महाभारत आदि पर्व अध्याय 124 श्लोक 30-31

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चतुर्विंशत्य‍धिकशततम (124) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: चतुर्विंशत्य‍धिकशततम अध्‍याय: श्लोक 30-31 का हिन्दी अनुवाद

मेरे पुत्रों का हित चाहती हुई सावधान रहकर उनका पालन-पोषण करें। इसके सिवा दूसरी कोई बात मुझे आपसे कहने योग्‍य नहीं जान पड़ती । वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! कुन्‍ती से यह कहकर पाण्‍डु की यशस्विनी धर्मपत्नी माद्री चिता की आग पर रक्‍खे हुए नरश्रेष्ठ पाण्‍डु के शव के साथ स्‍वयं भी चिता पर जा बैठी । तदनन्‍तर प्रेत कर्म के पारंगत विद्वान् पुरोहित काश्‍यप ने स्नान करके सुवर्ण खण्‍ड, घृत, तिल, दही, चावल, जल से भरा घड़ा और फरसा आदि वस्‍तुओं को एकत्र करके तपस्‍वी मुनियों द्वारा अश्वमेध की अग्नि मंगवायी और उसे चारों ओर से छुलाकर यथायोग्‍य शास्त्रीय विधि से पाण्‍डु का दाह-संस्‍कार करवाया । भाइयों सहित निष्‍पाप युधिष्ठिर ने नूतन वस्त्र धारण करके पुरोहित की आज्ञा के अनुसार जलाञ्जलि देने का कार्य पूरा किया। शतश्रृंग‍ निवासी तपस्‍वी मुनियों और चारणों ने आदरणीय राजा पाण्‍डु के परलोक-सम्‍बन्‍धी सब कार्य विधिपूर्वक सम्‍पन्न किये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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