महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 226 श्लोक 15-23

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षड्चर्विंशत्‍यधिकद्विशततम (226) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: षड्चर्विंशत्‍यधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 15-23 का हिन्दी अनुवाद

विद्वान् पुरूष कभी क्रोध नहीं करता, कही आसक्‍त नहीं होता, अनिष्‍ट की प्राप्ति होनेपर दु:ख से व्‍याकुल नहीं होता और किसी प्रिय वस्‍तु को पाकर अत्‍यन्‍त हर्षित नहीं होता है ।आर्थिक कठिनाई या संकट के समय भी वह शोकग्रस्‍त नहीं होता है; अपितु हिमालय के समान स्‍वभाव से ही अविचल बना रहता है। जिसे उत्‍तम अर्थसिद्धि मोह में नहीं डालती,इसी तरह जो कभी संकट पड़ने पर धैर्य या विवेक को खो नहीं बैठता तथा सुख का, दु:ख का और दोनों के बीच की अवस्‍था का समान भाव से सेवन करता है, वही महान् कार्यभार को सॅभालनेवाला श्रेष्‍ठ पुरूष माना जाता है। पुरूष जिस-जिस अवस्‍था को प्राप्‍त हो, उसी में उसे संतप्‍त न होकर आनन्‍द मानना चाहिये । इस प्रकार संतापजनक बढे़ हुए काम को अपने शरीर और मन से पूर्णत: निकाल दे। न तो ऐसी कोई सभा है, न साधु-सत्‍पुरूषों की कोई परिषद् है और न कोई ऐसा जनसमाज ही है, जिसे पाकर कोई पुरूष कभी भय न करे । जो बुद्धिमान् धर्मतत्‍व में अवगाहन करके उसी को अपनाता है, वही धुरंधर माना गया है। विद्वान् पुरूष के सारे कार्य साधारण लोगों के लिये दुर्बोध होते हैं।
विद्वान् पुरूष मोह के अवसर पर भी मोहित नहीं होता। जैसे वृद्ध गौतममुनि अत्‍यन्‍त कष्‍टजनक वि‍पत्ति में पड़कर और पदच्‍युत होकर भी मोहित नहीं हुए। जो वस्‍तु नही मिलनेवाली होती है, उसको कोई मनुष्‍य मन्‍त्र, बल, पराक्रम, बुद्धि, पुरूषार्थ, शील, सदाचार और धन सम्‍पत्तिसे भी नहीं पा सकता; फिर उसके लिये शोक क्‍यों किया जाय ? पूर्वकाल में विधाता ने मेरे लिये जैसा विधान रच रक्‍खा है, मैं जन्‍म के पश्‍चात् उसी का अनुसरण करता आया हॅू और आगे भी करूँगा; अत: मृत्‍यु मेरा क्‍या करेगी ? मनुष्‍य को प्रारब्‍ध के विधान से जो कुछ पाना है, उसी को वह पाता है । जहॉ जाना है, वहीं वह जाता है और जो भी सुख या दु:ख उसके लिये प्राप्‍तव्‍य हैं, उन्‍हें वह प्राप्‍त करता है। यह पूर्णरूप से जानकार जो मनुष्‍य कभी मोहित नहीं होता है, वह सब प्रकार के दु:खों में सकुशल रहता है और वही हर तरह से धनवान् है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्म पर्व में इन्‍द्र और नमुचि का संवाद नामक दो सौ छब्‍बीसवॉ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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