महाभारत शल्य पर्व अध्याय 26 श्लोक 23-42
षडविंश (26) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
राजन् ! उसने उस महासमर में पाण्डुपुत्र के धनुष को काटकर कटे हुए धनुष वाले भीमसेन को बीस बाणों से घायल कर दिया । तब महाबली भीमसेन दूसरा धनुष लेकर आपके पुत्र पर बाणों की वर्षा करने लगे और बोले-‘खड़ा रह, खड़ा रह’। उस समय उन दोनों में विचित्र, भयानक और महान् युद्ध होने लगा। पूर्वकाल में रणक्षेत्र में जम्भ और इन्द्र का जैसा युद्ध हुआ था, वैसा ही उन दोनों का भी हुआ । उन दोनों के छोड़े हुए यमदण्ड के समान तीखे बाणों से सारी पृथ्वी, आकाश, दिशाएं और विदिशाएं आच्छादित हो गयी । राजन ! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए श्रुतर्वा ने धनुष लेकर अपने बाणों से रणभूमि में भीमसेन की दोनों भुजाओं और छाती में प्रहार किया । महाराज ! आपके धनुर्धर पुत्र द्वारा अत्यन्त घायल कर दिये जाने पर भीमसेन का क्रोध भड़क उठा और वे पूर्णिमा के दिन उमड़ते हुए महासागर के समान बहुत ही क्षुब्ध हो उठे । आर्य ! फिर रोष से आविष्ट हुए भीमसेन ने अपने बाणों द्वारा आपके पुत्र के सारथि और चारों घोड़ों को यमलोक पहुंचा दिया । अमेय आत्मबल से सम्पन्न भीमसेन श्रुतर्वा को रथहीन हुआ देख अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए उसके ऊपर पक्षियों के पंख से युक्त होकर उड़ने वाले बाणों की वर्षा करने लगे।राजन् ! रथहीन हुए श्रुतर्वा ने अपने हाथों में ढाल और तलवार ले ली। वह सौ चन्द्राकार चिन्हों से युक्त ढाल तथा अपनी प्रभा से चमकती हुई तलवार ले ही रहा था कि पाण्डुपुत्र भीमसेन ने एक क्षुरप्र द्वारा उसके मस्तक को धड़ से काट गिराया । महामनस्वी भीमसेन के क्षुरप्र से मस्तक कट जाने पर उसका धड़ वसुधा को प्रतिध्वनित करता हुआ रथ से नीचे गिर पड़ा । उस वीर के गिरते ही आपके सैनिक भय से व्याकुल होने पर भी संग्राम में जूझने की इच्छा से भीमसेन की ओर दौड़े। मरने से बचे हुए सैन्य-समूह से निकलकर शीघ्रतापूर्वक अपने ऊपर आक्रमण करते हुए उन कवचधारी योद्धाओं को प्रतापी भीमसेन ने आगे बढ़ने से रोक दिया । वे योद्धा भीमसेन के पास पहुंचकर उन्हें चारों ओर से घेर कर खड़े हो गये । तब जैसे इन्द्र असुरों को नष्ट करते हैं, उसी प्रकार घिरे हुए भीमसेन ने पैने बाणों द्वारा आपके उन समस्त सैनिकों को पीडि़त करना आरम्भ किया । तदनन्तर भीमसेन ने आवरणों सहित पांच सौ विशाल रथों का संहार करके युद्ध में सात सौ हाथियों की सेना को पुनः मार गिराया। फिर उत्तम बाणों द्वारा एक लाख पैदलों और सवारों सहित आठ सौ घोड़ों का वध करके पाण्डव भीमसेन विजयश्री से सुशोभित होने लगे । प्रभो ! इस प्रकार कुन्तीपुत्र भीमसेन ने युद्ध में आपके पुत्रों का विनाश करके अपने आपको कृतार्थ और जन्म को सफल हुआ समझा । नरेश्वर ! इस तरह युद्ध और आपके पुत्रों का वध करते हुए भीमसेन कोआपके सैनिक देखने का भी साहस नहीं कर पाते थे । समस्त कौरवों को भगाकर और उनके अनुगामी सैनिकों का संहार करके भीमसेन बड़े-बड़े हाथियों को डराते हुए अपनी दोनों भुजाओं द्वारा ताल ठोंकने का शब्द किया । प्रजानाथ ! महाराज ! आपकी सेना के अधिकांश योद्धा मारे गये और बहुत थोड़े सैनिक शेष रह गये; अतः वह सेना अत्यन्त दीन हो गयी थी ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व में धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध विषयक छब्वीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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