महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 96 श्लोक 19-37
षण्णवतितम (96) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाराज ! शेष अन्य महारथियों ने शत्रुपक्ष के शेष महारथियों पर आक्रमण किया। फिर तो उनमें घोर एवं भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ। जनेश्वर ! जैसे घी की आहुति देने से अग्निदेव प्रज्वलित हो उठते है, उसी प्रकार रणक्षेत्र में आपके पुत्रों को देखकर भीमसेन क्रोध से जल उठे। परंतु महाराज ! आपके पुत्रों ने कुन्तीनन्दन भीम को अपने बाणों से उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे वर्षाऋतु में बादल पर्वत को जल की धाराओं ढक लेते है। प्रजानाथ ! भरतनन्दन ! आपके पुत्रों द्वारा बार बार बाणों की वर्षा से आच्छादित किये जाने पर क्रोधपूर्वक अपने मुँह के कोनो को चाटते हुए सिंह के समान शौर्य का अभिमान रखने वाले वीर भीमसेन ने एक अत्यन्त तीखे क्षुरप्र के द्वारा आपके पुत्र व्यूढोरस्क को मार गिराया। उसकी जीवन लीला समाप्त हो गयी। तत्पश्चात् जैसे सिंह छोटे से मृग को दबोच लेता है, उसी प्रकार भीम ने दूसरे पानीदार एव तीखे भल्ल से आपके पुत्र कुण्डली को धराशायी कर दिया। आर्य ! इसक बाद भीम ने बड़ी उतावली के साथ बहुत से तीखे और पानीदार बाण हाथ में लिये और आपके पुत्रों को लक्ष्य करके छोड़ दिया। सुदृढ़ धनुर्धर भीमसेन के द्वारा चलाये हुए उन बाणों ने आपके बहुत से महारथी पुत्रों को मारकर रथों से निचे गिरा दिया। उनके नाम इस प्रकार है- अनाधृष्टि, कुण्डभेदि, वैराट, दीर्घलोचन, दीर्घबाहु, सुबाहु तथा कनकध्वज।
भरतश्रेष्ठ ! वे सभी वीर वहाँ गिरकर वसन्त ऋतु में धराशायी हुए पुरूपयुक्त आम्रवृक्षों की भाँति सुशोभित हो रहे थे। तब उस महायुद्ध में आपके शेष पुत्र महाबली भीमसेन को काल के समान समझकर वहाँ से भाग चले। तदनन्तर युद्धस्थल में आपके पुत्रों को दग्ध करते हुए वीर भीमसेन पर द्रोणाचार्य ने सब ओर से उसी प्रकार बाणों की वर्षा आरम्भ की, जैसे बादल पर्वत पर जल की धाराएँ गिराते है। महाराज ! उस समय हमने कुन्तीपुत्र भीम का अदभूध पराक्रम देखा। यद्यपि द्रोणाचार्य बाणों की वर्षा करके उन्हें रोक रहे थे, तो भी उन्होंने आपके पुत्रों को मार डाला। जैसे साँड आकाश से गिरती हुई जल वर्षा को अपने शरीर पर शान्त भाव से धारण और सहन करता है, उसी प्रकार भीमसेन द्रोणाचार्य की छोड़ी हुई बाण वर्षा को धारण कर रहे थे। महाराज ! भीमसेन ने उस युद्धस्थल में आपके पुत्रों का वध तो किया ही, द्रोणाचार्य को भी आगे बढ़ने से रोक रक्खा था। यह उन्होंने अदभूध पराक्रम किया। राजन् ! जैसे महाबली व्याघ्र मृगों के झुंड में विचरता हो, उसी प्रकार भीमसेन आपके वीर पुत्रों के समुदाय में खेल रहे थे। जैसे भेडि़या पशुओं के बीच में रहकर भी उन्हें विदीर्ण कर डालता है, उसी प्रकार भीमसेन रणभूमि में आपके पुत्रों को भगा रहे थे। दूसरी ओर गडंगानन्दन भीष्म, भगदत्त और कृपाचार्य ये तीनों महारथी युद्ध में वेग से आगे बढ़ने वाले पाण्डुकुमार अर्जुन का निवारण कर रहे थे। परंतु अतिरथी वीर अर्जुन ने रणभूमि में उनके अस्त्रों का अस्त्रों द्वारा निवारण करके आपकी सेना के प्रमुख वीरों को यमराज के पास भेज दिया।
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