जान एमरिक एडवर्ड डालवर्ग ऐक्टन
जान एमरिक एडवर्ड डालवर्ग ऐक्टन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 272 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्रीमति सरोजिनी चतुर्वेदी |
ऐक्टन, जान एमरिक एडवर्ड डालवर्ग (1834-1902) अंग्रेज इतिहासकार; रिचर्ड ऐक्टन का एकमात्र पुत्र। परिवार रोमन कैथोलिक। शिक्षा आस्कट, ऐडिबनरा, डोलेंगर की अध्यक्षता में म्यूनिख़ में। डोलिंगर ने ही ऐक्टन में गहरे इतिहास प्रेम और शोध की नींव डाली। ऐक्टन का उद्देश्य एक बृहत् पुस्तक 'स्वतंत्रता का इतिहास' लिखने का था और इसी से प्रेरित होकर उसने छोटी अवस्था में ही एक भव्य ऐतिहासिक पुस्तकालय बनाना आरंभ कर दिया था।
ऐक्टन ग्लैड्स्टन का अभिन्न मित्र, सलाहकार और प्रशंसक था। 1869 में ग्लैड्स्टन ने उसे बैरन की उपाधि से विभूषित किया। 1895 में ऐक्टन कैंब्रिज में आधुनिक इतिहास का रीजस प्रोफेसर हो गया। तभी 'कैब्रिज के आधुनिक इतिहास' पुस्तक की उसने योजना बनाई जो उसके जीवनकाल में पूरी नहीं हो पाई। मनुष्य के आध्यात्मिक विकास के संबंध में उसका एक प्रसिद्ध कथन था–शक्ति भ्रष्ट करती है; पूर्ण (अनियंत्रित) शक्ति पूर्णत: भ्रष्ट करती है। ऐक्टन की मृत्यु पर उसका 59,000 पुस्तकों का विशाल पुस्तकालय उसके इच्छानुसार कैब्रिज विश्वविद्यालय को मिला।
टीका टिप्पणी और संदर्भ