महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 209 भाग 7

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नवाधिकद्विशततम (209) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: नवाधिकद्विशततम अध्याय: 209 भाग 7 का हिन्दी अनुवाद

नरेश्रेष्‍ठ नारद ! इसलिये साधु पुरूषों को जन्‍म और बन्‍धन के भय को दूर करनेवाला ज्ञान ही देना चाहिये । इस प्रकार ज्ञान देकर मनुष्‍य कल्‍याण और बल प्राप्‍त करता है। जो दस लाख अश्‍वमेध-यज्ञों का अनुष्‍ठान कर ले, वह भी उस पद को नहीं पा सकता, जो मेरे भक्‍तों को प्राप्‍त हो जाता है। भीष्‍म जी कहते है – सुव्रत ! इस प्रकार पूर्वकाल में देवर्षि नारद के पूछने पर कल्‍याणमय भगवान विष्‍णु ने उस समय जो कुछ कहा था, वह सब तुम्‍हें बता दिया। तुम भी एकचित्‍त होकर उन गुणातीत परमात्‍मा का ध्‍यान करो और सम्‍पूर्ण भक्ति-भाव से उन्‍हीं अवि‍नाशी परमात्‍मा का भजन करो। भगवान नारायण का कहा हुआ वह दिव्‍य वचन सुनकर अत्‍यन्‍त भक्तिमान् देवर्षि नारद भगवान के प्रति एकाग्रचित हो गये। जो पुरूष अनन्‍यभाव से दस वर्षोतक ऋषि-प्रवर नारायणदेव का ध्‍यान करते हुए इस मन्‍त्र का जप करता हैं, वह भगवान विष्‍णु के परम दस को प्राप्‍त कर लेता है। जिसकी भगवान जनार्दन में भक्ति हैं, उसे बहुत से मन्‍त्रों द्वाराक्‍या लेना है ? ‘ॐ नमो नारायणाय’ यह एकमात्र मन्‍त्र ही सम्‍पूर्ण मनोरथों की सिद्धि करनेवाला है। इस परम गोपनीय अनुस्‍मृति विद्या का स्‍वाध्‍याय करके मनुष्‍य भगवान के प्रति दृढ़ निष्‍ठा रखनेवाली बुद्धि प्राप्‍त कर लेता है । वह सारे दु:खों को दूर करके संकट से मुक्‍त एवं वीतराग हो इस पृथ्‍वीपर सर्वत्र विचरण करता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्वमें भूमि के भीतर भगवान वाराह की क्रीड़ानामक दो सौ नवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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