महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 227 श्लोक 46-66

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सप्‍तर्विंशत्‍यधिकद्विशततम (227) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: सप्‍तर्विंशत्‍यधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 46-66 का हिन्दी अनुवाद

वासव ! यह चचंला राजलक्ष्‍मी दूसरेबहुत से राजाओं को लॉघकर इस समय तुम्‍हारे पास आयी है और कुछ काल तक तुम्‍हारे यहॉ ठहरकर फिर उसी तरह दूसरे के पास चली जायगी, जैसे गौ जल पीने के स्‍थान का परित्‍याग करके चली जाती है। पुरंदर ! अब तक इसने जितने राजाओं का परित्‍याग किया है, उनकी गणना मैं नहीं कर सकता ।तुम्‍हारे बाद भी बहुत से नरेश इसके अधिकारी होंगे। जिन लोगो ने पहलेवृक्ष, ओषध, रत्‍न, जीव-जन्‍तु वन और खानों सहित इस सारी पृथ्‍वी का उपभोग किया है, उन सबको मैं इस समय नहीं देखता हॅू। पृथु, इलानन्‍दन पुरूरवा, मय, भीम, नरकासुर, शम्‍बरासुर, अश्‍वग्रीव, पुलोमा, स्‍वर्भानु, अमितध्‍वज, प्रहलाद, नमुचि, दक्ष, विप्रचित्ति, विरोचन, ह्रीनिषेव, सुहोत्र, भूरिहा, पुष्‍पवान्, वृष, सत्‍येषु, ऋषभ, बाहु, कुपिलाश्‍व, विरूपक, बाण, कार्तस्‍वर, वह्रि, विश्‍वदंष्‍ट्र, नैर्ऋति, संकोच, वरीताक्ष, वराहाश्‍व, रूचिप्रभ, विश्‍वजित्, प्रतिरूप, वृषाण्‍ड, विष्‍कर, मधु, हिरण्‍यकशिपु और कैटभ ये तथा और भी बहुत से दैत्‍य, दानव एवं राक्षस सभी इस पृथ्‍वी के स्‍वामी हो चुके हैं । पहले के और बहुत पहले के ये पूवोक्‍त तथा अन्‍य अनके दैत्‍यराज, दानवराज एवं दूसरे-दूसरे नरेश जिनका नाम हमलोग सुनते आ रहे हैं, काल से पीडि़त हो सभी इस पृथ्‍वी को छोड़कर चले गये; क्‍योंकि काल ही सबसे बड़ा बलवान् है। केवल तुमने ही सौ यज्ञों का अनुष्‍ठान किया हो, यह बात नहीं है । उन सभी राजाओं ने सौ-सौ यज्ञ किये थे ।
सभी धर्मपरायण थे और सभी निरन्‍तर यज्ञ में संलग्‍न रहते थे । वे सभी आकाश में विचरने की शक्ति रखते थे और युद्ध मे शत्रु के सामने डटकर लोहा लेनेवाले थे। वे सब के सब सुदृढ़ शरीर से सुशोभित होते थे ।उन सबकी भुजाऍ परिघ (लोहदण्‍ड) के समान मोटी और मजबूत थीं । वे सभी सैकड़ों माया जानते और इच्‍छानुसार रूप धारण करते थे। वे सब लोग समरांगण में पहॅुचकर कभी पराजित होते नहीं सुने गये थे । सभी सत्‍यव्रत का पालन करने में तत्‍पर और इच्‍छानुसार विहार करनेवाले थे। सभी वेदोक्‍त व्रत को धारण करनेवाले और बहुश्रुत विद्वान् थे ।सभी लोकेश्‍वर थे और सबने मनोवाच्छित ऐश्‍वर्य प्राप्‍त किया था। उन महामना नरेशों को पहले कभी भी ऐश्‍वर्य का मद नहीं हुआ था । वे सब के सब यथायोग्‍य दान करनेवाले और ईष्‍या द्वेष से रहित थे। वे सभी सम्‍पूर्ण प्राणियों के साथ यथायोग्‍य बर्ताव करते थे । उन सबका जन्‍म दक्ष कन्‍याओं के गर्भ से हुआ था और वे सभी महाबलशाली वीर प्रजापति कश्‍यप की संतान थे। इन्‍द्र ! वे सभी नरेश अपने तेज से प्रज्‍वलित होनेवाले और प्रतापी थे, किंतु काल ने उन सबका संहार कर दिया ।
तुम जब इस पृथ्‍वी का उपभोग करके पुन: इसे छोड़ोगे, तब अपने शोक को रोकने में समर्थ न हो सकोगे। तुम काम भोग की इच्‍छा को छोडों और राजलक्ष्‍मी के इस मद को त्‍याग दो । इस दशा में यदि तुम्‍हारे राज्‍य का नाश हो जाय तो तुम उस शोक को सह सकोगे। तुम शोक का अवसर आने पर शोक न करो और हर्षके समय हर्षित मत होओ । भूत और भविष्‍य की चिन्‍ता छोड़कर वर्तमान काल में जो वस्‍तु उपलब्‍ध हो, उसी में जीवन-निर्वाह करो। इन्‍द्र ! मैं सदा सावधान रहता था, तथापि कभी आलस्‍य न करनेवाले काल का यदि मुझपर आक्रमण हो गया तो तुमपर भी शीघ्र ही उस काल का आक्रमण होगा । इस कटु सत्‍य के लिये मुझे क्षमा करना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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