महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 11 श्लोक 1-20

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एकादश (11) अध्याय: भीष्म पर्व (भूमि पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकादश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

शाकद्वीप का वर्णन

धृतराष्‍ट्र बोले- संजय! तुमने यहां जम्बूखण्‍ड का यथावत् वर्ण‍न किया है। अब तुम इसके विस्तार और परिमाण को ठीक-ठीक बताओं। संजय! समुद्र के सम्पूर्ण परिमाण को भी अच्छी तरह समझाकर कहों। इसके बाद मुझसे शाकद्वीप ओर कुशद्वीप का वर्णन करो। गवल्गणकुमार संजय! इसी प्रकार शाल्मलिद्वीप, क्रौंचद्वीप तथा सुर्य, चन्द्रमा एवं राहु से सम्बन्ध रखनेवाली सब बातों का यथार्थ रूप से प्रतिदिन करो। संजय बोले- राजन्! बहुत-से द्वीप हैं, जिनसे सम्पूर्ण जगत् परिपूर्ण है। अब मैं आपकी आज्ञा के अनुसार सात द्वीपों का तथा चन्द्रमा, सूर्य और राहु का भी वर्णन करूंगा। राजन्! जम्बूद्वीप का विस्तार पूरे १८६०० योजन हैं। इसके चारों ओर जो खारे पानी का समुद्र है, उसका विस्तार जम्बूद्वीप की अपेक्षा दूना माना गया है। उसके तट पर तथा टापू में ब‍हत-से देश और जनपद है। उसके भीतर नाना प्रकार के मणि और मूंगे हैं , जो उसकी विचित्रता सूचित करते हैं। अनेक प्रकार के धातुओं से अद्भूत प्रतीत होने वाले बहुसंख्‍यक पर्वत उस सागर की शोभा बढा़ते हैं। सिद्धों तथा चारणों से भरा हुआ वह लवणसमुद्र सब ओर से मण्‍डलाकार हैं। राजन्! अब मैं शाकद्वीप का यथावत् वर्णन आरम्भ करता हूं। कुरूनन्दन! मेरे इस न्यायोचित्त कथन को आप ध्‍यान देकर सुनें।
महाराज! नरेश्‍वर! वह द्वीप विस्तार की दृष्टि से जम्बूद्वीप के परिमाण से दूना है। भरतश्रेष्‍ठ! उसका समुद्र भी विभागपूर्वक उससे दूना ही हैं। भरतश्रेष्‍ठ! उस समुद्र का नाम क्षीरसागर है, जिसने उक्त द्वीप को सब ओर से घेर रकखा हैं। यहां पवित्र जनपद हैं। वहां निवास करने वाले लोगों की मृत्यु नहीं होती। फिर वहां दुर्भिक्ष तो हो ही कैसे सकता हैं? उस द्वीप के‍ निवासी क्षमाशील और तेजस्वी होते हैं। भरतश्रेष्‍ठ महाराज! इस प्रकार शाकद्वीप का संक्षेप से यथावत् वर्णन किया गया है। अब और आप से क्या कहूं? धृतराष्‍ट्र बोले- महाबुद्धिमान् संजय! तुमने यहां शाकद्वीप का संक्षिप्त रूप से यथावत् वर्णन किया है। अब उसका कुछ विस्तार के साथ यथार्थ परिचय दो। संजय बोले- राजन्! शाकद्वीप में भी मणियों से विभूषित सात पर्वत है। वहां रत्नों की बहुत-सी खानें तथा नदियां भी हैं। उनके नाम मुझसे सुनिये। जनेश्‍वर! वहां का सब कुछ परम पवित्र और अत्यन्त गुणकारी हैं। वहां का प्रधान पर्वत है मेरू, जो देवर्षियों तथा गन्धवों से सेवित हैं। महाराज! दूसरे पर्वत का नाम मलय है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर फैला हुआ है। मेघ वहीं से उत्पन्न होते हैं, फिर वे सब ओर फैलकर जल की वर्षा करने में समर्थ हैं।
कुरूनन्दन! उसके बाद जलधार नामक महान् पर्वत हैं। जनेश्‍वर! इन्द्र वहीं से सदा उत्तम जल ग्रहण करते हैं। इसीलिये वर्षाकाल में वे यथेष्‍ट जल बरसाने में समर्थ होते हैं। उसी द्वीप में उच्चतम रैवतक पर्वत है, जहां आकाश में रैवती नामक नक्षत्र नित्य प्रतिष्ठित है। यह ब्रह्माजी का रचा हुआ विधान है। राजेन्द्र! उसके उत्तर भाग में श्‍याम नामक महान् पर्वत है, जो नूतन मेघ के समान श्‍याम शोभा से युक्त हैं। उसकी ऊंचाई बहुत है। उसका कान्तिमान् कलेवर परम उज्जवल है। जनपदेश्‍वर! वहां रहने से ही वहां की प्रजा श्‍यामता को प्राप्त हुई है। धृतराष्‍ट्र बोले- सूतपुत्र संजय! यह तो तुमने आज मुझसे महान् संशय की बात कही है। भला, वहां रहने मात्र से प्रजा श्‍यामता को कैसे प्राप्त हो गयी?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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