महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 159 श्लोक 20-40

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एकोनषष्टयधिकशततम (159) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: एकोनषष्टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-40 का हिन्दी अनुवाद

रथियों में श्रेष्ठ, पराक्रमी एवं तेजस्वी वीर गर्ण भी देवताओं से घिरे हुए इन्द्र के समान प्रधान कौरव वीरों से घिर कर अपने बाहुबल का भरोसा करके धनुष उठाकर युद्ध के लिये खड़ा हो गया। महाराज! तदनन्तर कर्ण का पाण्डवों के साथ भीषण युद्ध आरम्भ हुआ, जो सिंहनाद से सुशोभित हो रहा था। राजन्! यशस्वी पाण्डव और पान्चालों ने महाबाहु कर्ण को देखकर उच्चस्वर से इस प्रकार कहना आरम्भ किया। ‘कहाँ कर्ण है। यह कर्ण है। दुरात्मन् नराधम कर्ण! इस महायुद्ध में खड़ा रह और हमारे साथ युद्ध कर’। दूसरे लोगों ने राधा पुत्र कर्ण को देखकर क्रोध से लाल आँखें करके कहा- ‘समस्त श्रेष्ठ राजा मिलकर इस घमंडी और मूर्ख सूतपुत्र को मार डालें। इसके जीने से कोई लाभ नहीं है। यह पापात्मा पुरूष सदा कुन्तीकुमारों के साथ अत्यन्त वैर रखता आया है। दुर्योधन की राय में रहकर यही सारे अनर्थों की जड़ बना हुआ है। अतः इसे मार डालो।’ ऐसा कहते हुए समस्त क्षत्रिय महारथी पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर से सूतपुत्र के वध के लिये प्रेरित हो बाणों की बड़ी भारी वर्षा द्वारा उसे आच्छादित करते हुए उस पर टूट पडे़। उन समस्त महारथियों को इस प्रकार धावा करते देख सूतपुत्र के मन में न तो व्यथा हुई और न त्रास ही हुआ। भरतश्रेष्ठ! प्रलयकाल के समान उस सैन्यसागर को उमड़ा हुआ देख संग्राम में पराजित न होने वाले बलवान्, शीघ्रकारी और महान् शक्तिशाली गर्ण ने आपके पुत्रों को प्रसन्न करने की इच्छा से बाण-समूह की वर्षा करके सब ओर से शत्रुओं की उस सेना को रोक दिया। तदनन्तर सैकड़ों और सहस्त्रों नरेशों ने अपने धनुषों को कम्पित करते हुए बाणों की वर्षा से कर्ण की भी प्रगति रोक दी। जैसे दैत्यों ने इन्द्र के साथ संग्राम किया था, उसी प्रकार वे राजा लोग राधा पुत्र कर्ण के साथ युद्ध करने लगे। प्रभो! राजाओं द्वारा की हुई उस बाण-वर्षा को कर्ण ने बाणों की बड़ी भारी वृष्टि करके सब ओर बिखेर दिया। जैसे देवासुर-संग्राम में दानवों के साथ इन्द्र का युद्ध हुआ था, उसी प्रकार घात-प्रतिघात की इच्छावाले राजाओं तथा कर्ण का वह युद्ध बड़ा भयंकर हो रहा था। वहाँ हमने सूतपुत्र कर्ण की अद्भुत फुर्ती देखी, जिससे सब ओर से प्रयत्न करने पर भी शत्रुपक्षीय योद्धा उस युद्धस्थल में कर्ण को काबू में नहीं कर पा रहे थे। राजाओं के उन बाणसमूहों का निवारण करके महारथी राधा पुत्र कर्ण ने उनके रथ के जूओं, ईषादण्डों, छत्रों, ध्वजाओं तथा घोड़ों पर अपने नाम खुदे हुए भयंकर बाणों का प्रहार किया। तत्पश्चात् कर्ण के बाणों से पीडि़त और व्याकुल हुए राजा लोग सर्दी से कष्ट पाने वाली गायों के समान इधर-उधर चक्कर काटने लगे। कर्ण के बाणों की चोट खाकर मरने वाले घोड़ों, हाथियों और रथियों के झुंड-के-झुंड हमने वहाँ देखे थे। राजन्! युद्ध में पीठ न दिखाने वाले शूरवीरों के कट-कट कर गिरे हुए मस्तकों और भुजाओं से वहाँ की सारी भूमि सब ओर से पट गयी थी। कुछ लोग मारे गये थे, कुछ मारे जा रहे थे और कुछ लोग सब ओर पीड़ा से कराह रहे थे। इससे वह युद्धस्थल यमपुरी के समान भयंकर प्रतीत होता था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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