महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 242 श्लोक 26-30
द्विचत्वारिंशदधिकद्विशततम (242) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: द्विचत्वारिंशदधिकद्विशततम श्लोक 26-30 का हिन्दी अनुवाद
शास्त्रों में ब्रह्माचारी के लिये जो कोई भी नियम विस्तारपूर्वक बताये गये हैं, उन सबका वह पालन करे तथा सदा गुरू के समीप ही रहे। इस प्रकार शिष्य यथाशक्ति सेवा करके गुरू को प्रसन्न करे और उन्हें उपहार देकर उनकी आज्ञा से ब्रह्माचर्य आश्रम से दूसरे आश्रमों में पदार्पण करे और वहां भी उन आश्रमों के कर्तव्यों का पालन करता रहे। जब वेदसम्बन्धी व्रत और उपवास करते हुए आयु का एक चौथाई भाग व्यतीत हो जाय, तब गुरू को दक्षिणा देकर विधिपूर्वक समावर्तन संस्कार सम्पन्न करे। धर्मत: पत्नी का पाणिग्रहण करके उसके साथ यत्नपूर्वक अग्नि की स्थापना करे और आयु के द्वितीय भाग अर्थात पचास वर्ष की अवस्था तक उत्तम व्रत का पालन करते हुए गृहस्थ बना रहे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुकदेव का अनुप्रश्न विषयक दो सौ बयालिसवॉ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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