महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 111-116
नवतितम (90) अध्याय: कर्ण पर्व
अर्जुन ! जो केश खोलकर खड़ा हो, युद्ध से मुँह मोड़ चुका हो, ब्राह्माण हो, हाथ जोड़कर शरण में आया हो, हथियार डाल चुका हो, प्राणों की भीख माँगता हों, जिसके बाण, कवच और दूसरे-दूसरे आयुध नष्ट हो गये हों, ऐसे पुरूष पर उत्तम व्रत का पालन करने वाले शूरवीर शस्त्रों का प्रहार नहीं करते हैं। पाण्डुनन्दन ! तुम लोक में महान शूर और सदाचारी माने जाते हो। युद्ध के धर्मों को जानते हो। वेदान्त का अध्ययन रूपी यज्ञ समाप्त करके तुम उसमें अवभृथस्थान कर चुके हो। तुम्हें दिव्यास्त्रों का ज्ञान है। तुम अमेय आत्मबल से सम्पन्न तथा युद्धस्थल में कार्तवीर्य अर्जुन के समान पराक्रमी हो। महाबाहो ! जब तक मैं इस फँसे हुए पहिये को निकाल रहा हूँ, तब तक तुम रथारूढ़ होकर भी मुझ भूमि पर खडे़ हुए को बाणों की मार से व्याकुल न करो। पाण्डुपुत्र ! मैं वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण अथवा तुमसे तनिक भी डरता नहीं हूँ। तुम क्षत्रिय के पुत्र हो, एक उच्च कुल का गौरव बढ़ाते हो; इसलिये तुमसे ऐसी बात कहता हूँ। पाण्डव ! तुम दो घड़ी के लिये मुझे क्षमा करो ।
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