महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 293 श्लोक 14-21
त्रिनवत्यधिकद्विशततम (293) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
जो राजा धर्मपूर्वक प्रजा की रक्षा करता है, वह उस धर्माचरण के कारण ही लोक में पूजित होता है। इसी प्रकार जो ब्राह्मण धर्मपूर्वक स्वाध्याय करता है, जो वैश्य धर्म के अनुसार धनोपार्जन में तत्पर रहता है तथा जो शूद्र जितेन्द्रिय भाव से रहकर सर्वदा द्विजातियों की सेवा करता है, वे सभी अपने-अपने धर्माचरण के कारण लोक में सम्मानित होते हैं। नरेन्द्र ! इसके विपरीत आचरण करने से सब लोग अपने धर्म से गिर जाते हैं । प्राणों को कष्ट देकर भी यदि न्याय से कमायी हुई थोड़ी-सी कौड़ियों का भी दान किया जाय तो वे महान फल देनेवाली होती हैं; फिर जो दूसरी वस्तुऍं हजारों की संख्या में दी जाती हैं, उनकी तो बात ही क्या है । जो राजा ब्राह्मणों का सत्कार करके उन्हें जैसा दान देता है, वैसा ही उत्तम फल का वह सदा ही उपभोग करता है । स्वयं ही ब्राह्मण् के पास जाकर उसे संतुष्ट करते हुए जो दान दिया जाता है, उसे प्रशंसनीय-उत्तम बताया गया है और याचना करने पर जो कुछ दिया जाता है, उसे विद्वान पुरूष मध्यम श्रेणी का दान कहते हैं । अवहेलना अथवा अश्रद्धा से जो कुछ दिया जाता है, उसे सत्यवादी मुनियों ने अधम श्रेणी का दान कहा है। डूबता हुआ मनुष्य जिस तरह नाना प्रकार कें उपायद्वारा समुद्र से पार हो जाता है, वैसे ही तुमको भी सदा ऐसा प्रयत्न करना चाहिये, जिस प्रकार संसार-समुद्र से छुटकारा मिले । ब्राह्मण इन्द्रिय संयम से, क्षत्रिय युद्ध में विजय पाने से, वैश्य न्यायपूर्वक उपार्जित धन से और शूद्र सदा सेवाकार्य में कुशलता का परिचय देने से शोभा पाता है ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में पराशरगीताविषयक दो सौ तिरानबेबाँ अध्याय पूरा हुआ ।
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