प्रास्पर जोलियो द क्रेबिलॉं
प्रास्पर जोलियो द क्रेबिलॉं
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 220 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
प्रास्पर जोलियो द क्रेबिलॉं (1674-1762 ई.)। फ्रांस का करुण रस का कवि जो एक राजदरबारी का पुत्र था।
1703 ई. में उसने ‘इडोमेने’ की रचना की; 1707 ई. उसका लिखा नाटक ‘अत्रे एत थीस्ते’ राजदरबार में कई बार अभिनीत हुआ। 1708 ई. में एलेक्त्रे प्रकाशित हुआ। 1711 ई. में उसने अपना सर्वोतम नाटक ‘रादे मिस्ते एत ज़ेनोवी’ लिखा जो बहुत दिनों तक निरंतरखेला जाता रहा।
दो नन्हें बच्चों को छोड़कर पत्नी के मर जाने पर क्रेबिलाँ इतना दुखी हुआ कि छत के ऊपर एक छोटे से कमरे में उसने अपने को सीमित कर लिया और निहायत गंदगी से रहने लगा। उसने कुछ कुत्ते, बिल्लियाँ पाल रखी थीं, वही उसके मित्र थे। निरंतर तंबाकू पीकर वह अपना गम गलत करता रहा। इस प्रकार के एकांतिक जीवन व्यतीत करने के बावजूद 1731 ई. में फ्रेंच अकादमी ने उसे अपना सदस्य चुना। 1735 ई. में वह रायल सेंसर नियुक्त हुआ। 1745 ई. में मदाम द पाँपदूर ने 1000 फ्रैंक की पेंशन बाँध दी और राजकीय पुस्तकालय में उसे नियुक्त कर दिया। 1746 ई. में वह पुन: ‘पाइरस’ नामक नाटक लेकर रंगमंच पर उतरा। 1748 ई. में ‘कैटिलीना’ का सफल अभिनय राजदरबार में हुआ। 80 वर्ष की अवस्था में उसका अंतिम दु:खात नाटक ‘लेट्रेम्बिरेट’ प्रकाशित हुआ। कुछ लोग क्रेबिलाँ को करूण रस के कवि के रूप में बाल्तेयर से श्रेष्ठ मानते हैं। वाल्तेयर ने क्रेबिलाँ के पाँच दु:खांत नाटकों के विषय को अपने दु:खात नाटकों का विषय बनाया है। जिस वर्ष क्रेबिला की मृत्यु हुई, ‘यूलोजी द क्रेबिला’ नाम से एक निंदापरक काव्य निकला जिसके संबंध में वाल्तेयर के नकारने पर भी कहा जाता है कि उसी ने लिखा था। क्रेबिलाँ का एकमात्र पुत्र क्लाउ की ख्याति उपन्यासकर के रूप में हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ