घंटा
घंटा
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 100 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | माधवाचार्य |
घंटा हिंदुओं की संस्कृति में घटावादन मंगलदायक है। वैष्णवों के लिये तो यह अनिवार्य है ही, बौद्ध और जैन संप्रदाय की अर्चना पद्धति में भी घंटा आवश्यक है। स्कंदपुराण के अनुसार गरुड़मूर्तियुक्त घंटा विष्णु को अति प्रिय है। ऐसा घंटा जिस घर में रहता है वहाँ सर्पभय नहीं होता। घंटानाद से जन्म और मृत्युभय मनुष्य को नहीं होते। इसी प्रकार ईसाई मत में भी घंटा पवित्र और शुभ है। घंटे का निर्माण करते समय अनेक धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं और घंटा जब बनकर तैयार हो जाता है तो विधिवत् उसक अभिषेक (Baptization) और नामकरण संस्कार होता है। घंटे पर पवित्र श्लोक अंकित किए जाते हैं। घंटे की ध्वनि के साथ पवित्र श्लोकों से मुखरित ध्वनि मंगलकारिणी मानी जाती है। १९वी शताब्दी तक सुशिक्षित पाश्चात्य भी ऐसा विश्वास करता था कि घंटाध्वनि से आँधी रुक जाती है।
प्रारंभ में किसी ईसाई के मरने पर घंटा बजता था, किंतु बाद में मृत्यु से कुछ पूर्व बजने क रीति प्रचलित हुई। घंटाध्वनि से मुमूर्षु का शरीर पवित्र और पिशाचभय से मुक्त हो जाता है, ऐसी मान्यता थी। अब यह विश्वास बहुत कुछ शिथिल हो चला है, फिर भी मृत व्यक्ति की समाधिक्रिया होने तक उसने सम्मान घंटा बजता है। नीदरलैंड के घंटे से शास्त्रीय संगीत ध्वनि निकालने का प्रयत्न हुआ। वहाँ के गिरजाघरों में नियमित समय के अंतर पर अत्यंत मधुर गुंजनमय स्वरों में घंटे बजते हैं। इनमें से कुछ यंत्रों की सहायता से बजाए जाते हैं। इंग्लैंड में ५६ घंटों को एक साथ बजाकर अत्यंत कर्णप्रिय स्वररचना प्रस्तुत की जाती है।
संसार का सबसे बड़ा घंटा
सन् १७३३ में ढाला गया यह घंटा मॉस्को के क्रेमलिन प्रासाद में लटकता है। यूरोप तथा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में जैसे विशाल घंटे पाए जाते हैं वैसे घंटों का भारत में अभाव है। बर्मा में बहुत से ऐसे घंटे हैं जिनमें ढोलक नहीं होता। इन्हें हरिण की सींग की हथौड़ी से बजाया जाता है। पीकिंग के एक मठ में १.५ टन भार का एक विशाल घंटा है। उसपर कुछ खुदवाकर उसे मठ के इतिहास का रूप दे दिया है। मॉस्को में एक बहुत बड़ा घंटा है। यह सचमुच घंटों का राजा है। इसकी ऊँचाई २० फुट ७ इंच, व्यास २२ फुट, परिधि ६३ फुट से अधिक तथा भार ४३,२०० पौंड है। घंटे का एक हिस्सा टूट गया है, जिसका भार ११ टन है। घंटे को उसकी विशालता और टूटे हुए हिस्से के कारण, जो द्वार जैसा लगता है, छोटा गिरजा (chaple) कहते हैं।
प्राचीन काल में काठ, शुक्ति आदि कम अनुनादी पदार्थों के घंटे बनते थें, किंतु सभ्यता के प्रथम चरण में अनुनादी कांस्य के घंटे बनने लगे। अब तीन या चार भाग ताँबा और एक भाग राँगा (टिन) की मिश्र धातु से घंटे बनते हैं। छोटे घंटे जस्ता तथा सीसा की मिश्र धातु के बनते हैं। घंटे के कोर की मोटाई उसके व्यास की १.१२ से १.१५ तक हो सकती है और ऊँचाई मोटाई की १२ गुनी। घंटा ढालकर बनाने और फिर से ठंढा करने में कई दिन का समय और अनेक सावधानियाँ आवश्यक होती हैं। यदि घंटा अच्छा है तो घंटा बजाने पर दो प्रकार की ध्वनि निकलती है, एक आघात स्वर या स्थायी स्वर (key note) और दूसरी गुंजन स्वर। (hum note)। और भी कई स्वरक (tones) होते हैं, किंतु यदि घंटे का निर्माण दोषरहित हुआ है तो ये स्वरक अप्रिय नहीं लगते। ऐसा घंटा चूँकि काफी मोटा ढला होता है, इसलिये कई वर्षों तक चलता है। घंटे का तारत्व (pitch) घटाने के लिये उसका व्यास बढ़ाना पड़ता है और तारत्व बढ़ाने के लिये व्यास कम करना पड़ता है। घंटे के अंदर की सतह को घिसकर पतली करने पर व्यास बढ़ता है और बाहरी कोर को रगड़कर व्यास घटाया जाता है। किंतु एक बार घंटा ढल जाने के बाद उसमें हेरफेर करने से उसके स्वरकों (tones) के गुण प्राय: नष्ट हो जाते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ