महाभारत शल्य पर्व अध्याय 3 श्लोक 54-61
तृतीय (3) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
क्षत्रियधर्म के अनुसार युद्ध करनेवाले वीरों के लिये संग्राम भूमि में होनेवाली मृत्यु ही सुखद है; क्योंकि वहाँ मरा हुआ मनुष्य मृत्यु के दुःख को नहीं जानता और मृत्यु के पश्चात् अक्षय सुख का भागी होता है। जितने क्षत्रिय यहाँ आये हैं वे सब सुनें-तुम लोग भागने पर अपने शत्रु भीमसेन के अधीन हो जाओगे। इसलिये अपने बाप-दादो के द्वारा आचरण में लाये हुए धर्म का परित्याग न करो। क्षत्रिय के लिये युद्ध छोड़कर भागने से बढ़कर दूसरा कोई अत्यन्त पापपूर्ण कर्म नहीं है।। कौरवो ! युद्धधर्म से बढ़कर दूसरा कोई स्वर्ग का श्रेष्ठ मार्ग नहीं है। दीर्धकाल तक पुण्यकर्म करने से प्राप्त होनेवाले पुण्यलोकों को वीर क्षत्रिय युद्ध से तत्काल प्राप्त कर लेता है। राजा दुर्योधन की उस बात का आदर करके वे महारथी क्षत्रिय पुनः युद्ध करने के लिये पाण्डवों के सामने आये। उन्हें पराजय असहा्र हो उठी थी; इसलिये उन्होंने पराक्रम करने में ही मन लगाया था। तदनन्तर आपके और शत्रुपक्ष के सैनिकों में पुनः देवासुर संग्राम के सामने अत्यन्त भयंकर युद्ध होने लगा। महाराज ! उस समय आपके पुत्र दुर्योधन ने अपनी सारी सेना के साथ युधिष्ठिर आदि सभी पाण्डवों पर धावा किया था।
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