नाइस
नाइस
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 6 |
पृष्ठ संख्या | 279 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | राम प्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1966 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | रमोश्चंद्र मिश्र |
नाइस (Gneiss) स्फटिक तथा फेल्सपार (felspar) वर्गों के खनिजों से निर्मित परतदार शैल है।
गठन एवं संरचना
नाइसों का विशेष लक्षण उनका सुपरिलक्षित तल आभिस्थापन (planer orientation) है। प्राय: काले और उजले रंग और विभिन्न आकारों के खनिज भिन्न-भिन्न परतों में सांद्रित रहते हैं। इन पट्टियों का अटूट होना आवश्यक नहीं है। खनिज घटकों की आकारवृद्धि से नाइस ग्रैनुलाइट नामक समकणीय शैलों में बदल जाते हैं और खनिज आकार घटने पर ये 'शिस्ट' (schists) को जन्म देते हैं।
संरचना की दृष्टि से 'आँगेन नाइस' (Augen gneiss) महत्वपूर्ण रूप है। इस शैल में अपेक्षाकृत दीर्घ आकार के फेल्सपार, जैसे ऑर्थोक्लेज़ (orthoclase), माइक्रोक्लाइन (microcline), प्लेजिऔक्लेस (plagioclase) या स्फटिक (quartz) बादामाकृति या नयनाकृति (augen-like) होते हैं और शिस्टीय (schistose) आधारद्रव्य (ground mass) से घिरे हुए पाए जाते हैं। इन लक्ष्य क्रिस्टलों (phenocrysts) को 'नाइस' की 'आँखे' (augen eyes) कहा जाता है। ये 'आँखें' प्राय: अभिविन्यस्त और किसी एक दिशा में उन्मुख रहती हैं। ये आँखें एक या अधिक खनिजों के समुच्चय से बनती हैं। लंबे, पतले, सूच्याकार अथवा सूक्ष्म आकार के खनिज इन आँखों के मध्यवर्ती भागों में भरे रहते हैं, या इन्हें लपेट रखते हैं। इनमें बायोटाइट (biotite), हार्नब्लेंड (hornblende), स्फटिक, प्लेजिओक्लेस आदि मुख्य खनिज हैं।
नाइसों के कुछ महत्वपूर्ण प्रकार निम्नलिखित हैं :
1. क्वार्ट्जोफेल्सपैथिक नाइस (Quartzofelspathic gneiss) - इसके मुख्य खनिज स्फटिक तथा फेल्सपार हैं। ऑर्थोक्लेज, माइक्रोक्लाइन तथा परथाइट (perthite) अधिक महत्वपूर्ण हैं। ग्रैनाइट, ग्रैनोडायोराइट (granodiorite), सायनाइट (syenite), टोनैलाइट (tonalite) सदृश अम्लीय आग्नेय (igneous) शैलों, या आर्कोज़ (arkose), फेल्सपारी बालुकाश्म सरीखे बालुकामय अवसादी शैलों के कायांतरण से इस प्रकार के नाइस विकसित हुए हैं। मूल शैलों के आधार पर ग्रैनाइट-नाइस, टोनैलाइट-नाइस, सगुटिकाश्म नाइस (conglomerate-gneiss) आदि नाम रखे गए हैं। इस प्रकार केनाइस उच्च श्रेणी के पातालीय और प्रादेशिक कायांतरण के फलस्वरूप बने हैं। हिमालय के दक्षिणी अंचल तथा विशाल हिमालय के पादवर्ती कटिबंध में ये नाइस बड़े पैमाने पर पाए जाते हैं। प्रायद्वीपीय भारत का बृहत्तर भाग ऐसे ही शैलों से बना है।
2. पेलाइटिक नाइस (Pelitic gneiss) - यह पेलाइटी अवसादी शैलों के, विशेषकर ऐसे अवसादी शैलों के, जिनमें लोहस लोह (ferrousiron) अपेक्षाकृत अधिक होता है, क्षेत्रीय कायांतरण के फलस्वरूप बना है। इन नाइसों के विशिष्ट खनिज ऐंडालूसाइट (andalusite), स्टारोलाइट (staurolite), कायनाइट (kyanite), सिलीमैनाइट (sillimanite), कार्डिएराइट (cordierite) आदि है। दार्जीलिंग क्षेत्र में प्राप्त सिलीमैंनाइट-कायनाइट नाइस इस प्रकार के शैल के उदाहरण हैं।
3. कैल्क-नाइस (Calc-gneiss) - इसमें कैल्क-सिलिकेट खनिजों का बाहुल्य होता है। इसमें डाइऑप्साइड (diopside), ट्रीमोलाइट (tremolite), स्कैपोलाइट (scapolite), पलोगोपाइट (phlogopite) तथा कुछ कार्बोंनेट, जैसे कैल्साइट और डोलोमाइट आदि मुख्य हैं। इनके अतिरिक्त हार्नब्लेंड, ऐक्टिनोलाइट, प्लेजिऔक्लेस तथा बायोराइट भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहते हैं। ग्रॉसुलराइट (grossularite), वेसवियैनाइट (vesuvianite), बोलैस्टोनाइट (wollastonite) तथा ब्रूस इट (brucite) विशेष रूप से चूनेदार स्तरों में विकसित होते हैं। यह उल्लेखनीय है कि किसी भी शैल में, एक बार में, दो या तीन खनिज ही मिलते हैं। कैल्क-नाइसों का उद्भव ऐसे चूनापत्थरों या डोलोमाइटों के संस्पर्शी, या प्रादेशिक कायांतरण, से होता है, जिनमें बालू या मिट्टी की बड़ी मात्रा उपस्थित रहती है। कभी-कभी चूनापत्थर या डोलोमाइटों पर ग्रैनाइटी द्रव्यों के अंत:क्षेपण से भी कैल्क-नाइस बन जाता है। हिमालय में पाई जानेवाली पूर्व कैंब्रियन कल्प की, सल्खाला-चाँदपुर तथा देलिंग (Daling) माला में इस प्रकार के नाइस पाए जाते हैं।
हार्नब्लेंड नाइस के महत्वपूर्ण खनिज हार्नब्लेंड प्लेजिऔक्लेस तथा स्फटिक हैं। कभी-कभी इन खनिजों का आकार इतना सूक्ष्म होता है कि इन्हें हार्नब्लेंड शिस्ट भी कहना अनुपयुक्त न होगा। इसमें हार्नब्लेंड प्लेजिऔक्लेस तथा स्फटिक के किसी निश्चित अनुपात का होना आवश्यक नहीं है। स्फटिक की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।
नाइसों की उत्पत्ति
उद्भाव की दृष्टि से नाइसों के दो प्रकार हैं : एक तो वे जो मूलत: आग्नेय शैलों के कायांतरण से बने हैं और दूसरे वे जो पूर्ववर्ती अवसादी शैलों के उत्तरोत्तर कायांतरण से बने हैं।
- पहले प्रकार को ऑर्थोनाइस (orthogneiss) कहते हैं। इन के विशिष्ट गुण निम्नलिखित हैं :
1. अपने निकटवर्ती शैलों से इनका उत्क्रामी असंगत संबंध, 2. खनिजों द्वारा प्रदर्शित रेखा-अभिविन्यास (lineation) का पाश्र्व भागों में धुँधला पकड़कर अदृश्य हो जाना और नाइसों का स्थान ग्रैनाइटी आग्नेय शैलों द्वारा ग्रहण करना, 3. माइक्रोक्लाइन-परथाइट (microcline-perthite) नामक फेल्सपार की लाक्षणिक उपस्थिति, 4. स्फटिक की अपेक्षा पोटास-फेल्सपार का आधिक्य, 5. किसी एक नाइस में प्लेजिऔक्लेस के रासायनिक संघटन की अपरिवर्तनशीलता तथा 6. जर्कन नामक सहायक खनिज का सर्वपार्श्विक स्वरूप।
- दूसरे प्रकार के नाइस मूलत: अधिसिलिक अवसादों के क्षेत्रीय कायांतरण से बने हैं। इन्हें पैरानाइस (para-gneiss) कहा जाता है। इनके कुछ गुण निम्नलिखित हैं :
1. अपने पड़ोसी शैलों के साथ इनका संवादी (संगत) संबंध हैं। दूसरे शब्दों में इनके तथा संबद्ध शैलों के संस्तर तल समांतर रहते हैं। 2. इनका अपने पार्श्व भागों में क्वार्ट्जाइट, शैलों में फेल्सपारों के प्रवेश से संभव हुआ है। 3. मूल अवसादी शैलों की कई संरचनाएँ जैसे संस्तर तल, तरंगचिन्ह आदि नाइसों में सुरक्षित पाए जाते हैं। 4. सिलीमैनाइट, कायनाइट (staurolite), कॉर्डिऐराइट (cordierite) आदि खनिजों की उपस्थिति। 5. प्लेजिऔक्लेस के विभिन्न क्रिस्टल का रासायनिक संघटन भिन्न भिन्न होता है। 6. स्फटिक की मात्रा अन्य खनिजों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है। 7. जर्कन के कण प्राय: न्यूनाधिक गोल होते हैं।
ऑगेन-नाइसों की उत्पत्ति, संभवत: मैगमा की प्रवाहशीलता की अवधि में, पूर्ववर्ती पोर्फिरिटिक (porphyritic) ग्रैनाइट सदृश आग्नेय शैलों के कायांतरण से हुई है। पूर्ववर्ती अवसादी शैलों के कैटाक्लास्टिक कायांतरण से भी आँखों का बनना संभव है। फेल्सपार और स्फटिक के वे बृहदाकार क्रिस्टल जो विचूर्णन एवं कणीभवन (granulation) की क्रिया में बनते हैं, 'आँखों' की सृष्टि करते हैं। इन 'आँखों' की उत्पत्ति रासायनिक प्रतिस्थापन के फलस्वरूप भी हो सकती है। बाह्य स्रोत से आगत क्षारीय द्रव की क्रिया के फलस्वरूप भी 'आँख' विकसित होती हैं।
एक चौथे प्रकार के नाइस का प्रादुर्भाव मिश्रित कारणों से होता है। यदि शिस्ट में अथवा तत्सदृश किसी अन्य कायांतरित शैल में ग्रैनाइटी-आग्नेय द्रव्य घनिष्ठ रूप से प्रविष्ट होकर उसका अभिन्न अवयव बन जाए, तो उसे मिग्नैटाइट (Migmatite) या मिश्र नाइस (composite-gneiss) कहते हैं। यह भी संभव है कि ग्रैनाइटी द्रव्य किसी बाह्य स्रोत से आया हो या शिस्ट के भीतर ही उसके आंशिक द्रवीभवन से उत्पन्न हुआ हो।
टीका टिप्पणी और संदर्भ