महाभारत वन पर्व अध्याय 75 श्लोक 1-18

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

पञ्चसप्ततितम (75) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: पञ्चसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

दमयन्ती के आदेष से केषिनीद्वारा बाहुक की परीक्षा तथा बाहुक का अपने लड़के-लड़कियों को देखकर उनसे प्रेम करना बृहदश्व मुनिक कहते हैं-युधिष्ठिर यह सब सुनकर दमयन्ती अत्यन्त शोकमग्न हों गयी। उसके हृदय में निश्तिच रूप से बाहुक के नल होने का संदेह हो गया और यह केशिनी से इस प्रकार बोली- ‘केशिनी ! फिर जाओ और बाहुक की परीक्षा करो। अब की बार तुम कुछ बोलना मत। निकट रहकर उसके चरित्रों पर दृष्टि रखना। ‘भामिनि ! जब वह कोई काम करे तो उस कार्य को करते समय उसकी प्रत्येक चेष्टा और उसके कारण पर लक्ष्य रखना। ‘केशिनि ! वह आग्रह करे तो भी उसे आग ने देना और मांगने पर भी किसी प्रकार जल्दी में आकर पानी भी न देना। ‘बाहुक के इस सब चरित्रों की समीक्षा करके फिर मुझे सब बात बताना। बाहुक में यदि तुम्हें कोई दिव्य तथा मानवोचित विशेषता दिखायी दे तथा और भी कोई विशेषता दृष्टिगोचर हो तो उसपर भी दृष्टि रखना और मुझे आकर बताना’। दमयन्ती के ऐसा कहने पर केशिनी पुनः वहां गयी और अश्वविद्याविशारद बाहुक के लक्षणों का अवलोकन करके वह फिर लौट आयी। उसने बाहुक में जो दिव्य अथवा मनोचित विशेषताएं देखी, उसका यथावत् समाचार पूर्ण रूप से दमयन्ती को बताया। केशिनी ने कहा-दमयन्ती ! उसका प्रत्येक व्यवहार अत्यन्त प्रवित्र है। ऐसा मनुष्य जो पहले मैंने कहीं भी न देखा है और न सुना है। किसी छोटे-से-छोटे दरवाजे पर जाकर भी वह झुकता नहीं है। उसे देखकर बड़ी आसानी के साथ दरवाजा ही इस प्रकार ऊंचा हो जाता है। कि जिससे मस्तक उससे स्पर्श न हो। संकुचित स्थान में भी उसके लिये बहुत बड़ा अवकाश बन जाता है। राजा भीम ने ऋतुपर्ण के लिये अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ भेजे थे। उसमें प्रचुर मात्रा में केला आदि फलों का गूदा भी था, उनको धाने के लिये वहां खाली घड़े रख दिये थे। परंतु बाहुक के देखते ही वह सारे घड़े पानी से भर गये। उससे खाद्य पदार्थो को धोकर बाहुक ने चूल्हे पर चढ़ा दिया। फिर एक मुट्ठी तिनका लेकर सूर्य की किरणों से ही उसे उद्दीप्त किया। फिर तो देखते-देखते सहसा उसमें आग प्रज्वलित हो गयी। वह अद्भुत बात देखकर मैं आश्चर्यचकित होकर जहां आयी हूं। बाहुक में एक और भी बड़े आश्चर्य की बात देखी है। शुभे ! वह अग्नि का स्पर्श करके भी जलता नहीं है। पात्र में रक्खा हुआ थोड़ा-सा जल भी उसकी इच्छा के अनुसार तुरन्त ही प्रवाहित हो जाता है। एक और अत्यन्त आश्चर्यजनक बात मुझे उसमें दिखायी दी है। वह फूल लेकर उन्हें हाथों से धीरे-धीरे मसलता था। हाथों से मसलने पर भी वे फूल विकृत नहीं होते थे अपितु और भी सुगन्धित और विकसित हो जाते थे। ये अद्भूत लक्षण देखकर मैं शीघ्रतापूर्वक यहां आयी हूं। बृहदश्व मुनि कहते हैं-युधिष्ठिर ! दमयन्ती ने पुण्यश्लोक महाराज नल की सी बाहुक की सारी चेष्टाओं को सुनकर मन-ही-मन यह निश्चय कर लिया कि महाराज नल ही आये हैं। अपने कार्यो और चेष्टाओं द्वारा वे पहचान लिये गये हैं।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।