महाभारत विराट पर्व अध्याय 36 श्लोक 18-24
षट्त्रिंश (36) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
‘जिन दिनों अर्जुन की सहायता से अग्निदेव ने दावानल रूप हो महान् खाण्डववन को जलाया था, उस समय इसी ने अर्जुन के श्रेष्ठ घोड़ों की बागडोर सँभाली थी। ‘इसी सारथि के सहयोग से कुनतीपुत्र अर्जुन ने खाण्डववन मे सम्पूर्ण प्राणियों पर विजय पायी थी; अतः इसके समान दूसरा कोई सारथि नहीं है’। उत्तर ने कहा- सैरन्ध्री ! वह युवक ऐसे गुणों से विभूषित है कि वह नपुंसक नहीं हो सकता; इन बातों को तुम अचछी तरह जानती हो; (अतः तुम उससे कह दो, तो ठीक है।) शुभे ! में स्वयं बृहन्नला से नहीं कह सकता कि तुम मेरे घोड़ों की रास सँभालो। द्रौपदी न कहा- वीर ! यह जो सुन्दर कटिप्रदेश वाली तुम्हारी छोटी बहन उत्तरा है। इसकी बात वह अवश्य मान लेगा, इसमे संशय नहीं है। यदि वह सारथि हो जाय, तो निःसंदेह सम्पूर्ण कौरवों को जीतकर और गौओं को भी वापस लकर तुम्हारा इस नगर में आगमन हो सकता हे, यह ध्रुव सत्य है। सैरन्ध्री के ऐसा कहने पर उत्तर अपनी बहिन से बोला- ‘निर्दोष अंगों वाली उत्तरे ! जाओ, उस बृहन्नले को बुला कर ले आओ’ । भाई के भेजने पर कुमारी उत्तरा शीघ्र नृत्यशाला में गयी जहाँ पाण्डुनन्दन महाबाहु अर्जुनकपटवेष में छिपकर रहते थे ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत गोहरणपर्व में उत्तर दिशा की ओर से गौओं के अपहरण के प्रसंग में बृहन्नला का सारथ्य कथन सम्बन्धी छत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ।
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