महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 244 श्लोक 28-31
चतुश्चत्वारिंशदधिकद्विशततम (244) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
जो ब्राह्माण सम्पूर्ण प्राणियों को अभयदान देकर संन्यासी हो जाता है, वह मरने के पश्चात तेजोमय लोक में जाता है और अन्त में मोक्ष प्राप्त कर लेता है। आत्मज्ञानी पुरूष सुशील, सदाचारी और पापरहित होता है । वह इहलोक और परलोक के लिये कर्म करना नहीं चाहता । क्रोध, मोह, संधि और विग्रह का त्याग करके वह सब ओर से उदासीन सा रहता है। जो अहिंसा आदि यमों और शौच संतोष आदि नियमों का पालन करने में कभी कष्ट का अनुभव नहीं करता, संन्यास आश्रम का विधान करने वाले शास्त्र के सूत्रभूत वचनों के अनुसार त्यागमयी अग्नि में अपने सर्वस्व की आहुति देने के लिये निरन्तर उत्साह दिखाता है, उसे इच्छानुसार गति (मुक्ति) प्राप्त होती है । ऐसे जितेन्द्रिय एवं धर्मपरायण आत्मज्ञानी की मुक्ति के विषय में तनिक भी संदेह के लिये स्थान नहीं हैं। जो वानप्रस्थ आश्रम से उत्कृष्ट तथा अपने सद्गुणों के कारण अति ही श्रेष्ठ है, जो पूर्वोक्त तीनों आश्रमों से ऊपर है, जिसमें शम आदि गुणों का अधिक विकास होता है, जो सबसे श्रेष्ठ और सबकी परमगति है, उस सर्वोत्तम चतुर्थ आश्रम की यद्यपि वर्णन किया गया है, तथापि पुन: विशेषरूप से उसका प्रतिपादन करता हॅू,; तुम ध्यान देकर सुनो।
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