चिन पहाड़ियॉं
चिन पहाड़ियॉं
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 228 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कृष्ण मोहन गुप्त |
चिन पहाड़ियाँ पश्चिमोत्तर बर्मा में पर्वतश्रेणी और जिला है। भारत और बर्मा के बीच अराकानयोमा से पटकाई तक फैले पर्वतीय चाप का प्रसिद्ध भाग है। इसमें पहाड़ियाँ 5,000 से 9,000 फुट तक ऊँची हैं और उनके बीच बीच में सँकरी घाटियां हैं। घाटियों में ऊष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु मिलती है, जबकि पहाड़ों पर अपेक्षाकृत ठंढी जलवायु है। जलवायु की यह भिन्नता वनस्पतियों पर प्रभाव डालती है। 3,000 फुट से नीचे उष्ण कटिबंधीय जंगल हैं और उसके ऊपर बंजु (oak) और देवदार के वृक्ष उगते हैं। 7,000 फुट से अधिक ऊँचाई पर रोडोडेन्ड्रन (Rhododerdron) नामक सदाबहार झाड़ी उत्पन्न होती है। इन पहाड़ी जंगलों में लोग एक प्रकार की प्रवासी कृषिप्रणाली अपनाते हें, जिसे तौंग्या प्रणाली कहते हैं। जंगलों को साफ करते हैं और लकड़ी को जलाकर उत्पन्न कर लेते हैं। इन जंगलों की सफाई से प्राप्त क्षेत्रों में 2-3 वर्ष खेती करते हैं और फिर छोड़ देते हैं जिनमें बाँस और हाथीघास आदि उग आती हैं। इसमें ज्वार उत्पन्न होता है। पहाड़ी ढालों पर सीढ़ीनुमा खेत बनाकर धान उत्पन्न किया जाता है। यहाँ के रहनेवाले लोग मंगोलों के वंशज हैं। भारतीय और बरमी संस्कृतियों का सुंदर संमिश्रण यहाँ के लोगों के जीवन में दिखाई पड़ता है। 19वीं शताब्दी के अंत तक यहाँ की पहाड़ी जातियाँ ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र रहीं। चिन लोग मंगोल जाति की बरमी शाखा से संबंधित है। इसका क्षेत्रफल 10,377 वर्ग मील और जनसंख्या 1,86,405 है। बर्मा के मैदानों में पहाड़ी जातियों द्वारा लूटपाट रोकने के लिये इसपर अधिकार करके आदि जातीय प्रणाली पर यहाँ एक स्वस्थ ढंग की शासनप्रणाली स्थापित की गई है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ