्रैफाइट काला, मुलायम तथा हल्का होता है; हीरा रंगहीन कठोर तथा भारी होता है। साथ ही, दोनों की अणव्यवस्था भी भिन्न भिन्न होती है। खनिजों के इस गुण को बह्वाकृतिकता (Polymorphism) कहते हैं।

अनुरूप (analogous) रासायनिक संयोग के खनिज बहुधा समान आकृति तथा लगभग समान भौतिक गुणवाले होते हैं। खनिजों के इस गुण को समाकृतिकला (Isomorphism) कहते हैं। समाकृतिकला का कारण भिन्न अनुरूप खनिजों में चेणुओं की समान व्यवस्था है। समाकृतिकता का सबसे अच्छा उदाहरण प्लेजियोक्लेस माला है नाइस माला के खनिज हैं : ऐल्बाइट, ओलिगोक्लेस (Oligoclase) , ऐंडीसीन, लैब्रोराइट (Labrodctite) , बाइटाउनाइट (Bytownite) और ऐनॉर्थाइट (Anorthite) । प्रथम खनिज ऐल्बाइट का योग है-Na Al Si3 O3 और अंतिम खनिज ऐनॉर्थाइ का योग है-Ca Al2 Si2 O8 शेष खनिज ऐल्बाइट और ऐनॉर्थाइट के भिन्न भिन्न मात्राओं में मिलने से बनते हैं। स्वयं ऐल्बाइट और ऐनॉर्थाइट में भी एक दूसरे की विद्यमानता रहती हैं। इस प्रकार इस माला के सभी खनिज अनुरूप संयोग के हैं। ये सभी खनिज ट्राइक्लीनिक समुदाय के मणिभ बनाते हैं। इनके भौतिक गुणों का अंतर नियमित और क्रमिक है।

अधिकतर खनिज समांग मिश्रण ही होते हैं, जैसे गार्नेट, ऑलोबीन, टूरमेलीन इत्यादि। कैल्साइट CaCo3, डोलोमाइट, CaCO MgCO3, सिडराइट FeCO3, मैग्नेसाइट MgCO3, स्मिथसोनाइट ZnCO3 भी एक दूसरे खनिज के मूल तत्व के आंशिक या पूर्ण परिवर्तन से बने हैं। ऐसा उनकी रासायनिक व्याकृति से विदित है। ये सभी खनिज समाकृतिक हैं। सब के मणिभ हेक्सागोनल समुदाय के होते हैं तथा इन सबके गुण भी लगभग समान हैं।

खनिज आकृतियों में कभी कभी एक अन्य विशेषता दिखाई पड़ती है। खनिज ऐसी आकृति में मिलता है जो स्वत: उसकी नहीं होती। खनिज की इस आकृति को छद्माकृतिकता (Pseudomorphism) कहते हैं। हीमेटाइट के षट्कोणीय (hexagonal) वर्ग के मणिभ बनते है, पर कभी कभी यह घनाकार आकृति में, जो घन प्रणाली (cubic system) की प्रतीक है, मिलता है। इस प्रकार क्वार्टज्‌ (Quartz) कभी कभी कैल्साइट (Calcite) की आकृति में, सर्पेंटीन ऑलिवीन की आकृति में तथा गैलेना पाइरोमोरफाइट की आकृति में मिलता है। छद्माकृतिक खनिज की रचना एक खनिज के दूसरे खनिज द्वारा प्रतिस्थापन या पुन:- स्थापन द्वारा होती है। कभी कभी यह रचना एक खनिज के घुल जाने या नष्ट हो जाने पर उसके रिक्त स्थान में दूसरे खनिज के घोल के जमने से भी होती है। कभी कभी खनिज परिवर्तन द्वारा भी छद्माकृति का हो जाता है।

खनिजों के रासायनिक संबंध में एक बात और महत्वपूर्ण है। बहुत से खनिजों के योग में जल विद्यमान रहता है। कुछ खनिजों का जल साधारण ताप पर ही बाहर निकल जाता है, जैसे जिओलाइट, पर कुछ खनिजों, जैसे अभ्रक तथा मैलेकाइट का जल केवल उच्च ताप पर ही निष्कासित होता है। इसमें पहले को मणिभ का जल (water of crystallization) तथा पिछलेे को संघटन का जल (water of constitution) कहते हैं।

खनिजों के कृत्रिम निर्माण भी खनिज रसायन के अंतर्गत आते हैं। प्रयोगशालाओं में कृत्रिम विधि से बहुत से खनिज तथा कुछ रत्न पत्थर भी तैयार किए जा चुके हैं। कुछ ऐसे मणिभ भी तैयार किए गए हैं जिनके अनुरूप-खनिज प्रकृति में नहीं पाए जाते। रासायनिक प्रक्रियाओं के ज्ञान से खनिजों का उद्गम जानने में बड़ी सहायता मिलती है। इस दिशा में वाशिंगटन (सं. रा., अमरीका) के कार्नेगी इंस्टिट्यूट की भू-भौतिकीय प्रयोगशाला में किया गया कार्य विशेष रूप से सराहनीय है।

खनिजों के उद्गम और प्राप्तिस्थान------खनिज हमें भूपटल से प्राप्त होते हैं। भूपटल शिलाओं का बना है। शिलाएँ खनिजों की बनी होती है। ये शिलाएँ तीन प्रकार की हैं : आग्नेय (igneous), तलछटी (sedimentary) और कायांतरित (metamorphic)। आग्नेय शिलाएँ पृथ्वी के अंतरंग में विद्यमान तरल पाषणीय पदार्थ मैग्मा (magma), के जमने से बनती हैं। अपक्षरण के फलस्वरूप आग्नेय शिलाओं का विघटन होता है। इस विघटित पदार्थ के सागर में जमा होने पर तलछटी शिलाओं का निर्माण होता है। उच्च दाब और ताप के प्रभाव में आग्नेय और तलछटी शिलाओं का रूप बदल जाता है। नए नए खनिज निर्मित हो जाते है। इस प्रकार परिवर्तित शिलाओं को कायांतरित शिलाएँ कहते हैं।

भिन्न भिन्न शिलाओं का योग भिन्न भिन्न होता है। कुछ खनिज तो एक विशेष प्रकार की शिलाओं में ही पाए जाते हैं, जैसे क्रोमाइट (Chromite) के निक्षेप अति समाक्षारीय शिलाओं, पेरिडोटाइट (Peridotite) तथा ड्यूनाइट (Dunite) में ही मिलते हैं। टिन, टंग्स्टन तथा यूरेनियम धातुओं से खनिज अम्लीय आग्नेय शिलाओं में ही सीमित हैं। लौह और मैंगनीज के निक्षेप अधिकतर जलज उद्गम (sedimentary origin) के हैं। कोयला, तेल, चूने का पत्थर आदि हमें तलछटी शिलाओं से प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत ऐस्बेस्टस (Asbestos), सिलिमेनाइट (Sslimenite), गार्नेट (Garnet), काइनाइट (Kainite) आदि खनिज केवल कायांतरित शिलाओं में मिलते हैं।

खनिज निक्षेपों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है : समकालीन निक्षेप ओर उपकालीन निक्षेप। समकालीन निक्षेपों में खनिज और शिला का निर्माण साथ साथ होता है, किंतु उपकालीन निक्षेपों में शिलाओं का निर्माण होने के उपरांत खनिजों का जमाव होता है। मुख्य खनिज निक्षेप निम्नलिखित हैं :

द्रुतपुंज पृथक्करण (Magmatic segregations)------कुछ खनिज मैग्मा के ठंढा होने के पूर्व ही मणिभीय होकर शिला में किनारों पर या नीचे के भागों में जमा हो जाते हैं। बहुधा यह ऐसे खनिज होते है जिनका आपेक्षिक घनत्व अधिक होता है। क्रोमाइट, मैगनेटाइट तथा प्लैटिनम के निक्षेप द्रुतपुंज पृथक्करण द्वारा बने हैं। पेगमेटाइट निक्षेप (Pegmetite deposits)-------द्रुतपुंज के प्रथम भाग के मणिभीकरण के पश्चात्‌ अवशिष्ट द्रुतपुंज में द्रावक (fluxes) तथा गैसीय पदार्थों का आधिक्य हो जाता है। इस अवशिष्ट द्रव द्रुतपुंज के जमने से जो शिलाएँ बनती हैं उन्हें पेगमेटाइट कहते हैं। इन शिलाओं की विशेषता है इनके खनिजों का बृहदाकार। क्वार्टज्‌ फेल्स्पार,श्वेताभ्रक, बेरिल, गार्नेट एपेटाइट, टूरमेलीन आदि खनिजों के आर्थिक निक्षेप पेगमेटाइट शिलाओं में ही पाए जाते हैं। वात्यंशिक खनिज निक्षेप (Pneumatolytic deposits)-------अवशिष्ट द्रुतपुंज में विद्यमान गैसें और वाष्प अपने साथ बहुत सा खनिज पदार्थ ले जाती हैं, जो अंतत: शिलाओं में निक्षिप्त हो जाता है। इन निक्षेपों में पाए जानेवाले मुख्य खनिज हैं : टूरमेलीन (Tourmaline), फ्लोराइट (Fluorite) तथा कैसिटराइट (Cassiterite)। उष्णजलीय खनिज निक्षेप (Hydrothermal deposits)---------उपर्युक्त तीनों प्रकार की रचानाओं के उपरांत द्रुतपुंज में जल की प्रधानता रहती है। जल उष्ण होता है। इसका ताप लगभग 50 से 500 सेंटीग्रेड तक होता है। अत: जल में वाष्प भी मिली रहती है। इस उष्ण जल में बहुत से खनिज पदार्थ सरलता से घुली अवस्था में रहते हैं तथा जल के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान को सुगमता से ले जाए जाते हैं। उपयुक्त स्थान मिलने पर शिलाओं की दरारों में, भ्रंश समतलों में या विभंगों आदि में जल द्वारा ये खनिज पदार्थ जमा कर दिए जाते हैं, जैसे सीसा और जस्ते के निक्षेप अधिकतर उष्णजलीय उद्गम के हैं। कायांतरित खनिज निक्षेप (Metasomatic mineral deposits) ------अधस्थल जल में बहुत से क्षार मिले रहते हैं। इस जल में शिलाओं तथा उनमें विद्यमान खनिजों को घुलाने का सामर्थ्य होता है। इस प्रकार खनिज घोलों की रचना होती है। खनिज घोलों और शिलाओं की क्रिया के फलस्वरूप बहुधा ऐसा होता है कि शिला के एक कण के स्थान पर खनिज घोल से एक कण निक्षिप्त हो जाता है। इस प्रकार धीरे धीरे कण कण करके पूरी शिला का परिवर्तन हो जाता है। इसी परिवर्तन को कायांतरित पुनस्थापन (Metasomatic replacement) कहते हैं, जैसे कुछ हीमेटाइट (Haematite) निक्षेप। बिहार और उड़ीसा के हीमेटाइट निक्षेप कुछ विद्वानों के विचार में कायांतरण क्रिया के फलस्वरूप निर्मित हुए हैं। कुछ वैज्ञानिक तरल पाषाणीय पदार्थ (मैग्मा) के जल से बने निक्षेपों को भी इसी के अंतर्गत रखते हैं। कछारी निक्षेप (Placer deposist)---------पहाड़ी प्रदेशों में नदियाँ वेगवती होती हैं। उनमें शिलाओं के अपक्षरण से प्राप्त खनिजों और धातुओं को अपने साथ बहा ले जाने का सामर्थ्य होता है। पर मैदान में प्रवेश करने पर जलधारा का वेग कम हो जाता है। वह अधिक भारवाले खनिजों और धातुओं को अपने साथ आगे ले जाने में असमर्थ रहती हैं परिणामस्वरूप गति धीमी होने के साथ साथ भारी खनिज नदियों के किनारे या नीचे की बालू में बैठ जाते है। इस प्रकार बहुधा बालू में सोना, प्लैटिनम, मैग्नेटाइट, ज़रकन (Zircon) आदि के निक्षेप मिलते हैं। इन्हें ही कछारी निक्षेप कहते है। कछारी निक्षेपों के लिए दो बातें आवश्यक हैं : प्रथम खनिज भारी होना चाहिए, अर्थात्‌ उसका आपेक्षिक घनत्व अधिक होना चाहिए। द्वितीय, खनिज प्रतिरोधी होना चाहिए, अर्थात्‌ अपनी यात्रा के मार्ग में वह अपना स्वरूप बनाए रखे, जल में घुल न जाए तथा अपरिवर्तित रहे। भारत में भी बहुत सी नदियों की बालू में सोने के कण मिलते हैं। आंध्र प्रदेश में समुद्री किनारों की बालू में से ज़रकन, गार्नेट, मोनाज़ाइट (Monazite) आदि महत्वपूर्ण खनिज प्राप्त होते हैं।

तलछटी और कायांतरित शिलाओं में पाए जानेवाले खनिजों का वर्णन ऊपर किया जा चुका है।

खनिजों की नामकरण पद्धति (या नामावली) और वर्गीकरण------खनिजों के नामकरण की पद्धति अति प्राचीन है। ऋग्वेद में हिरण, रजत तथा अयस का उल्लेख है। इनका अर्थ क्रमश: सोना, चाँदी और लोहा है। इनके अतिरिक्त स्टिबियम (Stibium) के लिए अंजन, कुप्रभ (Cuprum) के लिए ताम्र, सल्फर (Sulphur) के लिए शुल्वारि, आर्सेनिक (Arsenic) के लिए नेपाली आदि नामों का प्रयोग भारत में प्राचीन काल से होता चला आया है। ग्रीस में पत्थरों के नामकरण के अंत में आइट (ite) शब्द का उपयोग किया जाता है। खनिज का नाम उसके प्राप्तिस्थान के नाम पर, या उसके अन्वेषक के नाम पर, या किसी बड़े वैज्ञानिक के नाम पर, अथवा खनिजों में विद्यमान किसी विशेष गुण के आधार पर, रखा जाता था और उसके अंत में बहुधा आइट जोड़ दिया जाता था। उदाहरण के लिए मैग्नेटाइट, कैल्साइट, हीमेटाइट, पाइरोल्यूसाइट (Pyrolusite), बायोटाइट (Biotite), ज़ोइसाइट (Zoisite), फ्लोराइट (Fluorite), विंचाइट आदि। इनमें हीमेटाइट, फ्लोराइट और मैग्नेटाइट नाम गुणों के आधार पर हैं तथा बायोटाइट, विंचाइट ज़ोइसाइट व्यक्तियों के नाम पर आधारित हैं। बहुत से खनिजों के नाम में आइट शब्द का प्रभाव भी है, जैसे फेल्सपार, बेरिल और गार्नेट, एवं कुछ नामों के अंत में आइट के स्थान पर ईन (ine) शब्द लगा है, जैसे नैफेलीन, औलिवीन, टूरमेलीन।

खनिजों की संख्या लगभग 6,000 है। खोज के फलस्वरूप नए नए खनिज तो प्रकाश में आते ही हैं, कभी कभी किसी खनिज का स्वतंत्र अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। खनिजों का वर्गीकरण भिन्न भिन्न आधार पर किया गया है, जैसे उपयोग के आधार पर, रासायनिक संरचना पर, मणिभ समुदाय के आधार पर एवं उत्पत्ति के आधार पर। पर उपर्युक्त कोई भी वर्गीकरण परिपूर्ण नहीं है। किसी भी एक वर्गीकरण से सबका काम नहीं चल सकता। कोई वर्गीकरण रसायनज्ञ के लिये उपयुक्त है, तो क्षेत्रीभौमिकीविद् के लिये अधिक लाभकारी नहीं, कोई वर्गीकरण मणिभकरण की दृष्टि से यदि महत्वपूर्ण है तो उससे खनिजों के गुण और उद्गम का पता नहीं चलता। खानिजी के विभिन्न ग्रंथों में दिए गए वर्गीकरण एक दूसरे से विस्तार में बिल्कुल भिन्न हैं। खानिजी के विशेषज्ञ डाना ने खनिजों को 1, प्राकृत तत्वों 2. सल्फाइडों , सेलेनाइडों, टेलुराइडों, आर्सेनाइडों तथा ऐंटीमोनाइटों, 3. सल्फो लवणों, 4. हैलॉइडों, 5. आक्साइडों, 6. आक्सीजन लवणों (कार्बोनेट, सिलिकेट आदि), 7. कार्बनिक अम्लों के लवणों (ऑक्ज़ैलेट आदि) तथा 8. हाइड्रोकार्बन यौगिकों के वर्गों में विभाजित किया है। अधिकतर वैज्ञानिक इसी आधार को लेकर चलते हैं तथा आवश्यकतानुसार इसमें कुछ संशोधन कर लेते हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ