महाभारत आदि पर्व अध्याय 94 श्लोक 42-64

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चतुर्नवतितम (94) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: चतुर्नवतितम अध्‍याय: श्लोक 42-64 का हिन्दी अनुवाद

इसी समय उनके पास भगवान् महर्षि वसिष्ठ आये। उन्‍हें आया देख भरतवंशियों ने प्रयत्नपूर्वक उनकी अगवानी की और प्रणाम करके सबने उनके लिये अर्ध्‍य अर्पण किया। फि‍र उन तेजस्‍वी महर्षि को सत्‍कार पूर्वक अपना सर्वस्‍व समर्पण करके उत्तम आसन पर बिठाकर राजा ने स्‍वयं उनका वरण करते हुए कहा- ‘भगवन् ! हम पुन: राज्‍य के लिये प्रयत्न कर रहे हैं। आप हमारे पुरोहित हो जाइये’। तब ‘बहुत अच्‍छा’ कहकर वसिष्ठजी ने भी भरतवंशियों को अपनाया और समस्‍त भूमण्‍डल में उत्‍कृष्ट पूरुवंशी संवरण को समस्‍त क्षत्रियों के सम्राट्-पद पर अभिषिक्त कर दिया, ऐसा हमारे सुनने में आया है। तत्‍पश्चात् महाराजा संवरण, जहां प्राचीन भरतवंशी राजा रहते थे, उस श्रेष्ठ नगर में निवास करने लगे। फि‍र उन्‍होंने सब राजाओं को जीतकर उन्‍हें करद बना लिया। तदनन्‍तर वे महाबली नरेश अजमीढवंशी संवरण पुन: पृथ्‍वी का राज्‍य पाकर बहुत दक्षिणा वाले बहुसंख्‍यक महायज्ञों द्वारा भगवान् का यजन करने लगे। कुछ काल के पश्चात् सूर्यकन्‍या तपनी ने संवरण के वीर्य से कुरु नामक पुत्र को जन्‍म दिया। कुरु को धर्मज्ञ मानकर सम्‍पूर्ण प्रजावर्ग के लोगों ने स्‍वयं उनका राजा के पद पर वरण किया। उन्‍हीं के नाम से पृथ्‍वी पर कुरुजांगल देश प्रसिद्ध हुआ। उन महा तपस्‍वी कुरु ने अपनी तपस्‍या के वल से कुरुक्षेत्र को पवित्र बना दिया। उनके पांच पुत्र सुने गये हैं- अश्ववान्, अभिष्‍यन्‍त,चैत्ररथ, मुनि तथा सुप्रसिद्व जनमेजय ! इन पांचों पुत्रों को उनकी मनस्विनी पत्नी वाहिनी ने जन्‍म दिया था। अश्ववान् का दूसरा नाम अविक्षित् था। उसके आठ पुत्र हुए, जिनके नाम इस प्रकार हैं- परिक्षित्, पराक्रमी शबलाश्व, आदिराज, विराज, महाबली शल्‍मलि,उ च्चै:श्रवा, भंगकार तथा आठवां जितारि। इनके वंश में जनमेजय आदि अन्‍य सात महार‍थी भी हुए, जो अपने कर्मजनित गुणों से प्रसिद्ध हैं। परिक्षित् के सभी पुत्र धर्म और अर्थ के ज्ञाता थे; जिनके नाम इस प्रकार हैं- कक्षसेन, उग्रसेन, पराक्रमी चित्रसेन, इन्‍द्रसेन, सुषेण और भीमसेन। जनमेजय के महाबली पुत्र भूमण्‍डल में विख्‍यात थे। उनमें प्रथम पुत्रका नाम धृतराष्ट्र था। उनसे छोटे क्रमश: पाण्‍डु, वाह्रीक महातेजस्‍वी निषध, बलवान् जाम्‍बूनद, कुण्‍डोदर, पदाति तथा वसाति थे। इनमें वसाति आठवां था। ये सभी धर्म और अर्थ में कुशल तथा समस्‍त प्राणियों के हित में संलग्न रहने वाले थे। इनमें धृतराष्ट्र राजा हुए। उनके पुत्र कुण्डिक, हस्‍ती, वितर्क, क्राथ, कुण्डिन, हवि:श्रवा, इन्‍द्राभ, भुमन्‍यु और अपराजित थे। भारत ! इनके सिबा प्रतीप, धर्म नेत्र और सुनेत्र ये तीन पुत्र और थे। धृतराष्ट्र के पुत्रों में ये ही तीन इस भूतलप रअधिक विख्‍यात थे। इनमें भी प्रतीप की प्रसिद्धि अधिक थी। भूमण्‍डल में उनकी समानता करने वाला कोई नहीं था। भरतश्रेष्ठ ! प्रतीप के तीन पुत्र हुए- देवापि, शान्‍तनु और महारथी वाह्रीक। इनमें से देवापि धर्माचरण द्वारा कल्‍याण प्राप्ति की इच्छा से वन को चले गये, इसलिये शान्‍तनु एवं महारथी वाह्रीक ने इस पृथ्‍वी का राज्‍य प्राप्त किया। राजन् ! भरत के वंश में सभी नरेश धैर्यवान् एवं शक्तिशाली थे। उस वंश में बहुत-से श्रेष्ठ नृपतिगण देवर्षियों के सामन थे। ऐसे ही और कितने ही देवतुल्‍य महारथी मनुवंश में उत्‍पन्न हुए थे, जो महाराज पूरुरवा के वंश की वृद्धि करने वाले थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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