खासा खासिया

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लेख सूचना
खासा खासिया
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 317
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक राजाराम शास्त्री

खासा खासिया असम प्रदेश के खासी तथा जयंतिया की पहाड़ियों में रहनेवाली एक मातृकुलमूलक जनजाति। इनका रंग काला मिश्रित पीला, नाक चपटी, मुँह चौड़ा तथा सुघड़ होता है। ये लोग हृष्टपुष्ट और स्वभावत: परिश्रमी होते है। स्त्री तथा पुरुष दोनों सिर पर बड़े बड़े बाल रखते हैं, निर्धन लोग सिर मुँडवा लेते हैं।

खासियों की विशेषता उनका मातृमूलक परिवार है। विवाह होने पर पति ससुराल में रहता है। परंपरानुसार पुरूष की विवाहपूर्व कमाई पर मातृपरिवार का और विवाहोत्तर कमाई पर पत्नीपरिवार का अधिकार होता है। वंशावली नारी से चलती है और संपत्ति की स्वामिनी भी वही है। संयुक्त परिवार की संरक्षिका कनिष्ठ पुत्री होती है। अब कुछ खासिए शिलांग आदि में संयुक्त परिवार से अलग व्यापार, नौकरी आदि कृषितर वृत्ति भी करने लगे हैं। परंपरागत पारिवारिक जायदाद बेचना निषिद्ध है। विवाह के लिए कोई विशेष रस्म नहीं है। लड़की और माता पिता की सहमति होने पर युवक ससुराल में आना जाना शुरू कर देता है और संतान होते ही वह स्थायी रूप से वही रहने लगता है। संबंधविच्छेद भी अक्सर सरलतापूर्वक होते रहते हैं। संतान पर पिता का कोई अधिकार नहीं होता।

खासियों में ईश्वर की कल्पना होते हुए भी केवल उपदेवताओं की पूजा होती है। कुछ खासियों ने काली और महादेव जैसे हिंदू देवदेवियों को अपना लिया है। रोग होने पर ये लोग ओषधि का उपयोग न कर संबंधित देवता को बलि द्वारा प्रसन्न करते हैं। शव का दाह किया जाता है और मृत्यु के तुरंत बाद काग की और कभी कभी बैल या गाय की भी बलि दी जाती है। मृत्युपरांत महीनों तक कर्मकांड का सिलसिला चलता रहता है और अंत में अवश्ष्टि अस्थियों को परिवार-समाधिशाला में रखते समय बैल की बलि दी जाती है और इस अवसर पर तीन चार दिन तक नृत्यगान तथा दावतें होती हैं। खासियों का विश्वास है कि जिनका अंत्येष्टि संस्कार विधिवत्‌ संपन्न होता है उनकी आत्माएँ ईश्वर के उद्यान में निवास करती हैं, अन्यथा पशु पक्षी बनकर पृथ्वी पर घूमती हैं।

खासिया खेतिहर हैं और धान के अतिरिक्त नारंगी, पान तथा सुपारी का उत्पादन करते हैं। ये लोग कपड़ा बुनना बिलकुल नहीं जानते और एतत्‌संबंधी आवश्यकता बाहर से पूरी करते है।

खासिया अनेकानेक शाखाओं में विभक्त हैं। खासी, सिंतेंग, वार और लिंग्गम, उनकी चार मुख्य शाखाएँ हैं। इनके बीच परस्पर विवाहसंबंध होता है। केवल अपने कुल या कबीले में विवाहसंबंध निषिद्ध है।

प्रत्येक कबीले में राजवंश, पुरोहित, मंत्री तथा जन सामान्य ये चार श्रेणियाँ हैं। किंतु वार शाखा में विशिष्ट सामाजिक श्रेणियाँ नहीं हैं। कबीले के सरदार या मंत्री संबंधित विशिष्ट श्रेणी के सदस्य ही बन सकते हैं। एक कबीले में स्त्री ही सर्वोच्च शासक होती है और वह अपने पुत्र अथवा भांजे को लिंगडोह (मुख्य मंत्री) बनाकर उसके द्वारा शासन करती है।

अनेक खासियों ने पिछले डेढ़ सौ वर्ष में ईसाई तथा हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया है, फिर भी विभिन्न मतावलंबी एक ही परिवार के सदस्य हैं। असम की राजधानी शिलांग खासियों के क्षेत्र में स्थित है; फलत: खासियों पर बाहरी संस्कृति तथा आधुनिक सभ्यता का बराबर प्रभाव पड़ रहा हैं। अब अनेक खासिए व्यापार तथा नौकरी और कुछ पढ़ लिखकर अध्यापकी एवं वकालत जैसे पेशे भी करने लगे हैं।[१]





टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स. मि. शा.