मत्स्यपालन
मत्स्यपालन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 9 |
पृष्ठ संख्या | 126 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1967 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | अजितनारायण मेहरोत्रा |
मत्स्यपालन के अंतर्गत अलवण जल तथा समुद्री जल की खाद्य मछलियों का व्यावसायिक दृष्टि से पोखरों और लैगूनों [१] में कृत्रिम प्रवर्धन, निषेचन, प्रजनन, पालन पोषण, सुरक्षा तथा मछलियों की संख्या एवं भार में वृद्धि की जाती है। मत्स्यपालन[२] में मछलियों की वृद्धि करने की आधुनिकतम विधि पर्यावरण का नियंत्रण करना है। वैज्ञानिक मत्स्यपालन की विधि के अंतर्गत क्षेत्र के चारों ओर की दशाओं को मछली की उत्तरजीविता, वृद्धि तथा जनन के अनुकूल बनाते हैं, झील, सरिताओं एवं पोखरों का सुधार किया जाता है और तीव्र धाराप्रवाह को परावर्तित करने के लिये मकड़ी के कुंदे या पत्थर डाले जाते हैं।
मत्स्यपालन के मुख्य दो प्रकार हैं
- रोके हुए जल में मछलियों के बच्चों का वयस्क होने तक पालन पोषण करना।
- अंडों या पोनो [३] को प्राकृतिक जल सहित लेकर पालना।
भारत में मत्स्यपालन के लिये पोखरों का उपयोग अत्यधिक होता है। इन पोखरों का क्षेत्रफल साधारणतया आधे एकड़ से लेकर दो एकड़ तक रहता है। इन पोखरों में कुछ स्थानों की गहराई पाँच फुट अवश्य होनी चाहिए, जिससे गरमियों में मछलियों को ठंढा स्थान मिल सके। शेष स्थान छिछले होने चाहिए, जिससे मछलियों को सरलता से आहार दिया जा सके।
अधिकांश मछलियाँ छोटे छोटे जीवों का भक्षण करती हैं। ये जीव सूक्ष्म पौधों को खाकर जीवित रहते हैं। अत: पानी में सूक्ष्म पौधों का रहना और पनपना आवश्यक है। इन सूक्ष्म पौधों के आहार में नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस और पोटैशियम आवश्यक है। इन पोषक तत्वों की पूर्ति पानी में उर्वरक डालकर की जाती है, जिससे सूक्ष्म पौधे बढ़ते हैं, और इन पौधों को खाकर सूक्ष्म जीव बढ़ते हैं, इससे मछलियों को आवश्यक आहार प्राप्त होता है और वे शीघ्र मोटी हो जाती हैं। पोखरे में कितना उर्वरक डालना चाहिए, यह पोखरे की स्थिति, पोखरे की गहराई और पोखरे के पानी की प्रकृति पर निर्भर करता है। साधारणतया एक एकड़ क्षेत्रफल के पोखरे में 200 से 500 पाउंड तक उर्वरक डालना चाहिए। पोखरे में उर्वरक वसंत तथा ग्रीष्म ऋतु में डालना चाहिए अथवा पोखरे के किनारे रख देना चाहिए, ताकि उर्वरक वर्षाऋतु में वर्षा के जल में घुलकर धीरे धीरे पोखरे में चले जाएँ।
पोखरे के जल का हरा, या हरापन लिए भूरा, दिखाई पड़ना इस बात का प्रमाण है कि पोखरे में पर्याप्त उर्वरक हैं।
मत्स्यपालन वाले पोखरों में जड़दार पौधों का पनपना ठीक नहीं है, क्योंकि इनसे स्थान घिरने के साथ साथ जल में पोषक पदार्थों की कमी हो जाती है। इससे मछलियों का विकास प्रभावित होता है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इन पोखरों में शहर का वाहितमलयुक्त जल तथा कारखानों का गंदा जल न जाने पाए, क्योंकि इन जलों से मछलियाँ प्राय: मर जाती हैं।
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