चगताई वंश
चगताई वंश
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 153 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | इरफान हबीब |
चगताई वंश चिंगेज खाँ के द्वितीय पुत्र चगताई के नाम पर 13वीं 14वीं शताब्दी में मध्य एशिया के मंगोल शसक का एक वंश। इसका राजनीतिक इतिहास आरंभ होता है चिंगेज खाँ की मध्य एशिया (1220 ई.) की विजय के पश्चात्, जब उसने चगताई को, जिसका शिविर उत्तर में ईला नदी के निकट कबायली प्रदेश में था, सिक्यांग ओर ट्रासोक्सियना की भूमि निर्दिष्ट की, चगताई की मृत्यु के पश्चात् (1242) उसके उत्तराधिकारी, खानों द्वारा (मंगोल शासक), इस खंड के अधीन शासक माने जाते रहे। मंगू (मोके) खान की मृत्यु के पश्चात् (1259) जब मंगोल साम्राज्य की एकता नष्ट हो गई, उकदई खाँ के पोते खैदू (कैदू) (1269-1301) ने मध्य एशिया में अपनी शक्ति स्थािपित की और चगताई शासक तुआ (दुआ) (1282-1306) ने, जो मुसलमान था, खैदू के पुत्र चाप्सू के आधिपत्य को सन् 1305 में समाप्त कर दिया। तभी से चगताई शासक स्वतंत्र खान हो गए। शीघ्र ही अपने गृहसंघर्षों के कारण उनकी शक्ति क्षीण हो गई और तर्याशीरिन (1326-34) की मृत्यु के पश्चात् उनका राज्य छिन्न भिन्न हो गया। महान् विजेता तैमूर (1370-1405) ने वस्तुत: इस वंश को हटा दिया, यद्यपि उसने और उसके प्रारंभिक उत्तराधिकारियों ने चगताई वंशजों को अपना खान बनाए रखा। परंतु तुगलक तैमूर (1342-63) ने सिक्यांग में चगताई शासकों की एक नवीन शाखा स्थापित की जिसने १६वीं शताब्दी के अंत तक अपना शासन स्थापित रखा। बाबर (जो भारतीय मुगल वंश का संस्थापक था) की माँ, इसी वंश की राजकन्या थी। इसी कारण मुगल स्वयं को चगताई वंश से संबंधित बतलाते हैं।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.- वि. बर्टहोल्ड फोर : स्टडीज़ ऑन दि हिस्ट्री ऑव सेंट्रल ऐशिया, खं 1, लाइडेन, 1956।