महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णवधर्म पर्व भाग-57
द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)
विषुवयोग और ग्रहण आदि में दान की महिमा, पीपल का महत्व, तीर्थभूत गुणों की प्रशंसा और उत्तम प्रायश्चित युधिष्ठिर ने पूछा- भगवन ! देवेश्वर ! विषुवयोग में तथा सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के समय दान देने से किस फल की प्राप्ति बतायी गयी है, यह बतलाने की कृपा करें। श्रीभगवान ने कहा- राजन् ! विषुवयोग में, सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के समय, व्यतीपातयोग में तथा उत्तरायण या दक्षिणायन आरम्भ होने के दिन जो दान दिया जाता है, वह अक्षय फल देने वाला होता है । इस विषय का वर्णन करता हूं, सुनो। महाराज युधिष्ठिर ! उत्तरायण और दक्षिणायन के मध्य भाग में जब कि रात और दिन बराबर होते हैं, वह समय ‘विषुयोग’ नाम से पुकारा जाता है । उस दिन संध्या के समय मैं, ब्रह्मा और महादेवजी क्रिया, करण और कार्यों की एकता पर विचार करने के लिये एक बार एकत्रित होते हैं। नरेश्वर ! जिस मुहूर्त में हम लोगों का समागम होत है, वह कलारहित परम पद है । वह मुहूर्त परम पवित्र और विषुव पर्व के नाम से प्रसिद्ध है। उसे अक्षर ब्रह्मा और परब्रह्मा भी कहते हैं । उस मुहूर्त में सब लोग परम पद का चिन्तन करते हैं। राजेन्द्र ! देवता, वसु, रुद्र, पितर, अश्विनी कुमार, साध्यगण, विश्वेदेव, गन्धर्व, सिद्ध, ब्रह्मर्षि, सोम आदि ग्रह, नदियां, समुद्र, मरुत, अप्सरा, नाग, यक्ष, राक्षस और गुहृाक- ये तथा दूसरे देवता भी विषुव पर्व में इन्द्रिय-संयम पूर्वक उपवास करते हैं और प्रयत्न पूर्वक परमात्मा के ध्यान में संलग्न होते हैं। इसलिये युधिष्ठिर ! तुम अन्न, गौ, तिल, भूमि, कन्या, घर, विश्राम स्थान, धान्य, चाहन, शय्या तथा और जो वस्तुएं मेरे द्वारा दान के योग बतलायी गयी हैं, उन सबका विषुव पर्व में दान करो। कुन्तीनन्दन ! जो दान विषुवयोग में विशेषत: श्रोत्रिय ब्राह्मणों को दिया जाता है, उस दान का कभी नाश नहीं होता। उस दान का पुण्य प्रतिदिन बढ़ते-बढ़ते करोड़ गुना हो जाता है। आकाश में जब चन्द्रग्रहण अथवा सूर्यग्रहण लगा हो, उस समय मेरी अथवा भगवान शंकर की पूजा करता हुआ मेरी या शंकर की गायत्री जाप करता है तथा भक्ति के साथ शंख, तूर्य, झांझ और घंटा बजाकर उनकी ध्वनि करता है, उसके पुण्य फल का वर्णन सुनो। मेरे सामने गीत, होम और जप करने तथा मेरे उत्तम नामों का कीर्तन करने से राहु दुर्बल और चन्द्रमा बलवान होते हैं। सूर्य और चन्द्रमा के ग्रहणकाल में श्रोत्रिय ब्राह्मणों को जो दान दिया जाता है, वह हजार गुना होकर दाता को मिलता है। महान पात की मनुष्य भी दान से तत्काल पाप रहित होकर पुरुष श्रेष्ठ हो जाता है। वह चन्द्रमा और सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित सुन्दर विमान पर बैठकर रमणीय चन्द्रलोक में गमन करता है और वहां अप्सरागणों से उसकी सेवा की जाती है। राजेन्द्र ! जब तक आकाश में चन्द्रमा के साथ तारे मौजूद रहते हैं, तब तक चन्द्रलोक में वह सम्मान के साथ निवास करता है। युधिष्ठिर ! फिर समयानुसार वहां से लौटने पर इस संसार में वह वेद-वेदोगों का विद्वान और करोड़पति ब्राह्मण होता है। युधिष्ठिर ने पूछा- भगवन ! विभो ! आपकी गायत्री का जप किस तरह किया जाता है ? देवदेवेश्वर ! उसका क्या फल होता है- यह बताने की कृपा कीजिये।
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