महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 233 श्लोक 16-19
त्रयस्त्रिंशदधिकद्विशततम (233) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
सुनने में आया है कि काल ज्ञान ( समष्टि बुद्धि ) को ग्रस लेता है, शक्ति उस काल को अपने अधीनकर लेती है; फिर महाकाल शक्तिको और परब्रह्रा महाकाल को अपने अधीन कर लेता है । जिस प्रकार आकाश अपने गुण शब्द को आत्मसात् कर लेता है, उसी प्रकार ब्रह्रा महाकाल को अपने में विलीन कर लेता है । वह परब्रह्रा परमात्मा अव्यक्त सनातनऔर सर्वोत्तम है । इस प्रकार सम्पूर्ण प्राणियों का लय होता है और सबके लय का अधिष्ठान परब्रह्रा परमात्मा ही है । इस प्रकार परमात्मस्वरूप योगियों ने इस ज्ञानमय बोध्यतत्व का साक्षात्कार करके इसका यथार्थरूप से वर्णन किया है, यह उत्तम ज्ञान नि:संदेह ऐसा ही है । इस प्रकार बारंबार अव्यक्त परब्रह्रा में सृष्टि का विस्तार और लय होता है । ब्रह्राजी का दिन एक हजार चतुर्युग का होता है और उनकी रात भी उतनी ही बड़ी होती है; यह बात पहले ही बता दी गयी है ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुक का अनुप्रश्न विषयक दो सौ तैंतीसवॉ अध्याय पूरा हुआ ।
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