महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 109 श्लोक 21-39

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नवाधिकशततम (109) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: नवाधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-39 का हिन्दी अनुवाद

धृष्टद्युम्न तथा शूरवीर राक्षस घटोत्कच ने भी सहसा इस महासमर में आकर मेरी सेना को मार भगाया है। भारत ! इन सब महारथियांे द्वारा मारी जाती हुई अपनी सेना को मैं युद्ध में ठहराने के लिये आपके सिवा दूसरा कोई आश्रय नहीं देखता। देवतुल्य पराक्रमी पुरूषसिंह ! केवल आप ही उसकी रक्षा में समर्थ है। अतः हम पीडि़तों के लिये आप शीघ्र ही आश्रयदाता होइये।
संजय कहते है- महाराज ! दुर्योधन के ऐसा कहने पर आपके ताऊ शान्तनुनन्दन देवव्रत ने दो घड़ी तक कुछ चिन्तन करने के पश्चात अपना एक निश्चय करके आपके पुत्र दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए इस प्रकार कहा - प्रजानाथ दुर्योधन ! सुस्थिर होकर इधर ध्यान दो। महाबली नरेश ! पूर्वकाल में मैंने तुम्हारे लिये यह प्रतिज्ञा की थी कि दस हजार महामनस्वी क्षत्रियों का वध करके ही मुझे संग्रामभूमि से हटना होगा और यह मेरा दैनिक कर्म होगा। भरतश्रेष्ठ ! जैसा मैंने कहा था, वैसा अबतक करता आया हू। महाबली वीर ! आज भी मैं महान् कर्म करूँगा। या तो आज मैं ही मरा जाकर रणभूमि में सो जाऊँगा या पाण्डवों का ही संहार करूँगा। पुरूषसिंह ! नरेश ! तुम स्वामी हो, मुझपर तुम्हारे अन्न का ऋण है; आज युद्ध के मुहाने पर मारा जाकर मैं तुम्हारे उस ऋण को उतार दूँगा। भरतश्रेष्ठ ! ऐसा कहकर दुर्धर्ष वीर भीष्म ने क्षत्रियों पर अपने बाणों की वर्षा करते हुए पाण्डवों की सेना पर आक्रमण किया। सेना के मध्य भाग में स्थित हुए विषधर सर्प के समान कुपित भीष्म को पाण्डव सैनिक रोकने लगे। किंतु राजन् ! कुरूनन्दन ! दसवें दिन भीष्म ने अपनी शक्ति का परिचय देते हुए लाखों पाण्डव सैनिकों का संहार कर डाला।
जैसेे सूर्य अपनी किरणों द्वारा धरती का जल सोख लेते है, उसी प्रकार भीष्मजी ने पान्चालों में जो श्रेष्ठ महारथी राजकुमार थे, उन सबके तेज हर लिये। महाराज ! सवारों सहित दस हजार वेगशाली हाथियों, उतने ही घोडों और घुडसवारों तथा दो लाख पैदल सैनिकों को नरश्रेष्ठ भीष्म ने रणभूमि में धूमरहित अग्नि की भाँति फँूक डाला। उत्तरायण का आश्रय लेकर तपते हुए सूर्य की भाँति प्रतापी भीष्म की और पाण्डवों से कोई देखने में समर्थ न हो सके। महाधनुर्धर भीष्म के बाणों से पीडि़त हो अत्यन्त क्रोध में भरे हुए पाण्डव तथा सृंजय महारथी भीष्म के वध के लिये उन पर टूट पड़े। बहुत से योद्धाओं के साथ अकेले युद्ध करते हुए शान्तनु नन्दन भीष्म उस समय बाणों से आच्छादित हो मेघों के समूह से आवृत हुए महान् पर्वत भेरू की भाँति शोभा पा रहे थे। राजन् ! आपके पुत्रों ने विशाल सेना के साथ आकर गंगानन्दन भीष्म को सब ओर से घेर लिया। तत्पश्चात वहाँ विकट युद्ध होने लगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में भीष्म-दुर्योधन-संवाद विषयक एक सौ नवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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