महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 39 श्लोक 19-25
एकोनचत्वारिंश (39) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
गुणों के भेद से तीन प्रकार से दान दिये जाते हैं। तीन प्रकार का यज्ञानुष्ठान होता है। लोक, देव, विद्या और गति भी तीन-तीन प्रकार की होती है।
भूत, वर्तमान, भविष्य, धर्म, अर्थ, काम, प्राण, अपान और उदान- ये सब त्रिगुणात्मक ही हैं।
इस जगत में जो कोई भी वस्तु भिन्न भिन्न स्थानों में भिन्न भिन्न प्रकार से उपलब्ध होती है, वह सब त्रिगुणमय हैं।
सर्वत्र तीनों गुणों की ही सत्ता है। ये तीनों अव्यक्त और प्रवाह रूप से नित्य भी है। सत्त्व,रज और तम- इन गुणों की सृष्टि सनातन है।
प्रकृति को तम, व्यक्त, शिव, धाम, रज, योनि, सनातन, प्रकृति, विकार, प्रलय, प्रधान, प्रभव, अप्यय, अनद्रिक्त, अनून, अकम्प, अचल, धु्रव, सत्, असत्, अव्यक्त और त्रिगुणात्मक कहते हैं। अध्यात्म तत्व का चिन्तन करने वाले लोगों को इन नामों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये।
जो मनुष्य प्रकृति के इन नामों, सत्त्वादि गुणों और सम्पूर्ण विशुद्ध गतियों को ठीक-ठीक जानता है, वह गुण विभाग के तत्त्व का ज्ञाता है। उसके ऊपर सांसारिक दु:खों का प्रभाव नहीं पड़ता है। वह देह त्याग के पश्चात् सम्पूर्ण गुणों के बन्धन से छुटकारा पा जाता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में गुरु शिष्य संवाद विषयक उनतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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