महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 59 श्लोक 56-73

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एकोनषष्टितम(59) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 56-73 का हिन्दी अनुवाद

फिर मेघ के समान गम्भीर शब्द करने वाले उस धनुष को दोनों हाथों से खींचा। इतने ही मे कुपित हुए अर्जुन ने उनके उस धनुष को भी काट डाला ।अर्जुन की इस फुर्ती को देखकर शान्तनुनन्दन भीष्म ने बडी प्रशंसा की और कहा- ‘महाबाहु कुन्तीकुमार ! तुम्हें साधुवाद। पाण्डुनन्दन ! धन्यवाद बेटा तुम्हारी इस फुर्ती से में बहुत प्रसन्न हूं धनंजय ! यह महान् कर्म तुम्हारे ही योग्य है तुम मेरे साथ युद्ध करो’ । इस प्रकार कुन्तीकुमार अर्जुन की प्रशंसा करके फिर दूसरा विशाल धनुष हाथ में लेकर वीर भीष्म ने युद्धस्थल में उनके रथ की और बाण बरसाना आरम्भ किया । भगवान् श्रीकृष्ण ने घोड़ों को हांकने की कला में अपने उत्तम बल का परिचय दिया। वे भीष्म के बाणों को व्यर्थ करते हुए बडी फुर्ती के साथ रथ को मण्डलाकार चलाने लगे । भारत! तथापि भीष्म ने श्रीकृष्ण और अर्जुन के सम्पूर्ण अंगों में अपने पैने बाणों से गहरे आघात किये । भीष्म के बाणों से क्षत-विक्षत हो वे नरश्रेष्ठ श्रीकृष्ण और अर्जुन क्रोध में भरे हुए उन दो सांडों के समान सुशोभित हुए, जिनके सम्पूर्ण शरीर में सीगों के आघात से बहुत से घाव हो गये थे ।
तत्पश्चात् रोषावेश में भरे हुए भीष्म ने सैकडों- हजारों बाणों की वर्षा करके युद्धभूमि में श्रीकृष्ण और अर्जुन की सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित एवं अवरूद्ध कर दिया । इतना ही नही, रोष भरे हुए भीष्म ने जोर-जोर से हॅसकर अपने तीखे बाणों से बारंबार पीड़ित करते हुए वृष्णि-कुलभूषण श्रीकृष्ण को कम्पित-सा कर दिया है । तदनन्तर महाबाहु श्रीकृष्ण ने उस समरांगण में भीष्म का पराक्रम देखकर यह विचार किया कि अर्जुन तो कोमलतापूर्वक युद्ध कर रहा है और भीष्म युद्धस्थल में निरन्तर बाणों की वर्षा कर रहे है। ये दोनों सेनाओं के बीच में आकर तपते हुए सूर्य की भांति सुशोभित होते और पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर के अच्छे-अच्छे सैनिकों को चुन-चुनकर मार रहे है। युधिष्ठिर की सेना में भीष्म ने प्रलय काल का-सा दृश्य उपस्थित कर दिया है।। यह सब देख ओर सोचकर शत्रुवीरों का संहार करने वाले अप्रमेयस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण सहन न कर सके। उन्‍होंने मन ही-मन विचार किया कि युधिष्ठिर की सेना का अस्तित्व मिटना चाहता है। भीष्म रणभूमि में एक ही दिन में सम्पूर्ण देवताओं और दानवों का नाश कर सकते है। फिर सेना और सेवकोसहित पाण्‍डवों को युद्ध में परास्त करना इनके लिये कौन बड़ी बात है ?।महात्मा पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर की यह विशाल सेना भागी जा रही है ओर ये कौरवलोग रणक्षेत्र में सोमको को शीघ्रतापूर्वक भागते देख पितामह का हर्ष बढ़ाते हुए उन्‍हें खदेड रहे है; अतः आज पाण्‍डवों के लिये कवच धारण किया हुआ मै स्वयं ही भीष्म को मार डालता हूं । महामना पाण्‍डवों के इस भारी भारको मैं ही दूर करुंगा। अर्जुन इस युद्ध में तीखे बाणों की मार खाकर भी भीष्म के प्रति गौरवबुद्धि रखने के कारण अपने कर्तव्य को नहीं समझ रहा है । भगवान् श्रीकृष्ण के इस प्रकार चिंतन करते समय अत्यन्त कुपित हुए पितामह भीष्म ने अर्जुन के रथ पर पुनः बहुत से बाण चलाये ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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