महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 120 श्लोक 1-20
विंशत्यधिकशततम (120) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
भीष्म जी की महत्ता तथा अर्जुन के द्वाराभीष्मि को तकिया देना एंव उभय पक्ष की सेनाओं का अपने शिबिरमें जाना और श्रीकृष्ण-युधिष्ठिर-संवाद
धृतराष्ट्रा ने पूछा-संजय! भीष्मं जी बलवान् और देवता के समान थे। उन्हों ने अपने पिता के लिये आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था। उस दिन उनके रथ से गिर जाने के कारण उनके सहयोग से वञ्चित हुए मेरे पक्ष के योद्धाओं की क्या दशा हुई? भीष्म जी ने अपनी दयालुताके कारण जब द्रुपदकुमार शिखण्डीषपर प्रहार करने से हाथ खींच लिया, तभी मैंने यह समझ लिया था कि अब पाण्डदवों के हाथ से अन्यर कौरव भी अवश्यय मारे जायंगे मेरी समझ में इस्सेप बढ़कर महान् दु:ख की बात और क्यान होगी कि आज अपने ताऊ भीष्म के मारे जाने का समाचार सुनकर भी जीवित हूं। मेरी बुद्धि बहुत ही खोटी है। संजय! निश्र्चय ही मेरा हृदय लोहे का बना हुआ है; क्यों कि आज भीष्मतजी के मारे जाने का समाचार सुनकर भी यह सैकड़ों टुकड़ों में विदीर्ण नहीं हो रहा है। उत्तम व्रत का पालनकरने वाले संजय! विजय की अभिलाषा रखनेवाले कुरूकुलसिंह भीष्मह जब युद्ध में मारे गये, उस समय उन्होंजने दूसरी कौन-कौन-सी चेष्टाभएं की थीं? वह सब मुझसे कहो। रणभूमि में देवव्रत भीष्म, का मारा जाना मुझे बारंबार असह्य हो उठता है। जो भीष्मु पूर्वकाल में जमदग्निमनंदन परशुराम के दिव्याास्त्रों द्वारा भी नहीं मारे जा सके, वे ही द्रुपदकुमार पाञ्चालदेशीय शिखण्डीा के हाथ से मारे गये; यह कितने दु:ख की बात है। संजय ने कहा-महाराज! कुरूकुलवृद्ध पितामह भीष्मम सायंकाल में जब रणभूमि में गिरे, उस समय उन्हों।ने आपके पुत्रों को विषाद में डाल दिया और पाञ्चालों को हर्ष मनाने का अवसर दे दिया। वे पृथ्वीख का स्प्र्श किये बिना ही उस समय बाणशय्या पर सो रहे थे। भीष्म। के रथ से गिरकर धरती पर पड़ जाने पर समस्तर प्राणियों में भयंकर हाहाकार मच गया। राजन्! कुरूकुलके युद्ध विजयी वीर भीष्मप दोनों दलों के लिये सीमावर्ती वृक्ष के समान थे।
उनके गिर जाने से उभय पक्ष की सेनाओं में जो क्षत्रिय थे, उनके मन में भारी भय समा गया। प्रजानाथ! जिनके कवच ओर ध्ववज छिन्नप-भिन्नष हो गये थे, उन शांतनुनंदन भीष्म जी को उस अवस्थात में देखकर कौरव और पाण्ड व दोनों ही उन्हेंन घेरकर खड़े हो गये। उस समय आकाश में अंधकार छा गया। सूर्य की प्रभा फीकी पड़ गयी। शांतनुनंदन भीष्म के मारे जाने पर यह सारी पृथ्वीध भयानक शब्दा करने लगी। वहां सोये हुए पुरूषप्रवर भीष्म को देखकर कुछ दिव्य प्राणी कहने लगे, ब्रह्मज्ञानियों के शिरोमणि हैं, ये ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्ठे हैं। ‘इन्हीं पुरूष सिंह ने पूर्वकाल में अपने पिता शांतनु को कामासक्तर जानकर अपने आपको ऊध्वहरेता (नैष्ठिक ब्रह्मचारी) बना लिया। इस प्रकार सिद्धों और चारणों सहित ॠषिगण भरतकुल के महापुरूष भीष्मश को बाणशय्या पर स्थित देख पूर्वोक्तऔ बाते कहते थे। आर्य! भरतवंशियों के पितामह शांतनुनंदन भीष्म् के मारे जाने पर आपके पुत्रों को कुछ भी नहीं सूझता था। भारत! उनके मुखपर विषाद छा गया था। वे श्रीहीन और लज्जित हो नीचे की ओर मुंह लटकाये खडे़ थे । पाण्डव विजय पाकर युद्ध के मुहाने पर खडे़ थे और सब-के-सब सोने की जालियों से विभूषित बडे़-बडे़ शङ्खों को बजा रहे थे। निष्पारप महाराज! जब हर्षातिरेक से सहस्त्रों बाजे बज रहे थे, उस समय हमने कुंतीकुमार महाबली भीमसेन को देखा। वे महा बल और पराक्रम से सम्पन्नत शत्रु को वेगपूर्वक मार देने के कारण अत्यंभत हर्ष के साथ नाच रहे।
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