तलमार्ग

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तलमार्ग (भूमिगत मार्ग, Subway) पृथ्वी की सतह के नीचे सुरंग खोदकर जो मार्ग बनाए जाते हैं, वे तलमार्ग कहलाते हैं। ये सुरंगें पृथ्वी के गर्भ में लगभग क्षैतिज होती हैं।

यदि गहराई अधिक न हो, तो पृथ्वीतल पर से ही अपेक्षित गहराई तक खाइयाँ खोदकर, मेहराब या डाटों से उन्हें पाटकर, ऊपर से मिट्टी भर दी जाती है। इस प्रकार पृथ्वी के भीतर ढका हुआ मार्ग बन जाता है। खोदते समय खाई की दीवारें लकड़ी के पटरों की टेक से सँभाली जाती हैं। बाद में या तो लकड़ी के तख्तों का ही स्थायी अस्तर लगा दिया जाता है, या किसी प्रकार की पक्की चिनाई कर दी जाती है। ऐसे तलमार्ग भारत के कुछ नगरों में, या रेल के स्टेशनों पर, बने है।

बहुधा काफी दूर से पृथ्वी की सतह पर आरंभ करके एक ढलवाँ सुरंग पृथ्वी के अंदर यथेष्ट गहराई तक ले जाते हैं। यहाँ से फिर सुरंग क्षैतिज हो जाती है और वांछित हो जाती है और वांछित दूरी पार करने पर फिर ढलान चढ़कर बाह्य तल पर निकल आती है।

गहरे मार्गों के लये कूप (shaft) खोदकर गहराई में क्षितिज सुरंगे खोदी जाती हैं, जिनकी दीवारें लोहे की चद्रों का अस्तर लगाकर सुदृढ़ की जाती हैं।

जब सुरंगे अधिक गहराई में, या जल की सतह के नीचे, खोदी जाती हैं तब अधिक दाब की वायु से जल का प्रवेश रोकने की आवश्यकता होती है। दाबवाली वायु निकल न जाए, इसलिए सुरंग में दृढ़ दीवारें खड़ी कर, उसे डिब्बे सदृश कमरों में विभाजित कर दिया जाता है। इन्हीं कमरों में श्रमिक काम करते हैं। इन कमरों में मनुष्यों को तथा सामान पहुचँाने की सुविधा के लिए विशेष प्रकार के बने वायुपाशों (locks) से काम लिया जाता है। वायुपाश इस्पात का बना बृहदाकार नल होता है, जिसके प्रत्येक सिरे पर अंदर की और खुलनेवाले दरवाज़े होते हैं। वायु के दबाव के कारण ये दरवाजे एक ही समय नहीं खोले जा सकते। श्रमिकों के कमरे से वायुपाश में, तथा फिर वायुपाश से डिब्बे के बाहरवाले भाग में, दाबवाली वायु निकालने के लिये वाल्व (valve) लगे होते हैं।

ट्यूब रेलवे

ट्यूब अंग्रेजी में नली को कहते हैं। पृथ्वी के अंदर गहराई में, धातु की चदद्रों से मढ़ी, गोल नलों के आकार की सुरंगों में चलनेवाली रेलें ग्रेट ब्रिटेन में ट्यूब रेलवे कहलाती हैं। इनका चलन सन्‌ १८६३ से आरंभ हुआ। लंदन में ऐसे तलमार्गों का जाल बिछा है। कम गहरे तलमार्गो को नगरीय तथा क्षेत्रीय रेलें (मेट्रोपॉलिटन तथा डिस्ट्रक्ट रेलवे) अधिक गहरे तलमार्ग, जो पृथ्वी की सतह से लगभग ४५ फुट नीचे हैं, उपनगरों में जाकर खुलते हैं। जहाँ स्टेशन होते हैं, वहाँ सुरंग का आकार दुगुना होता है, जिसमें रेलमार्ग और प्लेटफार्म दोनों बनाए जा सकें। ये रेलें ६०० वोल्ट की विद्युतद्धारा से चलाई जाती हैं। बिजली से ही स्टेशनों में प्रकाश होता है, लिफ्ट (कूपों में ऊपर, नीचे आनेवाले कमरे), स्वयंचल सीढियाँ तथा वायु और जलपंप इत्यादि चलाए जाते हैैं। चेयरिंग क्रास के तलमार्ग स्टेशन से २,६५० रेलगाड़ियाँ प्रतिदिन आती जाती हैं। ग्रेट ब्रिटेन में ग्लासगो दूसरा नगर है, जहाँ ट्यूब रेलें चलती हैं।

फ्रांस की राजधानी पैरिस में सन्‌ १९०० से तलमार्ग की रेलें चलनी आरंभ हुई। इनकी लंबाई १०० मील से अधिक है। इनपर प्रतिदिन २५,००,००० मनुष्य यात्रा करते हैं। कम गहराई में स्थित रेलों के जाल २०वीं शती के आरंभ में ही न्यूयॉर्क, बर्लिन, हैबर्ग, बौस्टन तथा फिलाडेल्फिया में बिछ गऐ थे। ब्यूनस आयर्स (Buenos Aires), ओस्लो तथा स्टाकहोम में भी तलमार्ग हैं और द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले ही मॉस्को और टोकियो में भी बन गए थे। शिकागो के तलमार्गों की रेलों ने, जिनकी गहराई ४० से ५० फुट तक है, सन्‌ १९४३ ई० से नगर के बीच में ऊँचाई पर चलनेवाली रेलों का स्थान ले लिया है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ