घटपर्णी

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लेख सूचना
घटपर्णी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 100
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक रामप्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक जोगेंद्रनाथ मिश्र

घटपर्णी (Nepenthes, Pitcher Plant) ये द्विदली वर्ग, नेपेंथेसी कुल का कीटभक्षी पौधा है, जो श्रीलंका और असम का देशज है। मुख्यतया ये पौधे शाक (herb) होते हैं और दलदली या अधिक नम जगहो में उगते हैं। पौधे तंतुओं के सहारे ऊपर चढ़ते हैं। ये तंतु पत्तियों की मध्यशिरा की विशेष वृद्धि के फलस्वरूप बनते हैं। तंतुओं के सिरेवाला भाग घड़े के आकार जैसा हो जाता है, जिसे घट (pitcher) कहते हैं। घड़े के मुख के एक ओर एक ढकना जुड़ा होता है, जो शिशु अवस्था में घट के मुख को बंद रखता है। घट का किनारा अंदर की तरफ मुड़ा होता है और मुखद्वार पर बहुत सी मधुग्रंथियाँ होती हैं। मधुग्रंथियों एवं पाचक ग्रंथियों की रचना समन होती है। पाचक ग्रंथियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है। तथा इनसे एक अम्लीय द्रव स्रावित होता है। नेपेंथीस स्टेनोफिला (Nepenthes Stenophylla) में प्रति घन सेंमी. में इन ग्रंथियों की संख्या 6,000 तक होती हैं, परंतु नेपेंथीस ग्रैसिलाइना (Nepenthes gracillina) में ये ग्रंथियाँ एक घन सेेंमी. में 100 ही होती है।

ये कीटभक्षी पौधे कीड़े मकोड़ों को अपनी ओर रंगीन चमकदार ढकने तथा मधुग्रंथियों द्वारा आकर्षित करते हैं। इस प्रकार आकर्षित कीट घट की चिकनी सतह से फिसलते हुए अंदर की ओर चले जाते हैं और अंत इसके प्ररोह 30-40 फुट लंबे घट के निचले भाग में स्थित तथा अनेक लंबे हरे घट होते हैं। द्रव में डूब जाते हैं। घट में संभवतया एक पाचक द्रव स्रावित होता है। इस द्रव में पड़नेवाला कीट पहले डूब जाता है। और तदुपरांत पचा लिया जाता है। यह कीटभक्षी पौधा कीड़ों को जिस प्रकार पचा लेता है वह क्रिया कुछ आर्श्चजनक है। कीटों के पाचन की दो विधियाँ बताई गई हैं। प्रथम विधि में पादप स्रवित द्रव से पाचन क्रिया करता है और दूसरी विधि में जीवाणुओं की सक्रियता के परिणामस्वरूप दूसरी दशा में कीटों का अपक्षीणन और सड़न होता है। जीवाणु सक्रियता खुले घड़े में स्वाभाविक है, अत: इसे एक अलग पाचन क्रिया बताना उचित नहीं है।

घटपर्णी (Nepenthes) के पुष्प एकलिंगी, नियमित और निपत्र रहित (ebracteate) होते हैं, पुष्पविन्यास एकवर्ध्यक्ष (raceme) होता है; नर पुष्प से परिपुष्प दो दो करके दो कतारों में लगे होते हैं (P 2+ 2); एक दंड में 4-16 तक पुंकेसर होते हैं। स्त्री पुष्प में जायांग (Gynaeceum) उत्तरीय, चतुर्गह्वरीय और चार स्त्रीकेसर (Carpels) होते हैं। ये स्त्रीकेसर संयुक्त होते हैं। इनमें असंख्य अधोमुख बीजांड (Anatropous ovules) कई पक्तियों में लगे होते हैं। संपुटिकाएँ (Capsules) चीमड़ (leathery) होती हैं। बीज हल्के होते हैं और इनके सिरे पर लंबे रोम के सदृश अवयव पाए जाते हैं। भ्रूण (Embryo) सीधा होता है, जो मांसल भ्रूणपोष (Endosperm) में रहता है। प्रकृति की विचित्रता प्रकट करने के लिए घटपर्णी रखी जाने योग्य वस्तु है। पर्ण में तंतु से युक्त घड़े को वायु में सुखा लेते हैं और फिर रिक्त स्थान में रूई भरते हैं, जिससे घड़े की प्राकृतिक आकृति संरक्षित रहती है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ