खोखो

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लेख सूचना
खोखो
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 336
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

खोखाे भारत का एक लोकप्रिय खेल है। इसका जन्मस्थान बड़ौदा कहा जाता है। यह गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों में अधिक खेला जाता है, किंतु भारत के अन्य प्रदेशों में भी इसका प्रचार अब बढ़ रहा है। यह खेल सरल है और इसमें कोई खतरा नहीं है। पुरुष और महिलाएँ दोनों समान रूप से इस खेल को खेल सकते हैं।

खोखो खेल में न किसी गेंद की आवश्यकता होती है, न बल्ले की। इसके लिये केवल 111 फुट लंबे और 51 फुट चौड़े मैदान की आवश्यकता होती है। दोनों और दस दस फुट स्थान छोड़कर चार चार फुट ऊँचे, लकड़ी के दो खंभे गाड़ दिए जाते हैं और इन खंभों के बीच की दूरी आठ बराबर भागों में इस प्रकार विभाजित कर दी जाती हे कि दोनों दलों के खिलाड़ी एक दूसरे की विरुद्ध दिशाओं की ओर मुंह करके अपने अपने नियत स्थान पर बैठ जाते हैं। प्रत्येक दल को एक एक पारी के लिए सात सात मिनट दिए जाते हैं और नियत समय में उस दल को अपनी पारी समाप्त करनी पड़ती है। दोनों दलों में से एक एक खिलाड़ी खड़ा होता है, पीछा करनेवाले दल का खिलाड़ी विपक्षी दल के खिलाड़ी को पकड़ने के लिए सीटी बचाते ही दौड़ता है। विपक्षी दल का खिलाड़ी पंक्ति में बैठे हुए खिलाड़ियों का चक्कर लगाता है। ाब पीछा करनेवाला खिलाड़ी उस भागनेवाले खिलाड़ी के निकट आ जाता है, तब वह अपने ही दल के खिलाड़ी के पीछे जाकर खोखो शब्द का उच्चारण करता है तो वह उठकर भागने लगता है और पीछा करनेवाला खिलाड़ी पहले को छोड़कर दूसरे का पीछा करने लगता है।

आज से पचास वर्ष पूर्व इस खेल का कोई व्यवस्थित नियम न था। खेल की लोकप्रियता के साथ इसके नियम बनते बिगड़ते रहे। 1914 ई. में पहली बार पूना के डकन जिमखाना ने अनेक मैदानी खेलों के नियम लिपिबद्ध किए और उनमें खोखो भी था। तब से उसके बनाए नियम के अनुसार, थोड़े स्थानीय हेर फेर के साथ यह खेल खेला जाता है।

खोखो की पहली प्रतियोगिता पूना के जिमखाने में 1918 ई. में हुई। फिर सन्‌ 1919 में बड़ौदा के जिमखाने में भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। तब से समय समय पर इस खेल की अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगिताएँ, होती रहती हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ