महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 166 श्लोक 81-89
षट्षष्टयधिकशततम (166) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)
पृषदश्व से भरद्वाज वंशी द्रोणाचार्य ने और द्रोणाचार्य से कृपाचार्य ने खड्ग विधा प्राप्त की। फिर कृपाचार्य से भाइयों सहित तुमने उस उत्तम खड्ग का उपदेश प्राप्त किया है। उस ‘असि’ का नक्षत्र कृत्तिका है, देवता अग्नि है, गोत्र रोहिणी है तथा उत्तम गुरू रूद्रदेव हैं। पाण्डुनन्दन! असि के आठ गोपनीय नाम हैं। उन्हें मेरे मुंह से सुनो। उन नामों का कीर्तन करने वाला पुरूष युद्ध में विजय प्राप्त करता है। १. असि, २. विशसन, ३. खड्ग, ४. तीक्ष्णधार, ५. दुरासद, ६. श्रीगर्भ, ७. विजय और ८. धर्मपाल– ये ही वे आठ नाम हैं। माद्रीनन्दन! खड्ग सब आयुधों में श्रेष्ठ है। भगवान रूद्र ने सबसे पहले इसका संचालन किया था। पुराण में इसकी श्रेष्ठता का निश्चय किया गया है। उपर्युक्त सारे नाम पुराणों में निश्चित रूप से कहे गये हैं। शत्रुदमन पृथु ने सबसे पहले धनुष का उत्पादन किया था और उन्होंने ही इस पृथ्वी से नाना प्रकार के शस्यों (अन्न के बीजों) का दोहन किया था। उन वेनकुमार पृथु ने पहले के ही समान धर्मपूर्वक इस पृथ्वी की रक्षा की थी। माद्रीनन्दन! यह ॠषियों का बताया हुआ मत है। तुम्हें इसे प्रमाण मानकर इस पर विश्वास करना चाहिये। युद्ध विशारद पुरूषों को सदा ही खड्ग की पूजा करनी चाहिये। भरतश्रेष्ठ! इस प्रकार मैंने असि (खड्ग) की उत्पत्ति का प्रसड़ग् तुम्हें विस्तार पूर्वक और यथावत् रूप से बताया है। इससे यह सिद्ध हुआ कि खड्ग ही आयुधों में सबसे प्रथम हुआ है। खड्ग प्राप्ति का यह उत्तम प्रसड़ग् सब प्रकारसे सुनकर पुरूष इस संसार में कीर्ति पाता हैं और देहत्याग के पश्चात् अक्षय सुख का भागी होता है।
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