ग्लाइकोसाइड
ग्लाइकोसाइड
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 87 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
ग्लाइकोसाइड (Glycoside) को पहले ग्लूकोसाइड कहते थे, क्योंकि उस समय ग्लूकोज़ ग्लाइकोसाइडों का एक आवश्यक अंग समझा जाता था। पर अब ऐसे भी कुछ ग्लूकोसाइड पाए गए है जिनमें ग्लूकोज़ नहीं होता। ग्लूकोज के स्थान में दूसरी शर्कराएँ रहती हैं। अत: ग्लूकोसाइड नाम अब ग्लाइकोसाइड में बदल दिया गया है। ग्लाइकोसाइडों का एक आवश्यक अवयव शर्करा होती है और दूसरा अवयव अशर्करा या शर्करा भी हो सकता है। दूसरे अवयव को 'एग्लाइकोन' (Aglycone) या 'एग्लूकोन' (Aglucone) कहते हैं।
ग्लाइकोसाइड वनस्पतिजगत् में, अर्थात् पौधों की छालों, बीजों, फूलों तथा बीजों के छिलकों और फलों में पाए जाते हैं। ये जल में अल्पविलेय हैं। प्रकृति में इनका कर्य क्या है इस संबंध में कोई निश्चित मत नहीं है।
अनेक ग्लाइकोसाइड दवा के रूप में व्यवहृत होते हैं। सैलिसिन (Salicin) महत्वपूर्ण ज्वरानाशक ओषधि है। कौनवलवुलिन (Convulvulin) और गैलोपिन (galopin) रेचक होते हैं। सैपोनिन (Saponin) के अनेक उपयोग है। मसाले के रूप में सरसों का उपयोग उसमें उपस्थित ग्लाइकोसाइड के कारण है। डिजिटौक्सिन (Digitoxin), डिजिटैलिन (Digitalin), स्ट्रोफैंथिन् (Strophanthin) ग्लाइकोसाइड बहुत विषैले होते हैं और अल्पमात्रा में ओषधियों में प्रयुक्त होते हैं।
फूलों के विभिन्न रंग
लाल, पीले, हरे, नीले इत्यादि - ग्लाइकोसाइडों के कारण होते हैं। तिक्त बादाम का तिक्त स्वाद ऐमिगडैलिन (Amygadalin) नामक ग्लाइकोसाइड के कारण होता है। ऐमिगडैलिन में एक भंयकर, विषाक्त यौगिक, हाइड्रोसायनिक अम्ल, संयुक्त रहता है, जो जलविश्लेण से उन्मुक्त होता है। तिक्त बादाम के खाने से मृत्यु होने तक की सूचनाएँ मिली है।
कृत्रिम रीति से भी सरल ग्लाइकोसाइड तैयार हुए हैं। ऐसे ग्लाइकोसाइड दो प्रकार के, एल्फा और बीटा किस्म के पाए गए हैं। इनका व्यवहार इमलसिन नामक प्रकिण्व के प्रति विभिन्न होता है। अत: इमलसिन की क्रिया से इनका विभेद किया जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ