महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 77 श्लोक 13-26
सप्तसप्ततितम (77) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )
तुम्हारा पुत्र उत्तम कुल में उत्पन्न धीर वीर और विशेषत: क्षत्रिय था । यह मृत्यु उसके योग्य ही हुई है, इसलिये शोक न करो ।यह सौभाग्य की बात है कि पिता के तुल्य पराक्रमी धीर महारथी अभिमन्यु क्षत्रियोचित कर्तव्य का पालन करके उस उत्तम गति को प्राप्त हुआ है, जिसकी वीर पुरुष अभिलाषा करते हैं ।वह बहुत से शत्रुओं को जीतकर और बहुतों को मृत्यु के लोक में भेजकर पुण्यात्माओं को प्राप्त होने वाले उन अक्षय लोकों में गया है, जो सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं।तपस्या, ब्रह्मचर्य, शास्त्रज्ञान और सद्बुद्धि के द्वारा साधुपुरुष जिस गति को पाना चाहते हैं, वही गति तुम्हारे पुत्र को भी प्राप्त हुई है । सुभद्रे ! तुम वीरमाता, वीरपत्नी, वीरकन्या और वीर भाईयों की बहिन हो । तुम पुत्र के लिये शोक न करो। यह उत्तम गति को प्राप्त हुआ हैं । वरारोहे ! बालक की हत्या कराने वाला वह पापकर्मा पापी सिंधुराज जयद्रथ रात बीतने पर प्रात:काल होते ही अपने सुहृदों और बन्धु-बान्धवों सहित इस अपराध फल पायेगा । वह अमरावतीपुरी में जाकर छिप जाय तो भी अर्जुन के हाथ से उसका छुटकारा नहीं होगा । तुम फल ही सुनोगी किरण क्षेत्र में जयद्रथ का मस्तक काट लिया गया है और वह समन्तपंचक क्षेत्र से बाहर जा गिरा है । अत: शोक त्याग दो और रोना बंद करो । शूरवीर अभिमन्यु ने क्षत्रिय-धर्म को आगे रखकर सत्यपुरुषों की गति पायी है, जिसे हम लोग और इस संसार के दूसरे शस्त्रधारी क्षत्रिय भी पाना चाहते हैं । सुन्दरी ! चौडी छाती और विशाल भुजाओं से सुशोभित युद्ध से पीछे न हटने वाला तथा शत्रफपक्ष के रथियों पर विजय पाने वाला तुम्हारा पुत्र स्वर्गलोक में गया है । तुम चिन्ता छोडो । बलवान शूरवीर और महारथी अभिमन्यु पितृकुल तथा मातृकुल की मर्यादा का अनुसरण करते हुए सहस्त्रों शत्रुओं को मारकर मरा है । रानी बहिन ! अधिक चिन्ता छोडो और बहू को धीरज बंधाओ । अपने कुल को आनन्दित करने वाली क्षत्रिय कन्ये ! कल अत्यन्त प्रिय समाचार सुनकर शोकरहित हो जाओ । अर्जुन ने जिस बात के लिये प्रतिज्ञा कर ली है, वह उसी रुप मे पूर्ण होगी। उसे कोई पलट नहीं सकता। तुम्हारे स्वामी जो कुछ करना चाहते है, वह कभी निष्फल नही होता। यदि मनुष्य, नाग, पिशाच, निशाचर, पक्षी, देवता और असुर भी रणक्षैत्र में आये हुए सिधुराज जयद्रथ की सहायता के लिये आ जाये तो भी वह कल उन सहायकों के साथ ही जीवन से हाथ धो बैठेगा।
इस प्रकार श्री महाभारत द्रोण पर्व के अन्तर्गत प्रतिज्ञा पर्व में सुभद्रा को श्री कृष्ण का आश्वासन विषयक सतहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
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