चालमापी
चालमापी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 201 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | (स्व.) गोरख प्रसाद |
चालमापी (स्पीडोमीटर) वे यंत्र हैं जों मोटरगाड़ियों में लगे रहते हैं और उनका वेग मील (या किलोमीटर) प्रति घंटा में बताते हैं। साधारणत: मोटरगाड़ी के पिछले पहिए को चलानेवाले डंडे में लगे दाँतीदार चक्र द्वारा एक तार लचीली खोखली नली में घूमता रहता है। इस तार के दूसरे सिरे का संबंध एक चुंबक से रहता है, जो तार के घूमते रहने के कारण स्वंय घूमता रहता है। यह चुंबक ऐल्यूमिनियम की टोपी के भीतर घूमता है। इसलिये टोपी स्वयं घूमना चाहत है। परंतु टोपी एक कमानी से निंयत्रित रहती है, इसलिय वह स्वतंत्रता से घूम नहीं पाती, केवल थोड़ा सा घूमकर रुक जाती है। टोपी के घूमने की मात्रा चुंबक के वेग के अनुपात में रहती है। इसी से ऐल्यूमिनियम की टोपी के घूमने की मात्रा से गाड़ी का वेग पढ़ा जा सकता है। ऐल्यूमिनियम की टोपी पर साधारणत: एक सुई जड़ी रहती है जो अंकों के ऊपर घूमकर वेग बताती रहती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ