महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 138-154

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सप्तदश (17) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 138-154 का हिन्दी अनुवाद

881 वरो वराहः-श्रेष्ठ वराहरूपधारी भगवान 882 वरदः-वरदाता, 883 वरेण्यः-स्वामी बनाने योग्य, 884 सुमहास्वनः-महान् गर्जना करनेवाले, 885 महाप्रसादः-भक्तोंपर महान् अनुग्रह करनेवाले, 886 दमनः-दुष्टों का दमन करनेवाले, 887शत्रुहा-शत्रुनाशक, 888श्वेतपिगंलः-अर्धनारीनरेश्वर वेश में श्वेत-पिंगल वर्णवाले। 889 पीतात्मा-हिरण्यमय पुरूष, 890 परमात्मा-परमेश्वर, 891 प्रयतात्मा-विशुद्धिचित, 892 प्रधानकृत्-जगत् के कारणभूत त्रिगुणमय प्रधान के अधिष्ठानस्वरूप, 893 सर्वपार्वमुखः-सम्पूर्ण दिशाओं की ओर मुखवाले, 894 युक्षः-त्रिनेत्रधारी, 895 धर्मसाधारणो वरः-धर्म-पालनके अनुसार वर देनेवाले। 896 चराचरात्मा-चराचर प्राणियोंके आत्मा, 897 सूक्ष्मात्मा-अति सूक्ष्मस्वरूप, 898 अमृतो गोवृशेश्वरः-निष्काम धर्म के स्वामी, 899 साध्यर्षिः- साध्य देवताओं के आचार्य, 900 आदित्यो वसुः- अदितिकुमार वसु, 901 विवस्वान् सवितामृतः-किरणोंसे सुशोभित एवं जगत को उत्पन्न करनेवाले अमृतस्वरूप सूर्य। 902 व्यासः-पुराण-इतिहास आदिके स्त्रष्टा वेदव्यासस्वरूप, 903 सर्गःसुसंक्षेपो विस्तारः-संक्षिप्त और विस्तृत सृष्टिस्वरूप, 904 पर्ययो नरः-सब ओरसे व्याप्त करनेवाले वैश्वानरस्वरूप, 905 ऋतुः-ऋतुरूप, 906 संवत्सरः-संवत्सरूप, 907 मासः-मासरूप, 908 पक्षः-पक्षरूप, 909 संख्यासमापनः-पूर्वोक्त ऋतु आदिकी संख्या समाप्त करनेवाले पर्व संक्रान्ति,दर्ष,पूर्णमासादि रूप। 910 कलाः, 911 काष्ठाः-, 912 लवाः, 913 मात्राः-इत्यादि कालावयवस्वरूप, 914 मुहूर्ताहःक्षपाः-मुहूर्त, दिन और रात्रिरूप, 915 क्षणाः-क्षणरूप, 916 विश्वक्षेत्रम्-ब्रहाण्डरूपी वृक्षके आधार, 917 प्रजाबीजम्-प्रजाओंके कारणरूप, 918 लिंगम्-महतत्वस्वरूप, 919 आद्यो निर्गमः-सबसे पहले प्रकट होनेवाले। 920 सत्-सत्स्वरूप, 921 असत्-असत्वरूप, 922 व्यक्तम्-साकाररूप, 923 अव्यक्तम्-निराकाररूप, 924 पिता, 925 माता, 926 पितामहः- 927 स्वर्गद्वारम्-स्वर्गके साधनस्वरूप, 928 प्रजाद्वारम्-प्रजाके कारण, 929 मोक्षद्वारम्-मोक्षके साधनस्वरूप, 930 त्रिविष्टपम्-स्वर्गके साधनस्वरूप 931 निर्वाणम्-मोक्षस्वरूप, 932 हादनः-आनन्द प्रदान करनेवाले, 933 ब्रहालोकः-ब्रहालोकस्वरूप, 931 निर्वाणम्-मोक्षस्वरूप, 932 हादनः-आनन्द प्रदान करनेवाले, 933 ब्रहालोकः-ब्रहालोकस्वरूप, 934 परा गतिः-सर्वोत्कृष्ट गतिस्वरूप, 935 देवसुरविनिर्माता-देवताओं तथा असुरोंके जन्मदाता, 936 देवासुरपरायणः-देवताओं तथा असुरोंके परम आश्रय। 937 देवासुरगुरूः-देवताओं और असुरोंके गुरू, 938 देवः-परम देवस्वरूप, 939 देवासुरनमस्कृतः-देवताओं और असुरोंसे वन्दित, 940 देवासुरमहामात्रः-देवताओं और असुरोंसे अत्यन्त श्रेष्ठ, 941 देवासुरगणाश्रयः-देवताओं तथा असुरगणोंके आश्रय लेने योग्य। 942 देवासुरगणाध्यक्षः-देवताओं तथा असुरगणोंके अध्यक्ष, 943 देवासुरगणाग्रणीः-देवताओं तथा असुरोंके अगुआ, 944 देवातिदेवः-नारदस्वरूप, 945 देवर्षिः-नारदस्वरूप, 946 देवासुरवरप्रदः-देवताओं और असुरोंको भी वरदान देनेवाले। 947 देवासुरेश्वरः-देवताओं और असुरोंके ईश्वर, 948 विश्व-विराट् स्वरूप, 949 देवासुरमहेश्वरः-देवताओं और असुरोंके महान् ईश्वर, 950 सर्वदेवमयः-सम्पर्ण देवस्वरूप, 951 अचिन्तयः-अचिन्त्यस्वरूप, 952 देवतात्मा-देवताओं के अन्तरात्मा, 953 आत्मसम्भवः-स्वयम्भू। 954 उद्भित्-वृक्षादिस्वरूप, 955 त्रिविक्रमः-तीनों लोकोंको तीन चरणोंसे नाप लेनेवाले भगवान वामन, 956 वैद्यः-वैद्यस्वरूप, 957 विरजः-रजोगुणरहित, 958 नीरजः-निर्मल, 959 अमरः-नाशरहितः-नाशरहित, 960 ईड्यः-स्तुतिके योग्य, 961 हस्तीश्वरः-ऐरावत हस्तीके ईश्वर-इन्द्रस्वरूप, 962 व्याघ्रः-सिंहस्वरूप, 963 देवसिंहः-देवताओंमें सिंहके समान पराक्रमी, 964 नरर्षभः-मनुष्योंमें श्रेष्ठ। 965 विबुधः-विशेष ज्ञानवान्, 966 अग्रवरः-यज्ञमें सबसे प्रथम भाग लेनेके अधिकारी, 967 सूक्ष्मः-अत्यन्त सूक्ष्मस्वरूप, 968 सर्वदेवः-सर्वदेवस्वरूप, 969 तपोमयः-तपोमयस्वरूप, 970 सुयुक्तः-भक्तोंपर कृपा करनेके लिये सब तरहसे सदा सावधान रहनेवाले, 971शोभनः-कल्याणस्वरूप, 972 वज्री-वज्रायुधधारी, 973 प्रासानां प्रभवः-प्रास नामक अस्त्रकी उत्पतिके स्थान, 974 अव्ययः-विनाशरहित।। 975 गुहः-कुमार कार्तिकेयस्वरूप 976 कान्तः-आनन्दकी पराकाष्ठारूप, 977 निजः-सर्गः-सृष्टिसे अभिन्न, 978 पवित्रम्-परम पवित्र, 979 सर्वपावनः-सबको पवित्र करनेवाले, 980 श्रृंगीः-सिंगी नामक बाजा अपने पास रखनेवाले, 981 श्रृंगप्रियः-पर्वत-शिखरको पसंद करनेवाले, 982 बभ्रूः-विष्णुस्वरूप, 983 राजराजः-राजाओंके राजा, 984 निरामयः-सर्वथा दोषरहित। 985 अभिरामः-आनन्ददायक, 986 सुरगणः-देवसमुदायरूप, 987 विरामः-सबसे उपरत, 988 सर्वसाधनः-सभी साधनोंद्वारा साध्य, 989 ललाटाक्षः-ललाटमें तीसरा नेत्र धारण करनेवाले, 990 विश्वदेवः-सम्पूर्ण विष्वके द्वारा क्रीड़ा करनेवाले, 991 हरिणः-मृगरूप, 992 ब्रहावर्चसः-ब्रहातेजसे सम्पन्न। 993 स्थावराणां पतिः-पर्वतोंके स्वामी हिमाचलादिरूप, 994 नियमेन्द्रियवर्धनः-नियमोंद्वारा मनसहित इन्द्रियोंका दमन करनेवाले, 995 सिद्धार्थः-आप्तकाम, 996 सिद्धभूतार्थः-जिसके समस्त प्रयोजन सिद्ध हैं, 997 अचिन्त्यः-चितकी पहुंचसे परे, 998 सत्यव्रतः-सत्यप्रतिज्ञ, 999शुचिः-सर्वथा शुद्ध। 1000 व्रताधिपः-व्रतोंके अधिपति, 1001 परम्-सर्वश्रेष्ठ, 1002 ब्रहा-देश,काल और वस्तुसे अपरिच्छिन्न चिन्मयतत्व, 1003 भक्तानां परमा गतिः- भक्तोंके लिये परम गतिस्वरूप, 1004 विमुक्तः-नित्य मुक्त, 1005 मुक्ततेजाः-शत्रुओंपर तेज छोड़नेवाले, 1006 श्रीमान्-योगैश्वर्यसे सम्पन्न, 1007 श्रीवर्धनः-भक्तोंकी सम्पतिको बढ़ानेवाले, 1008 जगत्-जगत्स्वरूप। श्रीकृष्ण! इस प्रकार बहुत-से नामोंमें से प्रधान-प्रधान नाम चुनकर मैंने उनके द्वारा भक्तिपूर्वक भगवान शकर का स्तवन किया। जिन्हें ब्रहा आदि देवता तथा ऋषि भी तत्वसे नहीं जानते। उन्हीं स्तवनके योग्य, अर्चनीय और वन्दनीय जगत्पति शिवकी कौन स्तुति करेगा ?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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