महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 78 श्लोक 45-64
अष्टसप्ततितम (78) अध्याय: कर्ण पर्व
कर्ण का अस्त्र जब वेगपूर्वक बढ़ने लगा तो वहाँ बाणों से घोर अन्धकार छा गया । उसमें अपने और शत्रुपक्ष के योद्धा परस्पर पहचाने नही जाते थे। महाराज ! राधापुत्र के धनुष से छूटे हुए सुवर्णभूषित
बाणों द्वारा समस्त पाण्डव महारथी आच्छादित हो गये। महाराज ! समरभूमि में प्रयत्नपूर्वक युद्ध करने वाले पाण्डव पक्ष के महारथी राधापुत्र कर्ण के द्वारा बारंबार भागने को विवश कर दिये जाते थे। जैसे वन में कुपित हुआ सिंह मृग समूहों को खदेडता रहता है, उसी प्रकार शत्रुपक्ष के पांचाल महारथियों को भगाता हुआ महायशस्वी कर्ण समरांगण में समस्त योद्धाओं को त्रास देने लगा । जैसे भेडिया पशु समूहों को भयभीत करके भगा देता है, उसी प्रकार कर्ण ने पाण्ड़व सेना को खदेड़ दिया। पाण्ड़व सेना को युद्ध से विमुख हुई देख आपके महाधनुर्धर पुत्र भीषण गर्जना करते हुए वहाँ आ पहुँचे। राजेन्द्र ! उस समय दुर्योधन को बडी प्रसन्नता हुई । वह हर्ष में भरकर सब ओर नाना प्रकार बाजे बजवाने लगा। उस समय वहाँ भगे हुए महाधनुर्धर नरश्रेष्ठ पांचाल मृत्यु को ही युद्ध से लौटने की अवधि निश्चित करके पुन: सूतपुत्र कर्ण से जूझने के लिये लौटे हुए आये।
महाराज ! शत्रुओं को संताप देने वाला पुरूष श्रेष्ठ राधापुत्र कर्ण उन लौटे हुए शूरवीरों को रणभूमि में बारंबर भगा देता था। भरतनन्दन ! कर्ण ने वहाँ बाणों द्वारा बीस पांचाल रथियों और सौ से भी अधिक चेदिदेशीय योद्धाओ को क्रोधपूर्वक मार डाला। भारत ! उसने रथ की बैठकें सूनी कर दीं, घोडों की पीठें खाली कर दीं, हाथियों के पीठों और कंधों पर कोई मनुष्य नहीं रहने दिये और पैदलों को भी मार भगाया। इस प्रकार शत्रुओं को तपाने वाला कर्ण मध्याह्नकाल के सूर्य की भाँति तप रहा था । उस समय उसकी ओर देखना कठिन हो गया था । शूरवीर सूतपुत्र का शरीर काल और अन्तक के समान सुशोभित हो रहा था। महाराज ! इस प्रकार शत्रुसूदन महाधनुर्धर कर्ण शत्रुपक्ष के पैदल, घोडे, रथ और हाथियों का संहार करके काल खड़ा हो, उसी प्रकार महाबली महारथी कर्ण सोमकों का विनाश करके युद्ध भूमि में अकेला ही डटा रहा। वहाँ हम लोगों ने पांचाल वीरों का यह अदुभत पराक्रम देखा कि वे मारे जाने पर भी युद्ध के मुहाने पर कर्ण को छोड़कर पीछे न हटे। राजा दुर्योधन, दुःशासन, शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य, अश्वत्थामा, कृतवर्मा और महाबली शकुनि ने भी पाण्डव सेना के सैकडों-हजारों वीरों का संहार का डाला। राजेन्द्र ! कर्ण के दो सत्यपराक्रमी पुत्र शेष रह गये थे। वे दोनों भाई क्रोधपूर्वक इधर-उधर से पाण्डव सेना का विनाश करते थे। इस प्रकार वहां महान् संहारकारी एवं क्रूरतापूर्ण भारी युद्ध हुआ। इसी तरह पाण्डववीर धृष्टधुम्न, शिखण्डी और द्रौपदी के पांचों पुत्र आदि ने भी कुपित होकर आपकी सेना का संहार किया। इस प्रकार कर्ण को पाकर जहां-तहां पाण्डव योद्धाओं का संहार हुआ और महाबली भीमसेन को पाकर रणभूमि मैं आपके योद्धाओं का भी महान विनाश हुआ।
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