जॉं बप्तिस्त कोल्बेर
जॉं बप्तिस्त कोल्बेर
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 179 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | मोहम्मद अजहर असगर अंसारी |
जॉं बप्तिस्त कोल्बेर (1619-1683 ई.) फ्रांसीसी राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री। रेम्स के एक व्यापारी परिवार में जन्म। जब बीस वर्ष के भी न हो पाए थे तभी उन्हें परराष्ट्र विभाग में नौकरी मिल गई और शीघ्र ही वे मंत्री के निजी सचिव हो गए। बारह वर्ष पश्चात् कार्डिनल मेजरिन ने, जब वे 1651 ई. में पेरिस से बाहर रहे, कोलबर्ट का अपना विश्वस्त बनाकर पेरिस का राजनीतिक गतिविधियों की सूचना देने का काम सौंपा। और वे उनके इस कार्य से बहुत संतुष्ट हुए और उसे काफी सम्मान प्रदान किया।
फ्रांस के सम्राट् चौदहवें लुई की ऊनवयस्कता में मेजरिन के हाथ में शासन व्यवस्था था। इस कारण उनके विश्वस्त होने के नाते कोलबर्ट को सम्राट का भी विश्वास प्राप्त हुआ और मेजरिन की मृत्यु के पश्चात् शासन के प्रमुख अधिकारी बने।
सम्राट् के सलाहकार के रूप में वे फ्रांस की आर्थिक स्थिति अवस्था सुधारने की दिशा में आगे बढ़े। उन्हें इस बात की जानकारी थी कि राजकर्मचारी रिश्वतखोरी और सरकारी धन का दुरुपयोग करते है। अत: रिश्वतखोरी और सरकारी खयानत को रोकने के लिए कानून बनवाए और इस प्रकार के अपराधों लिये मृत्यु दंड का विधान किया। इस प्रकार के मामलों की सुनवाई के लिए एक विशेष अदालत की नियुक्ति हुई। इस कठोर दंड विधान के परिणामस्वरूप लगभग चार हजार व्यक्तियों ने मृत्यु से बचने के लिए अपनी अवैध कमाई राजकोष को लौटा दी। फलस्वरूप राजकोष की स्थिति बहुत सुधर गई और राजकर्मचारियों के बीच से रिश्वतखोरी और अवैध कमाई का धंधा समाप्त हो गया। राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उसने कर संबंधी अनेक विधान बनवाए।
तदनंतर देश की समृद्धि के निमित्त कोलबर्ट ने उद्योग की ओर ध्यान दिया। अनेक नए उद्योग स्थापित कराए और पुराने उद्योगों को उच्च कोटि का उत्पादन करने के लिये प्रोत्साहित किया। निर्यात की ओर भी ध्यान दिया और भारत तथा अमरीका से व्यापार करने के लिये ईस्ट इंडीज और वेस्ट इंडीज कंपनियों की स्थापना की। सड़कें और नहरों का भी सुधार कराया। लेंग्युडाक की बड़ी नहर कोलबर्ट की संरक्षता में ही पियरे पाल रेके ने तैयार कराई।
कोलबर्ट ने नौकानयन की भी स्थापना की और 1669 ई. में वह सामुद्रिक कार्यों के मंत्री बने। सम्राट् की रुचि सैनिक अभियानों में थी, इसलिये उन्होंने नौसेना संघटित की। उसे शक्तिशाली बनाने के लिये अनेक नए तरीके अपनाए। नौसेना के जहाजों के संचालन के निमित्त अधिकाधिक नाविक प्राप्त करने के लिये उसने न्यायाधीशों को आदेश दिया कि वे प्रत्येक अपराधी को पतवार चलाने की सजा दें। फलत: तुर्क, रूसी, हब्शी, गुलाम, बदमाश, बागी सभी तरह के लोग दंडित होकर नौसेना में आए। रॉश्फोर्त का बंदरगाह बनवाया: तूलों में जंगी कारखाना स्थापित किया; नौसैनिक शिक्षा के लिये कई स्कूल खुलवाए। देश में जहाजों के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये उन्होंने समुचित उपाय किए। विदेशों से आनेवाले जहाजों पर कर लगाया गया और फ्रांसीसी नाविकों को विदेशी जहाजों पर काम करने से रोका गया।
राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री होने के साथ साथ कोलबर्ट कला और साहित्य के संरक्षक भी थे। उनका अपना एक बहुत बड़ा पुस्तकालय था जिसमें अनेक बहुमूल्य हस्तलिखित ग्रंथ थे। उसने विज्ञान अकादमी और वेधशाला की स्थापना को और रीशल्ये द्वारा स्थापित चित्रकला और मूर्तिकला की अकादमी को नवसंघटित किया तथा अन्य अनेक आदमियों की देखभाल की व्यवस्था की। ल्व्रूा के संग्रहालय को चित्रों और मूर्तियों से भर दिया। साहित्यकारों के पेंशन की व्यवस्था की। इस पेंशन को पानेवाले न केवल फ्रेंच विद्वान् थे वरन् अनेक विदेशी विद्वानों को भी उसने पेंशन की व्यवस्था की। इस प्रकार कोलबर्ट एक ऐसा राजनीतिज्ञ था जिसने थोड़े समय में फ्रांस के लिये बहुत किया।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ परमेश्वरीलाल गुप्त